अगले राष्ट्रीय चुनावों का कोई भी यथार्थवादी आकलन इस आधार पर शुरू होना चाहिए कि भाजपा असाधारण रूप से अच्छी स्थिति में है।यह समझने में कोई गलती न करें कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक दिसम्बर से जी20 की साल भर चलने वाली अध्यक्षता के साथ 2024 के आम चुनाव के लिए अपना अभियान शुरु कर दिया है।मोबाईल उपभोक्ताओं को संदेश भीजे गये, राष्ट्रीय स्मारकों पर होलोग्राम प्रक्षेपित किये गये, समाचार पत्रों में पूरे पेज के विज्ञापन दिये गये, और सभी प्रमुख समाचार पत्रों में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के लिखे आलेख संपादकीय पृष्ठ के सामने वाले पृष्ठ पर छपवाये गये। प्रतीक के रूप में कमल का फूल था जिसे जी20 का लोगो बनाया गया है और वही भाजपा का चुनावी चिह्न भी है।

सच कहें तो मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता उनकी पार्टी से काफी आगे चल रही है।उदाहरण के लिए, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा अभियानों की शुरुआत, मध्य और अंत पीएम थे।हिमाचल प्रदेश जैसे विधानसभा चुनाव या दिल्ली जैसे नगरपालिका चुनावों के संदर्भ में स्थानीय कारकों पर काबू पाने के लिए यह पर्याप्त नहीं हो सकता है।लेकिन मॉर्निंग कंसल्ट्स ग्लोबल लीडर ट्रैकर के अनुसार, 59% शुद्ध अनुमोदन रेटिंग वाले नेता नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय चुनाव लड़ने वाली भाजपा के लिए एक संपत्ति हैं।
तो, विपक्ष के बारे में क्या?जून2019 मेंचुनावी पोस्ट-मॉर्टम एक खंडित, नेतृत्वविहीन, कमजोर संगठन, तथा धन की कमी से ग्रस्त विपक्ष से भरे हुए थे।साल के अंत में विपक्ष का कोई भी निष्पक्ष मूल्यांकन इन्हीं कमियों से शुरू होगा।लेकिनलंबे समय बादविपक्षी खेमे में रचनात्मक विनाश के संकेत मिल रहे हैं।

शुरुआत करते हैं कांग्रेस से।भारत जोड़ो यात्रा, धरातल पर, योग्य सफलता रही है।यहां तक कि भाजपा के अंदरूनी लोग भी यात्रा द्वार भीड़, जमीनी समर्थन और सम्मोहक फोटो के अवसरों से हैरान हैं।हालांकि, यह तर्क दिया जा सकता है कि यह पार्टी की बिखरी हुई चुनाव मशीन के पुनर्निर्माण की तुलना में राहुल गांधी की छवि को फिर से स्थापित करने में अधिक सफल रही है।यात्रा का कार्यक्रम चुनावी राजनीति की कठिन गणनाओं से अलग है।इसकी स्वीकारोक्ति में योजनाकारों ने कहा है कि यह विशेष उद्देश्य के तहत किया गया था।फिर भी, कांग्रेस सैद्धांतिक रूप से चुनाव जीतने के धंधे में है, न कि कोई सामाजिक हिमायती संगठन चला रही है।

इस बीच, कांग्रेस के गुजरात अभियान ने आम आदमी पार्टी को खुद को तीसरी ताकत के रूप में स्थापित करने का मौका दिया, जबकि कांग्रेस ने पांच वर्षों में अपने वोट शेयर में लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट देखी।पिछले चार दशकों में कांग्रेस की राजनीति के बारे में एक स्थापित अनुभवजन्य तथ्य कोई है, तो यह कि कांग्रेस एक बार राज्य में दूसरे स्थान से नीचे गिर जाती है, तो वह कभी संभलकर फिर ऊपर नहीं उठ पाती है।पारंपरिक द्विध्रुवीय राज्य में पार्टी वोट में अपनी हिस्सेदारी गंवाने का जोखिम नहीं उठा सकती क्योंकि इसे कहीं और वोट बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

सतह को और खरोंचें और आप टिक-टिक करता एक टाइम-बम पायेंगे।राजस्थान में कांग्रेस नेताओं सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच आंतरिक संघर्ष समाप्त होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। कर्नाटक में –जो शायद 2023 में कांग्रेस के लिए जीतने का संभवतः सबसे अच्छा मौका है - कांग्रेस नेता इस बाद के लिए अनिश्चय की स्थिति में हैं कि चुनाव से पहले शेष महीनों में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और पार्टी बॉस डीके शिव कुमार के बीच भूमिगत संघर्ष कौन सा आकार लेगा।

हां, पार्टी ने सफलतापूर्वक अध्यक्ष पद का चुनाव कराया, जिसके परिणामस्वरूप किसी ऐसे व्यक्ति का चयन हुआ, जिसका अंतिम नाम गांधी नहीं है।लेकिन पार्टी आलाकमान ने चुनावी तराजू पर अपना अंगूठा लगाकर जीत के जबड़ों से हार छीन ली ताकि एक दबे-कुचले बाहरी पर एक इष्ट अंदरूनी की जीत सुनिश्चित हो सके।शशि थरूर ने एक सैद्धांतिक, सकारात्मक अभियान चलाया जिसमें न तो गांधी परिवार और न ही उनके साथी प्रतियोगी की आलोचना की गयी।ऐसा प्रतीत होता है कि उनके प्रयासों के लिए, थरूर को और भी बहिष्कृत कर दिया गया है, जिससे तिरुवनंतपुरम की एक महत्वपूर्ण संसदीय सीट खतरे में पड़ गयी है।संसद में केवल 53 सीटों के साथ, कांग्रेस को हर प्रतिस्पर्धी विधानसभा क्षेत्र पर कब्जा करना चाहिए, बजाय इसके कि एक वैसी सीट को संकट में डाले जो वह थरूर के बिना हार सकती है।

कांग्रेस से इतर आप की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट हैं।गुजरात में आप के प्रवेश के साथ ही दिल्ली और पंजाब पर अपनी पकड़ के अलावा अरविंद केजरीवाल 2024 के चुनावों के लिए मजबूती से चुनाव मैदान में प्रवेश लेते दिख रहे हैं। हालांकि, गुजरात और दिल्ली नगरपालिका चुनावों में आप ने उम्मीदों से कम प्रदर्शन किया।पार्टी ने बारी-बारी से राष्ट्रवाद के सवालों तथा दक्षिणपंथी भाजपा से भी आगे निकलने का फैसला किया है।गुजरात में मुसलमानों ने आप को मजबूती से खारिज कर दिया।लोकनीति-सीडीएसएम के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में मुस्लिम मजबूती से कांग्रेस के पीछे हो गये हैं।इसके अलावा, यह भी स्पष्ट नहीं है कि आप की यह रणनीति कोर हिंदू वोटों को जीत पायेगी।(संवाद)