अपराजेय माने जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नाक के नीचे भाजपा की हार और बेचैनी महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब पार्टी ने राष्ट्रीय राजधानी के नगर निगमों में 2007 से सत्ता में रही भाजपा का बचाव करने के लिए 7 मुख्यमंत्रियों 17 केंद्रीय मंत्रियों को चुनावी मैदान में उतारा था।फिर भी भगवा खेमा बुरी तरह विफल रहा।

एमसीडी में भाजपा की यह अपमानजनक हार इस पृष्ठभूमि में भी उल्लेखनीय है कि पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी सात लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2020 के चुनाव में 70 विधानसभा सीटों में से केवल 3 ही जीत सकी थी।आप ने विधानसभा में 67 सीटें जीती थीं और मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल बड़े राजनीतिक आराम में शासन कर रहे थे।

मोदी सरकार ने केजरीवाल के पंख काटने के लिए सब कुछ किया।यहां तक कि राज्य की परिभाषा भी एक कानून के माध्यम से बदल दी गयी - जो कहता है कि दिल्ली में सरकार का मतलब 'लेफ्टिनेंट गवर्नर' है।इसने मुख्यमंत्री और उनकी सरकार को केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने वाले महत्व के हर मुद्दे पर एलजी के फैसलों पर निर्भर रहने की जरूरत बनायी।दिल्ली के मुख्यमंत्री की प्रशासनिक शक्ति कानून द्वारा अपंग कर दी गयी है।

इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने आप नेताओं को पकड़ने के लिए प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो, आयकर विभाग आदि जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों को लगा दिया है, जिनमें से कई अब जेल में हैं।आरोपों की सत्यता का पता अदालती फैसलों के बाद ही चलेगा, लेकिन राजनीतिक रूप से इन सबका आप और उनके नेताओं की राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार ने आप नेताओं के खिलाफ पिछले सात वर्षों में 167 मामले दर्ज किए हैं और लगभग 800 जांच एजेंसी के अधिकारियों को उनके नेताओं के गलत कामों का पता लगाने के लिए तैनात किया गया है।भाजपा हम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रहती है, केजरीवाल ने कहा, फिर मुकदमे दायर किये लेकिन उनमें से एक भी अदालत में साबित नहीं हुआ।

इस पृष्ठभूमि में भी केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप मोदी-शाह की जोड़ी की नाक के नीचे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक अप्रतिरोध्य शक्ति के रूप में उभरी है।यह सब साबित करता है कि न तो नरेंद्र मोदी अजेय हैं और न ही भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह।आप की इस जीत ने भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं सहित पूरे भाजपा नेतृत्व को परेशान कर दिया है, जो अब लोकसभा चुनाव 2024, जो केवल लगभग डेढ़ साल दूर है, में अपनी जीत की गारंटी मानकर नहीं चल सकते।उन्हें एमसीडी चुनावों में निष्प्रभावी हो चुके हिंदुत्व सांप्रदायिक कार्ड सहित अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

नतीजे बताते हैं कि भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर अब पार्टी के लिए खतरा बन गयी है और मोदी का करिश्मा खत्म हो रहा है।भाजपा अपने 15 साल के शासन में दिल्ली को साफ नहीं रख पायी, बल्कि कचरे के पहाड़ बना दिये।केजरीवाल के अधीन दिल्ली सरकार के कार्यनिष्पादन की तुलना में भाजपा के अधीन एससीडी में भाजपा बहुत खराब प्रदर्शन करने वालों के रूप में उजागर हुई।शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी आम आदमी को प्रभावित करने वाले क्षेत्र थे और आप ने भाजपा की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया है।अब तक बीजेपी को पता चल गया होगा कि केवल "जुमलाबाजी" उनकी जीत की गारंटी नहीं दे सकती है।अगर वे 2024 के बाद सत्ता में वापसी करना चाहते हैं तो उन्हें अपने प्रदर्शन में सुधार करना होगा।

