फसल नुकसान के मुआवजे के भुगतान की मांग को लेकर संघर्षरत किसान संगठनों का लंबा इतिहास रहा है। जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) की शुरुआत की, तो इसका व्यापक रूप से स्वागत किया गया। हालांकि फसल बीमा योजना के क्रियान्वयन से संकटग्रस्त किसानों को राहत देने की बजाय निजी बीमा कंपनियों को काफी फायदा हो रहा है।

संसद सदस्य बिनॉय विश्वम ने हाल ही में प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में बताया कि किस तरह बीमाकृत किसानों के फसल नुकसान के दावों की अनदेखी की गयी और विभिन्न निजी बीमा कंपनियों ने भारी मुनाफा कमाया। उन्होंने केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री को लिखे गये एक पत्र का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे ओडिशा में किसानों को निजी बीमा फर्मों द्वारा खरीफ 2021 के दौरान उचित मुआवजे से वंचित कर दिया गया था। भाकपा सांसद ने प्रधानमंत्री से इस घोटाले की सीएजी जांच कराये जाने का अनुरोध किया है।

ओडिशा में जो हुआ वह सिर्फ एक हिमशैल का उपरी भाग भर है। वास्तव में, पूरे देश में प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)का कार्यान्वयन इतना अपारदर्शी है कि यह देश भर के किसानों के बीच अलोकप्रिय हो गया है। 2016 में, योजना की शुरुआत में, लगभग 30 प्रतिशत किसानों ने 21 राज्यों से 9,000 करोड़ रुपये का भुगतान करके योजना की सदस्यता ली। हालाँकि, 2021 तक केवल 18 प्रतिशत किसानों ने सदस्यता ली, इस तथ्य के बावजूद कि बैंकों से सभी फसल ऋण लेने वालों के लिए निजी बीमा कंपनियों के तहत बीमा कराना अनिवार्य है। इस योजना के प्रदर्शन से असंतुष्ट तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों ने प्रीमियम के लिए योगदान करने से इनकार कर दिया और इस केंद्रीय योजना से हट गये।

धर्मेंद्र यादव ने ओडिशा के मामले में जो उद्धृत किया है, वह सभी राज्यों में निजी बीमा कंपनियों के लिए पीएमएफबीवाई के तहत बड़े पैमाने पर सार्वजनिक धन का हस्तांतरण का नमूना मात्र है। पिछले पांच वर्षों के दौरान केंद्र, राज्यों और किसानों द्वारा बीमा कंपनियों को पीएमएफबीवाई के तहत भुगतान किया गया कुल प्रीमियम 1,26,521 करोड़ रुपये था, जबकि बीमा कंपनियों ने दावों के निपटान के लिए किसानों को केवल 87,320 करोड़ रुपये का भुगतान किया। दूसरे शब्दों में पीएमएफबीवाई से बीमा कंपनियों को 39,201 करोड़ रुपये का फायदा हुआ है।

पिछले पांच वर्षों में, दावों के निपटान में प्रक्रियात्मक बाधाओं के परिणामस्वरूप, योजना के कवरेज में गिरावट आयी है। उदाहरण के लिए, पांच साल की अवधि में, खरीफ के दौरान कवर किये गये किसानों की संख्या में 29 प्रतिशत और रबी के दौरान 33 प्रतिशत की कमी आयी है।

निजी बीमा कंपनियों ने किसानों को कुल 92,954 करोड़ रुपये के दावों के मुकाबले केवल 87,320 करोड़ रुपये का भुगतान किया, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की 90 प्रतिशत बीमा कंपनियों ने अधिकांश दावों का निपटान किया है, अक्सर नुकसान उठाकर भी। यह निजी बीमा कंपनियां हैं जो दावों का निपटान करने में विफल रही हैं, तथा इस योजना से 60-70 प्रतिशत तक का मुनाफा कमाया है। उदाहरण के लिए भारती एएक्सए ने 72 फीसदी, रिलायंस ने59 फीसदी और फ्यूचर ने61 फीसदी का मुनाफा कमाया।

अक्सर बीमा कंपनियां किसानों से दावे प्राप्त करने के बाद फसल के नुकसान का आकलन करने और मुआवजे का भुगतान करने में कई महीने और कई फसल-मौसमों का समय लेती हैं। हालांकि नुकसान के जल्दी आकलन के लिए फसल काटने के परीक्षणों को पूरा करने के लिए ड्रोन और अन्य तकनीकी मदद का उपयोग करना अनिवार्य है, लेकिन निजी बीमा कंपनियां प्रस्तुत दावों को पूरा करने में महीनों की देरी करती हैं। खेती पर निवेश करने के लिए पूंजी नहीं होने के कारण, छोटे किसान कभी न खत्म होने वाले ऋण चक्र में धकेल दिये जाते हैं। इसके अलावा, काश्तकार किसान, जिनका जमीन पर मालिकाना हक नहीं होता पर वास्तव में वही खेती कर रहे होते हैं, को बैंक फसल ऋण, पीएम सम्मान सहायता या बीमा मुआवजा प्राप्त करने के पात्र नहीं हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में काश्तकार किसान लगभग 40 प्रतिशत कृषक हैं।

किसान के दावों को जमा करने के दो सप्ताह के भीतर मंजूरी दे दी जानी चाहिए। केंद्रीय कृषि मंत्रालय को किसानों के दावों पर कार्रवाई करने और बीमा फर्मों की अनियमितताओं की निगरानी के लिए किसान संघों की भागीदारी के साथ तुरंत एक समिति का गठन करना चाहिए। चूंकि निजी बीमा कंपनियों का प्रदर्शन त्रुटिपूर्ण है, इसलिए कुल कारोबार सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों को सौंपा जाना चाहिए। किसानों को मुआवजे के भुगतान में वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए सरकार को सीएजी के पास जाना चाहिए। (संवाद)