लेकिन, विनिर्माण क्षेत्र और रोजगार सृजन को बजट कहां बढ़ावा देता है जो मोदी सरकार का प्रमुख कार्यक्रम था! दोनों कोविड-19 के प्रकोप के बाद से लगातार गिरावट के दौर से गुजर रहे हैं। विडंबना यह है कि इसके विपरीत, कृषि ने महामारी के दौरान भी लगातार विकास किया और इस क्षेत्र में बेहतर आय के अवसर सृजित किये।
आयकर राहत का विकास पर मामूली प्रभाव पड़ेगा, यह इस तथ्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि केवल 8 प्रतिशत आबादी कर चुकाती है।अर्थव्यवस्था के प्रमुख संकट विनिर्माण और बेरोजगारी में खराब वृद्धि हैं।विनिर्माण विकास असंतुलित है और बेरोजगारी चरम पर है।
2021-22 के 9.9 प्रतिशत की तुलना में 2022-23 में विनिर्माण के घटकर 1.6 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। सीएमआईई के सर्वेक्षण के अनुसार, दिसंबर 2022 में बेरोजगारी 8.3प्रतिशत के उच्च स्तर पर बनी रही।
भारत का विकास संरचनात्मक रूप से चीन और जापान के लिए विशिष्ट है।जबकि चीन और जापान विनिर्माण और निर्यात पर अधिक निर्भर थे, भारत विकास के लिए बड़े पैमाने पर सेवा क्षेत्र पर निर्भर करता है।इसके बावजूद मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में विकास सबसे निचले पायदान पर है, जबकि भारत में जीडीपी में बढ़ोतरी हुई है।2022-23 मेंविनिर्माण विकास में बड़ी गिरावट के बावजूद, 2021-22 के 8.7 प्रतिशत की तुलना में 7 प्रतिशत की वृद्धि हासिल करने की उम्मीद है।
मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी का महज 17 फीसदी है।भले ही वर्तमान सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण के हिस्से को 2022 में 16-17 प्रतिशत से बढ़ाकर 22 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा था (2014 में चुनाव घोषणापत्र के अनुसार) - मेक इन इंडिया लॉन्च करके, परन्तु अब तक बहुत कम हासिल किया गया।दशक के दौरान, मेक इन इंडिया पर ध्यान केंद्रित करने, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, राज्य स्तर के भूमि सुधारों और डिजिटलीकरण की प्रगति के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र में मामूली वृद्धि ही दिखायी दे रही है।
बेरोजगारी अर्थव्यवस्था के लिए मुख्य संकट बनी हुई है।दूसरे शब्दों में, भले ही जीडीपी कोविड-19 के संकट से काफी हद तक उबरा है, रोजगार के अवसरों में कमी व्याप्त ही है। 2020 में, विनिर्माण को फिर से जीवंत करने के लिए, बजट ने विशेष रूप से एमएसएमई क्षेत्र के लधु, मध्यम और सूक्ष्म इकाइयों को बड़े प्रोत्साहन प्रदान किये।इसने संपार्श्विक दायित्वों के बिना बड़ी ऋण सुविधाएं प्रदान कीं और पीएलआई योजना (उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन) को संशोधित किया तथायोजना के तहत कवर किए गये उद्योग क्षेत्रों को 3 से बढ़ाकर 13 कर दिया।
यह वृद्धिशील बिक्री पर प्रत्यक्ष प्रोत्साहन प्रदान करता है।इस योजना का मुख्य उद्देश्य समावेशी विकास को बढ़ावा देना और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला केंद्र के रूप में भारत को बढ़ावा देना है, क्योंकि चीन अपनी शून्य कोविड नीति के कारण पकड़ खो रहा है।वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की प्रमुखता बढ़ाने के लिए, भारत ने सितंबर 2022 में पहली बार राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति की घोषणा की।
लेकिन, कुछ ही थे जिन्होंने विनिर्माण क्षेत्र को फिर से जीवंत करने के लिए इन नीतिगत पहलों को अपनाया।ऋण का संवितरण एक प्रमुख मुद्दा बना रहा।भले ही एमएसएमई आपूर्ति श्रृंखला वृद्धि का इंजन है, इस क्षेत्र के लिए ऋण का संवितरण सबसे कम था।बैंक ऋण (बकाया) की तैनाती में एमएसएमई की हिस्सेदारी तीन क्षेत्रों, बड़े, सूक्ष्म और लघु के बीच सबसे नीचे बनी रही।दिसंबर 2022 में, यह एमएसएमई के लिए 7.2 प्रतिशत था, जबकि सूक्ष्म और लघु और बड़े पैमाने के क्षेत्र के लिए यह 17.6 प्रतिशत और 75.2 प्रतिशत था।
