वास्तव में, हाल के दो विधानसभा चुनावों और एमसीडी चुनावों का सबक यह है कि भाजपा, प्रधान मंत्री सहित अपने शीर्ष नेताओं को चुनावअभियान में उतारकर और बड़े पैमाने पर संसाधनों को उढ़ेलने के बावजूद, दिल्ली में आप और हिमाचल में कांग्रेस के हाथों बुरी तरह हार गयी।गुजरात पहले से ही भाजपा के पास था और राज्य में कांग्रेस संगठन के मामले में बुरी स्थिति में थी। ऊपर से कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व से प्रदेश कांग्रेस को बहुत कम मदद मिली और राहुल गांधी ने मात्र एक दिन छोड़कर अभियान में लगभग हिस्सा नहीं लिया।

यह अवश्य है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के वोटों का बड़ा क्षरण कांग्रेस नेतृत्व के लिए चिंता का कारण है। लेकिन गुजरात एक अलग मामला है, जिसकी तुलना उत्तर प्रदेश को छोड़कर भारत के अन्य राज्यों से नहीं की जा सकती है, जो हिंदुत्व के प्रयोग की सफलता के गवाह बने हुए हैं।

ऐसे में हिमाचल के नतीजे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।कांग्रेस को एक हिंदी भाषी राज्य वापस मिल गया है।विधानसभा चुनाव में पिछले चार साल में कांग्रेस की यह पहली जीत थी।चुनाव से पहले कई बड़ी परियोजनाओं की घोषणा करके बड़े पैमाने पर प्रचार और भाजपा अभियान के केंद्रीय समर्थन के बावजूद उसे जीत हासिल हुई।हिमाचल कांग्रेस के नेताओं के लिए यह वास्तव में श्रेयस्कर है कि उन्होंने मोदी के रथ का सामना किया और जीत हासिल की।प्रियंका गांधी को छोड़कर केंद्रीय नेताओं ने शायद ही कभी इसमें हिस्सा लिया।हिमाचल की यह जीत मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक संकेत है और 2024 में लोकसभा चुनाव के लिए लड़ाई को आगे ले जायेगी।

अब 2022 के पिछले विधानसभा चुनाव से विपक्षी दलों के साथ-साथ भाजपा को भी क्या संकेत मिले हैं?एक सकारात्मक बदलाव यह है कि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा इस सप्ताह संसद में बुलाई गयी रणनीतिक बैठक में तृणमूल और आप दोनों शामिल हुए।लंबे समय से ये दोनों पार्टियां सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के तौर पर कांग्रेस की ओर से बुलाई जाने वाली बैठकों से परहेज कर रही थीं।अब इस जुड़ने का मतलब यह है कि इन दोनों दलों में कुछ पुनर्विचार हुआ है कि राष्ट्रीय पटल पर भाजपा और मोदी सरकार से लड़ने के लिए कांग्रेस के साथ एक समझ जरूरी है।

विधानसभा चुनाव के नवीनतम परिणामों के बाद विपक्षी दलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई तीसरा मोर्चा नहीं होना चाहिए।केवल एक भाजपा विरोधी मोर्चा होगा और उसमें कांग्रेस भी शामिल होगी।लेकिन इसका मतलब कोई एक संयुक्त चुनावी मोर्चा नहीं है।भाजपा विरोधी चुनावी मोर्चा अलग-अलग राज्यों में भाजपा-विरोधी दलों की ताकत और जमीनी हकीकत के आधार पर अलग-अलग होगा।

राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के साथ आगे बढ़ रहे हैं जो अपने चौथे महीने में प्रवेश कर चुकी है।यात्रा में लगभग दो महीने और लगेंगे जो अगले साल फरवरी के पहले सप्ताह में समाप्त होने वाली है।राहुल इस यात्रा को आरएसएस के खिलाफ दीर्घकालीन वैचारिक लड़ाई के हिस्से के रूप में देख रहे हैं, अल्पावधि में चुनावी लाभ के बारे में ज्यादा चिंता किए बिना।गुजरात चुनाव के परिणामों ने उनकी समझ को विचलित नहीं किया है।वे यात्रा के दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में सोच रहे हैं जब अधिक से अधिक गैर-राजनीतिक लोग कांग्रेस के आदर्शों का चुनाव करेंगे।यदि ऐसा होता है, तो यह समग्र रूप से विपक्ष के लिए अच्छा होगा क्योंकि अभी भी कांग्रेस अधिकांश राज्यों में चुनावी रूप से भाजपा का मुकाबला करने वाली मुख्य राजनीतिक पार्टी है।

अहम बात यह है कि चुनाव से पहले किसी विपक्ष के नेता को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने की जरूरत नहीं है और 2024 के चुनाव नतीजे आने के बाद कॉमन मिनिमम प्रोग्राम भी तैयार किया जा सकता है।पीएम उम्मीदवार और सीएमपी से संबंधित मुद्दे तभी प्रासंगिक होंगे जब विपक्ष जीतता है या त्रिशंकु संसद होती है।