आप और केजरीवाल की राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने की आकांक्षा सहित कई अन्य कारणों से एमसीडी चुनावों ने राष्ट्रीय महत्व हासिल कर लिया है।आप कई अन्य राज्यों में अपना राजनीतिक आधार बढ़ा रही है।वे अब दूसरे राज्य पंजाब पर शासन कर रहे हैं।पार्टी के नरेंद्र मोदी के सुरक्षित घरेलू राजनीतिक क्षेत्र गुजरात में भी प्रवेश करने में सफल होने की संभावना है।आप भले ही राज्य में ज्यादा सीटें हासिल न कर पाये, लेकिन राज्य में उसकी घुसपैठ भी दिखाती है कि भाजपा हर जगह अपना बचाव नहीं कर सकती। वर्तमान में आपएक राज्य की पार्टी है, और पंजाब, गुजरात और कई अन्य राज्यों में पैठ के साथ, उनके लोकसभा चुनाव 2024 से काफी पहले एक राष्ट्रीय पार्टी बनने की संभावना है।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कई राज्यों में 2023 में मतदान होने जा रहे हैं,जो एक पूर्व-आम चुनाव वर्ष है, और इसे लोकसभा आम चुनाव के लिए सेमी-फाइनल माना जाता है।आप की यह अच्छी संभावना 2024 के आम चुनाव के लिए नयी धुन तय करेगी।अरविंद केजरीवाल लगातार कांग्रेस और राहुल गांधी के खिलाफ अपने रवैये का खुलासा करते रहे हैं, और वह कांग्रेस के नेतृत्व में किसी भी विपक्षी गठबंधन का विरोध करने की संभावना रखते हैं, जो वर्तमान में लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी राजनीतिक पार्टी है।कांग्रेस की इसी ताकत के दम पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार पिछले कुछ समय से कांग्रेस के साथ विपक्ष का महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं।राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा पर हैं, जिसे जबरदस्त अनुकूल प्रतिक्रिया मिल रही है।जो भी हो, एमसीडी चुनाव का नतीजा कांग्रेस के नेतृत्व में किसी भी महागठबंधन पर सवालिया निशान लगाती है।

राज्यों में शासन करने तथा दबदबा रखने वाले गैर-भाजपा गैर-कांग्रेसी राजनीतिक दलों को अब विपक्षी गठबंधन पर फिर से विचार करना होगा।यदि राहुल गांधी की महत्वाकांक्षा है, तो अरविंद केजरीवाल की भी महत्वाकांक्षा है कि वे 2024 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के मुकाबले राजनीतिक चुनौती के रूप में उभरें।आप के साथ गठबंधन के सवाल पर भी विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों को पुनर्विचार करना होगा।देश में संपूर्ण राजनीतिक परिदृश्य बदलने के लिए तैयार है, और 2023 में राज्य के चुनाव इसके भविष्य की दिशा तय करेंगे।

मोदी के दिल्ली और कई अन्य राज्यों में मुख्य राजनीतिक चुनौती के रूप में अरविंद केजरीवाल का सामना करने की सबसे अधिक संभावना है, खासकर उन राज्यों में जहां किसी भी राज्य के राजनीतिक दल का राजनीतिक प्रभुत्व नहीं है।एमसीडी के नतीजों ने राज्यों पर शासन करने वाले क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की उम्मीदें बहुत बढ़ा दी हैं, क्योंकि इसने एक सबूत दिया है कि भाजपा और मोदी-शाह की जोड़ी को दिल्ली की तरह अपमानजनक हार के साथ सत्ता से बाहर किया जा सकता है।कांग्रेस के पास यह सीखने का भी एक सबक है कि उन्हें न केवल राज्यों में अपने समर्थन आधार की रक्षा करने की जरूरत है बल्कि अपने अस्तित्व के खतरे को दूर करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने की भी जरूरत है।(संवाद)