अब, जैसा कि बताया गया है, पीएम नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत रूप से स्थिति की निगरानी कर रहे हैं।उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि क्षेत्र में सरकार द्वारा लोगों की सुरक्षा के लिए काम किया जा रहा है और उन्होंने जोशीमठ को बचाने के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया है।हालाँकि, कार्यपालिका के निराशाजनक ट्रैक रिकॉर्ड तथा इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में बहुत अधिक लालच रखने के आरोपों के चलते, मंगलवार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में तत्काल सुनवाई के लिए एक याचिका दायर की गयी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया औरमामला 16 जनवरी को सुनवाई के लिए रखा गया। जाहिर है, सुप्रीम कोर्ट की बड़ी भूमिका है, क्योंकि यह अब न केवल धंसते जोशीमठ को बचाने का सवाल है, बल्कि नैनीताल, उत्तरकाशी, भटवारी, गोपेश्वर, गुप्तकाशी, कर्णप्रयाग, मसूरी और कई गांवोंको बचाने का सवाल है जो इस नाजुक, भूकंपीय रूप से कमजोर, पहाड़ी क्षेत्र में बसें हैं और जहां अनेक घरों में दरारें पड़ गयी हैं।
सरकार जोशीमठ के धंसने को महज एक प्राकृतिक आपदा के रूप में पेश करने की पूरी कोशिश कर रही है, जिसे सच मानने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि यह वास्तव में मानव निर्मित है।पिछले पांच दशकों में कई चेतावनियों के बावजूद जमीन के ऊपर और नीचे निर्माण कार्यों को चलने दिया गया है।जमीन के ऊपर के निर्माणों ने नीचे की भूमि की नाजुक प्रकृति की सतह पर भार बढ़ा दिया है, जबकि भूमिगत निर्माण, सुरंगों और विस्फोटों ने चट्टानी भूभाग को हिलाकर रख दिया है जिससे यह कमजोर हो गया है।
अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि जिन मकानों और होटलों सहित ढांचों में चौड़ी दरारें आ गयी हैं और वे गिरने की कगार पर हैं, उन्हें एक सप्ताह के भीतर गिरा दिया जायेगा।मुख्यमंत्री ने कठिनाइयों का सामना करने के लिए अतिरिक्त सहायता के रूप में 50,000 रुपये के साथ-साथ प्रभावित परिवारों के लिए 1.5 लाख रुपये की अंतरिम सहायता की घोषणा की है।भू-स्खलन से प्रभावित स्थानीय लोगों को बाजार दर पर मुआवजा दिया जायेगा तथा हितधारकों के सुझाव लेकर बाजार की दर पर इसे तय किया जायेगा। राज्य ने आश्वासन दिया है कि जो लोग किराये के आवास में शिफ्ट होना चाहते हैं, उन्हें छह महीने के लिए प्रति माह 4,000 रुपये दिये जायेंगे।जिला प्रशासन को उनके राहत और पुनर्वास प्रयासों में सहायता करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य दोनों आपदा नियंत्रण बलों को तैनात किया गया है।जाहिर है, ये केवल एक छोटा सा राहत कार्य है जो धंसते हुए जोशीमठ और पूरी पर्वत श्रृंखला के गांवों और कस्बों को बचाने के बड़े सवाल को लगभग छोड़ देता है।
सरकार ने केवल यह घोषणा की है कि एक विशेषज्ञ समिति स्थिति का अध्ययन करेगी।सरकार के इस तरह के रवैये से लोगों में गुस्सा है और इसलिए उन्होंने अपना विरोध शुरू कर दिया, जब प्रशासन अस्थिर इमारतों को गिराने के लिए आगे बढ़ा।चमोली के जिलाधिकारी ने जोशीमठ और आसपास के क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा दी है।पहले कदम के रूप में, सरकार को कस्बे में लगभग 25,000 में से 6000 से अधिक परिवारों को खाली करने की उम्मीद है।800 से अधिक घरों में बड़ी दरारें पाये जाने के बाद, शहर को असुरक्षित घोषित कर दिया गया है और इसलिए पूरे शहर को अंततः खाली करने की आवश्यकता है।जानकारों का कहना है कि शहर को बचाया नहीं जा सकता, अब बहुत देर हो चुकी है।
पूरे पर्वतीय क्षेत्र सहित जोशीमठ को बचाने के लिए न तो केंद्र और न ही राज्य कभी गंभीर रहे हैं।जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति पिछले तीन वर्षों से आंदोलन कर रही है और राज्य सरकार को बार-बार चेतावनी दे रही है कि शहर नीचे धंस रहा है।उन्होंने 24 दिसंबर, 2022 को विरोध प्रदर्शन भी किया, जो सरकारों को उनकी नींद से जगाने में विफल रहा।हाल ही में 3 जनवरी, 2022 को लोगों ने ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर नाकाबंदी की, जो सौभाग्य से सरकार का ध्यान खींचने में सफल रही।
एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना एक हिमनदी आपदा में क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके बाद पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों और भूवैज्ञानिकों ने 2021 के अंत में और 2022 में भी जोशीमठ का दौरा किया था। यह आरोप लगाया गया है कि नगर क्षेत्र के नीचे एक सुरंग खोदी जा रही है।
आपदा के लिए हेलंग बाईपास के निर्माण को भी जिम्मेदार ठहराया जाता है, क्योंकि इसका निर्माण चट्टानों को साफ करने के लिए भारी मशीनों और विस्फोटों का उपयोग करके किया जा रहा है।एनटीपीसी ने 5 जनवरी, 2023 को कहा है कि सुरंग शहर के नीचे से नहीं गुजरेगी और इसे मशीनों के माध्यम से खोदा जा रहा है, जिसका अर्थ है कि शहर की नींव हिल नहीं रही है।
ये तो खाल बचाने की तरह हैं, जो सरकारों की बेरुखी ही दिखाते हैं,विशेष रूप से उस पृष्ठभूमि में, जिसमें विशेषज्ञ राज्य के नाजुक पहाड़ी राज्य में भूकंप-तकनीक और भूकंप दोष रेखा पर पड़ने वाली सड़क और रेल परियोजनाओं सहित बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के खिलाफ चेतावनी देते रहे हैं।यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि राज्य में लगभग 66 सुरंगें और 200 से अधिक बांध बनाये जा रहे हैं, जिससे नाजुक पहाड़ी राज्य गंभीर जोखिम में है।विकास तो ठीक है लेकिन इसे नाजुक भूमि वहन क्षमता से आगे नहीं ले जाना चाहिए।
राज्य में भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं कथित तौर पर आधी-अधूरी और अवैज्ञानिक परियोजनाओं का परिणाम हैं।सीएसआईआर के मुख्य वैज्ञानिक डी पी कानूनगो के अनुसार 2009-2012 के बीच चमोली-जोशीमठ क्षेत्र में 128 भूस्खलन दर्ज किये गये थे। 1976 में महेश चंद्र मिश्रा समिति की रिपोर्ट ने भारी निर्माण और सड़क कार्यों के लिए पेड़ों की कटाई और बोल्डर को हटाने के खतरों की चेतावनी दी थी।आगे 2021 में, 12 वैज्ञानिक संगठनों की एक स्वतंत्र समिति ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी थी कि "आगे की खुदाई से जोशीमठ नीचे धंस जायेगा।"राज्य सरकार को 124.54 वर्ग किमी संवेदनशील भूस्खलन प्रवण क्षेत्र को कवर करने वाला एक नक्शा प्रस्तुत किया गया था।भूस्खलन के प्रति संवेदनशीलता की तीव्रता के अनुसार क्षेत्र को छह क्षेत्रों में विभाजित किया गया था।लगभग 39 प्रतिशत को उच्च जोखिम वाले, 28 मध्यम और 29 को कम जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया था।परसरकार उचित कार्रवाई करने में विफल रही जिसके परिणामस्वरूप 2013 में केदारनाथ त्रासदी और भूस्खलन में 4000 से अधिक लोगों की जानें चली गयीं।
इस पृष्ठभूमि में स्थिति का फिर से अध्ययन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन की सरकार की घोषणा बेमानी है।क्षेत्र के लोगों को बिना किसी कार्रवाई के स्थिति के एक अध्ययन के बाद दूसरे अध्ययन के बजाय ठोस कार्रवाई की जरूरत है।उम्मीद है, सुप्रीम कोर्ट ऐसी मानव निर्मित आपदा को महज प्राकृतिक आपदा के रूप में मान्य नहीं होने देगा, जिसे केंद्र और राज्य सरकारें चाहेंगी।हर नुकसान की भरपाई करते हुए राहत कार्यों को तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कि अवैज्ञानिक और गैर-टिकाऊ विकास कार्यों को रोककर पूरे क्षेत्र को बचाया जाये।(संवाद)
जोशीमठ को बचाने में सर्वोच्च न्यायालय बड़ी भूमिका निभाये
मानव निर्मित आपदा को प्राकृतिक बताने की अनुमति न हो
डॉ. ज्ञान पाठक - 2023-01-13 12:18
जोशीमठ महीनों से धंस रहा है, लेकिन केंद्र और राज्य की सरकारों का ध्यान हाल ही में खींच सका, वह भी तब जब धंसना खतरनाक रूप से सामने आने लगा।वर्ष 1976, 2001 और 2013 में दी गयी चेतावनियों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया था।मानव लालच ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जारी रखा जिसने न केवल जोशीमठ के पवित्र शहर बल्कि पूरे पर्वत श्रृंखला के अन्य शहरों और गांवों के धंसाव को गति दे दी।