भाजपा ने गुजरात में शानदार जीत हासिल की और इस प्रकार लगातार सात बार विधान सभा चुनाव जीतने का गौरव हासिल किया। यह गौरव अब तक केवल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को ही जाता था जिसने 1977 से 2011 तक पश्चिम बंगाल पर शासन किया।

मोदी का गृह राज्य और भाजपा का गढ़ होने के नाते2014 में मोदी के सत्ता संभालने के बाद से गुजरात का विशेष महत्व रहा है।अब रिकॉर्ड जीत ने उनकी प्रतिष्ठा में इजाफा किया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अब मुख्य चुनौती क्षेत्रीय क्षत्रपों को हराना होगी।

कांग्रेस ने साबित कर दिया है कि वह गायब नहीं होगी क्योंकि प्रधानमंत्री ने कांग्रेस-मुक्त भारत की भविष्यवाणी की थी।आप ने भी विस्तार किया है।इनके साथ, विपक्ष को 2023 में आगामी विधानसभा चुनावों और 2024 में अगले लोकसभा चुनावों का सामना करने के लिए कुछ नैतिक बल मिला।

हिमाचल और दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली है।पार्टी के लिए हिमाचल की हार निराशाजनक थी, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री ने जमकर प्रचार किया था।बेशक उसका हिसाब-किताब गड़बड़ा गया था, लेकिन भाजपा ऐसी पार्टी है जो हार से नहीं डिगती।भाजपा नेतृत्व के लिए पंचायत चुनाव भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि संसद चुनाव।

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 5 और 6 दिसंबर को दिल्ली में सभी राष्ट्रीय और राज्य स्तर के पदाधिकारियों की बैठक बुलायी थी। उन्होंने 2024 के लोकसभा और 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा की थी।भाजपा2019 की अपनी टैली में सुधार करने के लिए 2024 में 350 से अधिक सीटों पर नजर गड़ाये हुए है।पार्टी की ताकत उसके अपार संसाधनों, सुगठित कार्यबल और प्रतिबद्ध कैडर के कारण है।आरएसएस और बाकी संघ परिवार भी वोट जुटाने के लिए पार्टी के लिए काम करते हैं।

हिमाचल में अप्रत्याशित उपहार से कांग्रेस काफी उत्साहित है, हालांकि गुजरात और दिल्ली में उसका सफाया हो गया है।उसके पास जीतने के लिए कोई ठोस नीति या रणनीतिक योजना नहीं थी।गांधी परिवार के प्रचार से बचने के लिए प्रत्येक उम्मीदवार ने अपने दम पर लड़ाई लड़ी।हिमाचल की प्रभारी प्रियंका गांधी ने कम से कम काम किया।राहुल गांधी ने कुछ समय के लिए गुजरात में प्रचार किया और हिमाचल को पूरी तरह से छोड़ दिया।सोनिया गांधी ने अपने खराब स्वास्थ्य के कारण बिल्कुल भी प्रचार नहीं किया।हिमाचल की जीत ने 2014 और 2019 में लगातार हार से हताश कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कुछ नैतिक बल दिया है। यदि कांग्रेस 2024 में फिर से हार जाती है, तो पार्टी लगातार तीन बार सत्ता से बाहर हो जाएगी।

कांग्रेस को बाकी बचे लोगों को एक साथ रखना चाहिए, हालांकि कई वरिष्ठ नेता पहले ही छोड़कर अन्य पार्टियों में शामिल हो चुके हैं।युवा नेताओं को प्रोजेक्ट करना और वरिष्ठों को बनाये रखना इसका लक्ष्य होना चाहिए।साथ ही, दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को विकसित करने की आवश्यकता है।कांग्रेस को भी एक नया किस्सागोई तैयार करना चाहिए, जैसा कि उसने 2004 में किया था और आम आदमी का नारा गढ़ा था।लोग यह जानना चाहते हैं कि अतीत में पार्टी ने क्या किया है इसके बजाय कि भविष्य में क्या करेगी। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मदद कर सकती है, लेकिन गति को 2024 तक बनाये रखने की आवश्यकता है।

गुजरात में पांच सीटें जीतने और राष्ट्रीय पार्टी का टैग मिलने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बढ़ावा मिला।आप एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी है जो दो राज्यों - दिल्ली और पंजाब में शासन कर रही है।केजरीवाल 2024 के चुनावों में मोदी को चुनौती देने वाले के रूप में उभरना चाहते हैं।आप ने दिल्ली के प्रतिष्ठित नगर निगम को भी भाजपा से छीन लिया।केजरीवाल के पास अब सरकार और निगम होगा, जो उनके प्रशासन की मदद करेगा।

उपचुनाव के नतीजों से विपक्ष को खुशी होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) से हार गयी, लेकिन रामपुर सदर सीट पर जीत हासिल कर ली।मैनपुरी लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की है।भाजपा ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गठबंधन से बिहार में कुरहानी निर्वाचन क्षेत्र छीन लिया।कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपनी दो विधानसभा सीटों को बरकरार रखा।ये एक सकारात्मक संदेश देते हैं कि विपक्ष को हार नहीं माननी चाहिए।

कम से कम आधा दर्जन शक्तिशाली क्षेत्रीय क्षत्रपों ने अपने मतदाताओं को मजबूती से पकड़ रखा है।वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का विकल्प खुला रखना चाहते हैं।इसमें पश्चिम बंगाल (ममता बनर्जी), तेलंगाना (के. चंद्रशेखर राव), तमिलनाडु (एम.के. स्टालिन), बिहार (नीतीश कुमार) और दिल्ली(अरविंद केजरीवाल) शामिल हैं।

बंटा हुआ विपक्ष मोदी की सफलता का राज है।सभी भाजपा विरोधी दलों को एक मंच पर लाना भाजपा को हराने में काफी मददगार साबित होगा।लोकसभा चुनाव में अभी पंद्रह महीने बाकी हैं।यह कांग्रेस और विपक्ष पर निर्भर है कि वे मौजूदा बढ़त के साथ 2024 में उस अंतिम लड़ाई की तैयारी करें।भाजपा हर हाल में चुनाव के लिए तैयार है। (संवाद)