यह कोई संयोग नहीं है कि गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा आलाकमान ने विधान सभा चुनाव परिणाम के बाद 8 दिसम्बर को ही 2024 के लोकसभा चुनाव की कार्ययोजना पर चर्चा की।उन्होंने विशेष फोकस के लिए 144 सीटों की पहचान की, जो 2019 के चुनावों में हार गये थे।उन्होंने इस रणनीति पर काम किया कि कैसे इनमें से कई सीटों को फिर से हासिल किया जा सकता है।

भाजपा बैकफुट पर है क्योंकि उसने हिंदी भाषी राज्यों में अपने अधिकांश शक्तिशाली सहयोगियों को खो दिया है।खासकर जदयू और शिरोमणि अकाली दल के साथ छोड़ जाने के बाद भगवाधारियों को चुनावी तौर पर बड़ा झटका लगा है। भाजपा की रणनीति अपनी मौजूदा 303 सीटों में से होने वाले नुकसान को कम से कम रखने और इसकी भरपाई पिछले चुनाव में हारी हुई सीटों को जीत कर करने की है।

लेकिन भाजपा की इस रणनीति को विपक्षी दलों द्वारा अच्छी तरह से चुनौती दी जा सकती है यदि वे स्थानीय आधार पर चुनावी तालमेल करें। विपक्ष के लिए यह सुनिश्चित करना बुद्धिमानी होगी कि प्रत्येक राज्य में सबसे मजबूत भाजपा विरोधी विपक्षी दल, उस राज्य में भाजपा से मुकाबला करने के लिए गठबंधन की प्रकृति का निर्णायक होगा।

फिलहाल, बिहार और तमिलनाडु में विपक्ष को इसमें कोई समस्या नहीं है।मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल और गुजरात में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है और इन राज्यों में भाजपा से लड़ने की मुख्य जिम्मेदारी उसकी होगी।यदि कांग्रेस भाजपा विरोधी छोटे दलों के साथ गठबंधन करना आवश्यक समझती है, तो उसका निर्णय अंतिम होगा।कर्नाटक में, कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है, लेकिन जद (एस) का कुछ जिलों में अच्छा प्रभाव है।यह विपक्षी एकता के सर्वोत्तम हित में होगा यदि कांग्रेस और जद (एस) मिलकर 2023 के राज्य विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला करने के लिए काम करें।

इसी तरह झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस सक्रिय गठबंधन का हिस्सा है और पार्टी इन गठबंधनों के जरिये ही बीजेपी से लड़ सकती है।असम में भीकांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है और यह विपक्ष के सर्वोत्तम हित में होगा यदि कांग्रेस, तृणमूल और अन्य भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ वाम दलों को मिलाकर भाजपा के खिलाफ पूर्ण गठबंधन हो।यदि असम में इस तरह का समग्र संयोजन उभरता है तो भाजपा की हार संभव है।

पूर्वोत्तर के राज्यों,पश्चिम बंगाल और केरल में राजनीतिक परिदृश्य बहुत स्पष्ट है।बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस इतनी मजबूत है कि वह अपने दम पर भाजपा का मुकाबला कर सकती है।बंगाल में किसी भी भाजपा विरोधी गठबंधन का कोई सवाल ही नहीं है।यह संभव भी नहीं है और वांछनीय भी नहीं।केरल मेंवाम लोकतांत्रिक मोर्चा कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ से लड़ेगा और जो भी जीतेगा, वह भाजपा विरोधी गठबंधन से संबंधित होगा।

पिछले विधानसभा चुनाव में आप की भारी जीत के साथ पंजाब की राजनीतिक स्थिति बदली है।आप सभी 13 लोकसभा सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ेगी और इससे कांग्रेस को कुछ नुकसान हो सकता है।
तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली टीआरएस दृढ़ता से भाजपा विरोधी विपक्ष के साथ है।यहां तक कि उन्होंने अब भाजपा विरोधी विपक्ष में कांग्रेस को सहयोगी के रूप में रखने के विचार से भी समझौता कर लिया है।लेकिन तेलंगाना में टीआरएस भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ेगी।

इसी तरह आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी कांग्रेस और भाजपा दोनों से लड़ेगी।लोकसभा चुनाव में भाजपा के चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी के साथ गठबंधन करने की संभावना है।ओडिशा मेंनवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजद भाजपा और कांग्रेस दोनों से लड़ेगी।अगर भाजपा हार जाती है तो कांग्रेस विपक्ष की सरकार का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होगी।प्रधान मंत्री पद का निर्णय तो विपक्षी पार्टियों को मिलने वाली सीटों पर निर्भर करेगा। अभी तो भाजपा को परास्त करने के प्रति संयुक्त विपक्षी समझ की आवश्यकता है।(संवाद)