आखिर आंध्र प्रदेश की राजनीति इतनी अस्थिर क्यों हो रही है? इसका एक कारण तो राज्य कांग्रेस में चल रहा नेतृत्व का संकट है। इसके अलावा केन्द्र द्वारा जिस तरह से यहां के मामलो से निपटा जा रहा है, वह भी इसके लिए जिम्मेदार है। राजशेखर रेड्डी की पिछले सितंबर महीने में एक हेलिकॉप्टर दुर्धटना में मौत हो गई थी और उसके बाद से ही राज्य में नेतृत्व का संकट चल रहा है। उनके बेटे जगनमोहन ने राज्य में रथयात्राएं शुरू कर दी हैं। उसके कारण राजनैतिक स्थिति और भी बदतर हो गई है।

राजशेखर रेड्डी का कांग्रेस पर पूरी पकड़ थी। उन्होंने विपक्ष को भी विभाजित कर रखा थां। उनके सफल नेतृत्व में पिछले साल हुए चुनाव में राज्य में कां्रगेस दुबारा सत्ता में आई थी। लोकसभा में कांग्रेस को 33 सीटें हासिल हो गई थीं, जो पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि थीं। पर हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। उनके समय में उनका नंगर दो भी कोई नहीं था।

इसलिए उनकी मौत के बाद उनके बेटे जगनमोहन ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावा ठोक दिया।कांग्रेस आलाकमान ने उनके दावे को पसंद नहीं किया और रोसैया को मुख्यमंत्री बनाया गयां। उसी समय से पार्टी में नेतृत्व का संकट चल रहा है। जगनमोहन ने उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया है। राजशेखर रेड्डी के अनेक समर्थक मुख्यमंत्री के नेतृत्व को स्वीकार ही नहीं करते। वे उनके लिए लगातार समस्या खड़ी करते रहते हैं। जगनमोहन की रथयात्रा मुख्समंत्री को परेशान करने का ताजा उदाहरण है।

दरअसल मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही रासेया के सामने एक से बढ़कर एक समस्या आती रही है। सबसे पहले तो उन्हे पार्टी के अंदर से राजशेखर समर्थकों की चुनातियां मिल रही थीं। फिर एकाएक बाढ़ आ गई। उसके बाद तेलंगना की समस्या पैदा हो गई। तेलंगना आंदोलन का सामना मुख्यमंत्री कर ही रहे थे कि केन्द्र सरकार ने तेल्रगना के गठन की मंजूरी की घोषणा कर दी। उसके बाद तो स्थिति और भी विस्फोटक हो गई और तेलगना के खिलाफ भी आंदोलन होने लगे।

तेल्रगना मसले पर कांगेस में भी विभाजन हो गया। एक धड़ा तेलंगना राज्य का समर्थन कर रहा था तो दूसरा धड़ा उसके विराध में किसी भी हद तक जाने की बातें करने लगा। रोसैया की बात मानना तो दूर, वे कांग्रेस आलाकमान के अनुशासन को भी अंगूठा दिखाने लगे। इसके कारण राज्य में राजनैतिक अस्थिरता अपने चरम पर पहुंच गई थी।

मुख्यमंत्री रोसैया कड़ाई से कानून व्यवस्था का पालन करवाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। उनकी कमजारी स्वतः सपष्ट है। राजशेखर रेड्डी ने तो टी आर एस और उसके नेता चंद्रशेखर राव को बहुत कमजोर कर दिया था, पर केन्द सरकार द्वारा अलग राज्य की मांग को मानने की घोषणा के बाद चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी मजबूत हो गई है। यदि राजशेखर जीवित होते तो शायद टीआरएस अब तक राज्य की राजनीति में अप्रासंगिक हो गया होता, लेकिन अभी तो वह फिलहाल मजबूत स्थिति में है।

राजनैतिक अस्थिरता की इस स्थिति में कांग्रेस अंाध्र प्रदेश में प्रजा राज्यम पार्टी के नेता चिरंजीवी को अपनी रणनीति के दायरे में लाना चाह रही है। कांग्रेस चाहेगी कि चिरंजीवी अपनी पार्टी का उसमें विलय कर दें। चुनाव अभी 4 साल बाद होंगे, इसलिए चिरंजीवी को अपने साथ लेने का तो फिलहसल चुनावी फायदा नहीं दिख रहा है, लेकिन जगनमोहन के कट्टर समर्थकों के पार्टी छोड़े की स्थिति में चिरंजीवी के कुछ विधायक कांग्रेस सरकार को बहुमत में बनाए रखने में फायदा पहुचा सकते हैं।

आंध्र प्रदेश में राज्य सभा के चुनाव भी हो रहे हैं। कांग्रेस के 5 राज्य सभा सांसद रिटायर हो रहे हैं, लेकिन कांग्रेस अपने बूते मात्र 3 राज्य सभा सांसदों को ही जिता सकती है। चौथे उम्मीदवार को जिताने के लिए, उसे चिरंजीवी का समर्थन मिल रहा है।

तेलंगना पर बने श्रीकृष्ण आयोग की रिपार्ट आने के बाद राज्य की स्थिति और भी विस्फोटक हो सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि कांगेस राज्य में संगठन और राज्य का नेतृत्व करने के लिए मजबूत नेतृत्व को शक्ति प्रदान करे। (संवाद)