नया जीवन देने के लिए बजट में पीएलआई योजना और लॉजिस्टिक मुद्दे पर थोड़ा ध्यान दिया गया।पस्त चीनी अर्थव्यवस्था ने अवसर प्रकट किया, जिससे भारत के लिए चीन की आपूर्ति श्रृंखला उद्योग के विकल्प के रूप में उभरने का मार्ग प्रशस्त हुआ।संयुक्त राज्य अमेरिका के एप्पल कम्पनी के चीन से अलग होने और भारत में इकाई स्थानांतरित करने के हालिया निर्णय, और फॉक्सकॉन के भारत में एक विश्व स्तरीय सेमीकंडक्टर संयंत्र स्थापित करने के निर्णय ने भारत में उभरते आपूर्ति श्रृंखला केंद्र के रूप में विदेशी निवेशकों के विश्वास को मजबूत किया।
लेकिन, मैन्युफैक्चरिंग पर बजटीय चुप्पी ने उनके उत्साह पर पानी फेर दिया होगा।भारत दुनिया में मोबाइल फोन के दूसरे सबसे बड़े निर्माता और स्मार्टफोन के सबसे बड़े निर्माता के रूप में उभरा।संयोग से भारत की चीन पर निर्भरता घटने लगी है। 2022-23 (अप्रैल-नवंबर) के पहले नौ महीनों के दौरान, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए चीन पर भारत की निर्भरता 2021-022 (अप्रैल-मार्च) में 49 प्रतिशत की तुलना में घटकर 34 प्रतिशत हो गयी।इसके बाद, चीन से ऑटो घटकों पर निर्भरता 2022-23 के नौ महीनों के दौरान घटकर 24 प्रतिशत रह गयी, जबकि 2021-22 (अप्रैल-मार्च) में यह 26 प्रतिशत थी।
हाल ही में, स्टैंडफोर्ड अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता माइकल स्पेंस ने घोषणा की, "भारत अब उत्कृष्ट प्रदर्शनकर्ता है, यह देखते हुए कि देश निवेश के लिए सबसे पसंदीदा स्थान बना हुआ है"।भारत के लॉजिस्टिक क्षेत्र की दयनीय स्थिति को देखते हुए, जो आपूर्ति श्रृंखला उद्योग के उत्थान के लिए एक महत्वपूर्ण विशेषता है, इस उद्योग से सौतेला व्यवहार होता रहा, सितंबर 2022 में लॉजिस्टिक पर एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा होने तक।
भारत में लॉजिस्टिक लागत दुनिया में सबसे अधिक है।शहरी विकास मंत्री श्री नितिन गडकरी के अनुसार, भारत में इसकी लागत सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्रतिशत है, जबकि चीन में यह 10 प्रतिशत और संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में 8 प्रतिशत है।अगर भारत को चीन की सप्लाई चेन का विकल्प तैयार करना है तो लॉजिस्टिक्स में सुधार के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।प्रमुख मुद्दे, जो भारत के लॉजिस्टिक क्षेत्र को खींच रहे हैं, वे खंडित बाजार, मानक ट्रैकिंग प्रणाली की कमी, पुराने वाहन, अप्रचलित भंडारण सुविधाएं हैं।इन सबसे ऊपर, 99 प्रतिशत से अधिक लॉजिस्टिक क्षेत्र असंगठित क्षेत्र में है।
संक्षेप में, बजट विनिर्माण क्षेत्र में बदलाव करने से चूक गया, जिससे देश में रोजगार और मांग में वृद्धि हो सकती थी।आयकर राहत, हालांकि बड़े पैमाने पर स्वागत किया गया, विकास पर मामूली प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि करदाताओं की संख्या अल्प है।(संवाद)
बजट 2023-24 के प्रस्ताव विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने में विफल
लॉजिस्टिक्स प्रबंधन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता
सुब्रत मजुमदार - 2023-02-09 10:57
भारत का राजकोषीय बजट केवल हिसाब-किताब का विवरण नहीं, बल्कि एक अल्पकालिक आर्थिक नीति भी है।मीडिया ने सराहना की, घरेलू निवेशकों को मध्यम आय वर्ग के लिए अधिक कर छूट और कृषि क्षेत्र के लिए वित्तीय उपहारों से प्रसन्नता हुई।दोनों का वोट बैंक में बड़ा योगदान है।अगला आम चुनाव 2024 में है।