सबसे 'स्वतंत्र' फैसला मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति एन वी रमना के कार्यकाल के दौरान आया, जब उनकी अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने विवादास्पद राजद्रोह कानून पर विराम लगा दिया, जिसका केंद्र सरकार आलोचकों से निपटने के लिए उदारतापूर्वक उपयोग कर रही थी।आदेश दिया गया कि पुराने ब्रिटिश काल के राजद्रोह कानून के तहत कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाये और लंबित मामलों में अब राजद्रोह को अपराध के रूप में उद्धृत नहीं किया जा सकता है।लेकिन किसी भी मामले को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के मामले में अपनी अक्षमता के लिए जाने जाने वाले न्यायमूर्ति रमना ने उस कानून को पूरी तरह से खत्म करने से कुछ कदम पहले ही रुक गये।बेशक, सरकार द्वारा एक घोषणा के द्वारा उन्हें इसमें मदद मिली थी कि उसने पहले से ही उन पुरातन कानूनों को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने के लिए एक प्रक्रिया शुरू कर रखा है जो देश को उपनिवेशवादियों से विरासत में मिली है।
वर्ष के सबसे विवादास्पद फैसले मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के कार्यकाल के लिए सुरक्षित थे। सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक आधार पर आरक्षण को बरकरार रखा, जिसे व्यापक रूप से आरक्षण की उस व्यवस्था के लिए एक चुनौती के रूप में देखा गया है, जिसका अब तक इस देश में पालन किया जाता रहा है। दूसरा निर्णयगुजरात सरकार के पास बिलकिस बानो बलात्कारियों की जेल की सजा को माफ करने की शक्ति के सन्दर्भ में था, इस तथ्य के बावजूद कि इस मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई थी।आरक्षण के मुद्दे पर, न्यायमूर्ति ललित ने, हालांकि, अपने असहमति के आदेश को दर्ज किया, जिसमें उन्होंने सामाजिक रूप से पिछड़े और समाज के कमजोर वर्गों के सदियों पुराने शोषण के लिए एक उपकरण के रूप में आरक्षण का पुरजोर बचाव किया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल का मूल्यांकन करना जल्दबाजी होगी, जिनका कार्यकाल हाल के न्यायिक इतिहास में व्यापक रूप से एक मील का पत्थर होने की उम्मीद है, यदि न्यायाधीश के रुप में उनके उदार और अपरंपरागत दृष्टिकोणों वाले निर्णयों के आधार पर आकलन किया जाये। शीर्ष अदालत में डॉ चंद्रचूड़ का कार्यकाल, जहां वे लगभग आधी सदी पहले अपने समान रूप से शानदार पिता वाई वी चंद्रचूड़ द्वारा इस्तेमाल की गई कुर्सी पर बैठे थे, ने पहले ही न्यायपालिका और सरकार के बीच संबंधों को कम होते देखा है।इस विवाद ने एक संस्थागत रंग ले लिया है, जिसमें दोनों पक्ष अपने-अपने रूख को सख्त कर रहे हैं।
इस नयी समस्या के उभरने का तात्कालिक कारण कॉलेजियम प्रणाली था, जिसके बारे में अदालत और सरकार परस्पर विरोधी रूख अपना रहे हैं। सरकार न्यायपालिक की सभी समस्याओं के लिए कॉलेजियम प्रणाली को ही दोषी ठहरा रही है।उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मोदी सरकार द्वारा मंजूरी देने से इनकार करने के बाद समस्या उत्पन्न हुई।सुप्रीम कोर्ट ने किरण रिजिजू द्वारा की गयी टिप्पणी से और भी आहत महसूस किया, जो संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह शीर्ष अदालत के खिलाफ अभियान चला रहे हैं।मंत्री ने न्यायपालिका पर 'गंभीर राजनीति' करने का भी आरोप लगाया है और लंबित मामलों के बैकलॉग के लिए सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट को दोषी ठहराया है।
न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका विवाद ने हमेशा जिज्ञासा को आकर्षित किया है।लेकिन यह एक उबलते बिंदु पर पहुंच गया है जब सरकार ने अदालत को बताया कि कानून बनाना संसद का काम है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने पलट कर कार्यपालिका को याद दिलाया कि कानून बनाने की विधायिका की शक्तियों पर सवाल नहीं उठाया जाता है, बल्कि न्यायिक समीक्षा के लिए अदालत की शक्तियांविधायिका द्वारा ही बनाये गये कानूनों से अच्छी तरह से स्थापित हैं।शीर्ष अदालत ने सरकार को याद दिलाया है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की व्यवस्था 'भूमि का कानून' है और इसका अक्षरश: पालन किया जाना चाहिए।
कॉलेजियम पर लड़ाई केवल आकस्मिक हो सकती है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल संवैधानिक मूल्यों और नैतिकता को बनाये रखने में अदालत द्वारा अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए चिह्नित किया जा सकता है, जैसा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दों पर न्यायाधीश के दृष्टिकोण से स्पष्ट होता है।यह एक ऐसा क्षेत्र जोमोदी सरकार के लिए परेशानी का करण है क्योंकि वह तो राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर केंद्रित भाजपा के एजेंडे को ही आगे बढ़ाती है।
वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ने विभिन्न मंचों पर संविधान के इस महत्वपूर्ण पहलू पर अपनी स्थिति को शक्तिशाली ढंग से व्यक्त किया है।वह असहमति को लोकतंत्र का 'सेफ्टी वॉल्व' मानने के लिए जाने जाते हैं, और उन्होंने असहमति को राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी करार देने के सरकार के प्रयासों पर और सरकार द्वारा संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने और लोकतंत्र को बढ़ावा देने की देश की प्रतिबद्धता के विपरीत काम करने के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की है।(संवाद)