शुक्रवार, 15 सितम्बर 2006

ठेकेदार की धमकी से उठा बवंडर
झारखंड में कोड़ा का राज चलेगा
ज्ञान पाठक

झारखंड की राजनीति में ‘कोड़ा’? यह कोई नयी बात नहीं, फर्क सिर्फ इतना है कि उसका स्वरुप बदला हुआ होगा। पहले सत्ता में बने रहने और निर्बाध लूट-खसोट जारी रखे रहने के लिए धमकियों का कोड़ा चलता था पर अब वहां की राजनीति में मधु कोड़ा ही चलेगा और वह भी मुख्य मंत्री के रुप में।

सरकार के सर्वोच्च स्तर से समर्थन पाकर ठेकेदार मंत्रियों तक को धमकी देने लग गये थे जिसके शिकार मधु कोड़ा भी हो गये थे। यहां इस प्रसंग का उल्लेख मधु कोड़ा को स्वच्छ छवि का चरित्र प्रमाण पत्र देना नहीं है बल्कि कैसी जर्जर अवस्था में झारखंड पहुंच गया है यह बताना मात्र है।

श्री कोड़ा, जो भाजपा के नेता अर्जुन मुंडा की सरकार में संसदीय कार्य मंत्री थे, को आपत्ति थी महज एक 44.4 किलोमीटर लंबी हाटगम्हरिया सड़क की जर्जर हालत पर। उन्होंने अपने जगन्नाथपुर विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र की इस सड़क के निर्माण में भारी गड़बड़ी का आरोप भी लगाया था और मांग की थी कि इस बार इसका निर्माण किसी अन्य ठेकेदार से कराया जाये। लेकिन ठेका उसी को दिया गया सिर्फ रास्ता बदलकर, कोलकाता की एक कंपनी के नाम पर। मधु कोड़ा को इसका पता चलते हो उन्होंने इसपर आपत्ति की। फिर ठेकेदार शंभु सिंह ने टेलिफोन पर उन्हें धमकी दे डाली कि उनके इस ठेके में वह दखलअंदाजी न करें।

सरकार के उच्च स्तर पर उस ठेकेदार की पहुंच के कारण उस धमकी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई जिसके कारण मधु कोड़ा को यह मामला विधान सभा में उठाना पड़ा। स्वयं विधान सभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने इस धमकी की घटना पर खेद व्यक्त किया लेकिन मुख्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने दूसरे ही दिन बयान दे दिया कि वह धमकी थी ही नहीं।

मामला यहीं से बिगड़ गया। अर्जुन मुंडा की सरकार हालांकि जिन चार निर्दलीय विधायकों के समर्थन से चल रही थी उनमें मधु कोड़ा भी शामिल थे, पर उन्हें सत्ता की ताकत ने ऐसा अंधा बना दिया था कि वह भावी खतरा देख नहीं पाये। फिर क्या था – उबाल बिंदु आ गया। मामला तो पहले से ही गरम हो रहा था क्योंकि सरकार में आम जनता की बात तो छोड़ दीजिए, मंत्रियों तक की नहीं सुनी जाती थी। परिणाम स्वरुप चार मंत्रियों ने त्यागपत्र दे दिया और सरकार अल्पमत में आ गयी। फिर भी अर्जुन मुंडा को सरकार बचा लेने का भरोसा इस उम्मीद पर था कि पहले से ही चल रहे तीन विधायकों के खिलाफ चल रहे दल बदल विरोधी कानून के तहत विधान सभा अध्यक्ष अपना फैसला उनके पक्ष में देंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। विधान सभा अध्यक्ष ने अपना फैसला सुरक्षित रखा और कहा कि इन विपक्षी खेमे को विधायकों को अर्जुन मुंडा के विश्वास प्रस्ताव पर मतदान करने का अधिकार होगा। स्पष्टतः सरकार अल्पमत में आ गयी और अर्जुन मुंडा को सदन का सामना करने के बदले त्यागपत्र देने को विवश होना पड़ा। बाद में विधान सभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने भी त्यागपत्र दे दिया।

ध्यान रहे कि मधु कोड़ा 2000 के विधान सभा चुनावों में भाजपा की टिकट पर चुनाव जीतकर विधान सभा में आये थे जिन्हें पार्टी ने फरवरी 2005 के चुनावों में टिकट देने के भी काबिल नहीं समझा। उनकी छवि पार्टी के अंदर भी काफी खराब थी। टिकट न मिलने के कारण वह बागी हो गये तथा निर्दलीय के रुप में चुनाव जीतकर सदन में आये। इसी भाजपा की निगाह में नाकाबिल नेता को फिर काबिल समझा गया और राजग सरकार बनाने के लिए उनका समर्थन लेकर उन्हें मंत्री भी बनाया गया।

उधर कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग का हाल देखिए। लालू यादव और शिबू सोरेन वहां फैसला करने पहुंचे और उनके साथ थे कांग्रेस के स्थानीय नेता सुबोध कान्त सहाय। इन सब ने मधु कोड़ा को ही मुख्य मंत्री बनाने का फैसला लेते हुए एक इतिहास रच दिया।

संपूर्ण भारतवर्ष में लूट-खसोट आज की राजनीति को संचालित करने का मूल आधार बन गया है, लेकिन झारखंड में जो हुआ वह एक इतिहास बन गया। देश में पहली बार किसी राज्य में एक निर्दलीय विधायक ने सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों को बेबश कर स्वयं मुख्य मंत्री बनने का दावा पेश कर यह प्रदर्शित कर दिया कि भारत में पार्टी राजनीति कितनी जर्जर हो गयी है।

अब निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा रविवार को शपथ ग्रहण करने वाले हैं। उनकी सरकार संप्रग की सरकार होगी जिन्हें कांग्रेस, राजद, झामुमो सहित झारखंड विधान सभा के तीनों अन्य निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल होगा। स्पष्ट है कि झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता की तलवार अभी सर पर लटकती रहेगी। #