अवैध आप्रवासियों पर अमेरिकी आंकड़ा ज्यादातर विश्वसनीय है, परन्तु भारत में अवैध आप्रवासियों की वास्तविक संख्या, जो लगभग हर दिन बढ़ती है, अपेक्षाकृत अज्ञात है। अधिक से अधिक इतना ही कहा जा सकता है कि भारत अवैध आप्रवासियों की जो संख्या बताता है वह एक घटिया अनुमान मात्र है।

भारत का नागरिकता अधिनियम 1955 देश में अवैध आप्रवासन और नकली नागरिकता को नियंत्रित करने में विफल रहा है।नगरपालिका, राज्य या राष्ट्रीय चुनावों के दौरान राजनीतिक लाभ के लिए अवैध आप्रवासियों को राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड और यहां तक कि पासपोर्ट जैसे दस्तावेज प्रदान करने में मदद करने के लिए राजनीतिक दल और स्थानीय दलाल एक साथ काम कर रहे हैं।ऐसा लगता है कि वे सभी इस तथ्य की उपेक्षा करते हैं कि अवैध आप्रवासी देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए खतरा हैं।

भारत का नागरिकता अधिनियम 1955 में लागू किया गया था। तब सेइस अधिनियम में दो बार संशोधन किया गया - पहला, 2003 में और दूसरा 2019 में। 2003 के संशोधन ने नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) के निर्माण को अनिवार्य कर दिया।2019 के संशोधन ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर-मुस्लिम आप्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता के लिए एक फास्ट ट्रैक प्रदान किया।
वास्तव में, 2003 के संशोधन को अनावश्यक माना जा सकता है क्योंकि 1955 के मूल नागरिकता अधिनियम की घोषणा से पहले भी एनआरसी को बनाये रखा गया था। पहला एनआरसी भारत की पहली जनगणना के रिकॉर्ड के अनुसार 1951 में तैयार की गयी थी। हालांकि, अज्ञात कारणों से, बाद की जनगणनाओं के बाद एनआरसी रिकॉर्डिंग नहीं की गयी थी।

नागरिकता अधिनियम के दोनों संशोधन भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा कियेगये थे - 2003 में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में संशोधन और नवीनतम नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्रित्व काल में।विडंबना यह है कि भाजपा सरकार कभी भी इनके क्रियान्वयन को लेकर गंभीर नहीं दिखी।वे भाजपा के लिए केवल चुनाव-पूर्व के शगूफा ही ज्यादा लग रहे थे।वास्तव में, कोई भी सरकार देश की आबादी और लगातार बढ़ रहे अवैध आप्रवासियों को रोकने के लिए गंभीर नहीं रही है, जो अंततः राजनीतिक दलालों की मदद से भारत के नागरिक बन जाते हैं।

1951 की जनगणना ने भारत की जनसंख्या को केवल 3610 लाख बताया था।आज, संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम डेटा के वर्ल्डोमीटर विस्तार के आधार पर देश की जनसंख्या 1.412 अरब से अधिक है, जो कुल विश्व जनसंख्या का लगभग 17.7 प्रतिशत है।2030 में भारत की जनसंख्या बढ़कर 1.515 अरब हो जायेगी।

इसके विपरीत, चीन की जनसंख्या 2022 में 1.426 अरब से घटकर 2030 में 1.416 अरब होने की उम्मीद है। कुल भूमि क्षेत्र के हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश, चीन लगभग 96 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है।भारत के 32.87 लाख वर्ग किलोमीटर के भूभाग के आकार का लगभग तीन गुना।

भारत निरंकुश जनसंख्या विस्फोट का साक्षी रहा है।दुर्भाग्य से, न तो सरकार और न ही राजनीतिक दल अवैध आप्रवासन के मुद्दे के बारे में चिंतित प्रतीत होते हैं।अवैध आप्रवासियों ने भारत की जनसंख्या की वर्तमान संख्या में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो सकता है - कुछ स्वयं द्वारा और अन्य अपने बच्चों और पोते-पोतियों द्वारा जो देश में पैदा हुए हैं और कानून के तहत स्वचालित रूप से प्राकृतिक नागरिक बन गये हैं।अंतर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड भारत को अवैध आप्रवासियों के दुनिया के दूसरे सबसे बड़े घर के रूप में रखते हैं।वे दिखाते हैं कि शरण या बेहतर जीवन चाहने वाले लोगों के लिए अवैध प्रवासी गंतव्य के रूप में देश की लोकप्रियता बढ़ रही है।

यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में दसियों लाख अवैध आप्रवासी हैं, जिनमें अकेले पिछले दशक में कम से कम 14 लाख बांग्लादेशी शामिल हैं, लेकिन इस तरह की संख्या को निश्चित रूप से जानने का कोई तरीका नहीं है।अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और जर्मनी जैसे देशों में रखे गये आंकड़ों की तर्ज पर भारत में अवैध आप्रवासियों के लिए पैदा हुए बच्चों का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

अमेरिका में, जनवरी 2016 तक लगभग 109 लाख अवैध आप्रवासी थे। 2010 में प्रकाशित प्यू हिस्पैनिक सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में अवैध आप्रवासियों के 55 लाख बच्चे पैदा हुए थे, जिनमें से 45 लाख जन्म से कानूनी नागरिक थे।यह अनुमान लगाया गया है कि अमेरिका में सभी नवजात शिशुओं में से आठ प्रतिशत के माता-पिता में से कम से कम एक अवैध आप्रवासी हैं।दिलचस्प बात यह है कि यूरोप और एशिया से अवैध प्रवासियों के लिए रूस दुनिया का तीसरा सबसे लोकप्रिय गंतव्य है। अनुमान है कि रूस में 100से 120 लाख अवैध आप्रवासी हैं।चीन रूस में आप्रवासन के सबसे लोकप्रिय स्रोतों में से एक है।

भारत में पड़ोसी बांग्लादेश से आने वाले आप्रवासियों से निपटने के लिए देश की पूर्वी सीमा पर बैरियर बनाये जा रहे हैं।चारों ओर बांग्लादेश-भारत सीमा 4,100 किलोमीटर लंबी है, जो इसे दुनिया की पांचवीं सबसे लंबी भूमि सीमा बनाती है।2011 तककेवल 200 किलोमीटर बैरियर पूरे किये गये थे। भारत अनिवार्य रूप से खुद को बांग्लादेश से पूरी तरह से अलग-थलग करना चाहता है, जिसे काफी आलोचना का सामना करना पड़ा है।बांग्लादेश से भारत में अवैध आप्रवास को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि अवरोध कम होने से सीमापार करना काफी आसान है। बेईमान पुलिस और सीमा सुरक्षा बलों ने हमेशा बांग्लादेश से भारत में अवैध आप्रवासन में मदद की है।

दिलचस्प बात यह है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच आधिकारिक स्तर की बातचीत में यह मुद्दा कभी नहीं उठा।ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, अनुमानित 40,000 रोहिंग्या भारत में हैं - उनमें से कम से कम 20,000 संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के साथ पंजीकृत हैं।अनौपचारिक अनुमान संख्या को 1,00,000 से अधिक है।वे सभी बांग्लादेश के रास्ते देश में दाखिल हुए और बड़ी मुस्लिम आबादी वाले स्थानों पर रुके।

हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लोकसभा में खुलासा किया कि कुछ रोहिंग्या आप्रवासी अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं।यदि 1955 का नागरिकता अधिनियम ही देश की वास्तविक जनसांख्यिकी तस्वीर की रक्षा करने में विफल रहा है, तो इसके तीन साल पुराने संशोधित संस्करण, सीएए, या एनआरसी से बहुत फर्क पड़ेगा इसकी उम्मीद नहीं है, इसलिए दोनों से डरने की भी कोई आवश्यकता नहीं, हालांकि एनआरसी और सीएए के कार्यान्वयन के खिलाफ 11 मुख्यमंत्रियों ने रैली की है।उनका कहना है कि यह उपाय देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान और अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ हमला है।नागरिकता साबित करने में विफल रहने वालों के खिलाफ एनआरसी का इस्तेमाल किया जा सकता है।उन्हें निरोध केंद्रों में ले जाया जा सकता है या निर्वासित किया जा सकता है।

असम एकमात्र राज्य है जहां एनआरसी को अगस्त, 2019 में अद्यतन और प्रकाशित किया गया था। रजिस्टर में राज्य की 330 लाख की आबादी में से 310 लाख नाम शामिल थे।कुल19 लाख आवेदकों को छोड़ दिया गया, जिससे वे संभावित रूप से देश विहीन हो गये।हालाँकि, असम एनआरसी के दायरे के बाहर के लोग खुशी से रह रहे हैं क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा स्वयं एनआरसी रोल से सहमत नहीं है।भाजपा का मानना है कि रजिस्टर में बड़ी संख्या में अवैध आप्रवासियों को शामिल करते हुए कई वैध नागरिकों को बाहर कर दिया गया था।तीन साल में कोई कार्रवाई नहीं हुई।इसकी उम्मीद भी नहीं है।हालांकि, अवैध आप्रवासियों पर वोट बैंक केंद्रित राजनीतिक बहस चलती रहती है।(संवाद)