नरेंद्र मोदी और उनके सिपहसालार अमित शाह द्वारा नीतीश को पद से हटाने के तौर-तरीकों से साफ पता चलता है कि उनके थिंक टैंक के पास प्रचलित राजनीतिक परिदृश्य की व्यापक अवधारणा नहीं थी और वे जमीनी स्तर की सामाजिक और सांप्रदायिक वास्तविकताओं से अलग हैं।उन्होंने बिहार की राजनीति को उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य के संकीर्ण चश्मे से देखा।राज्य के मुसलमानों से नीतीश का नाता तोड़ना उनकी सबसे बड़ी गलती रही है।मोदी और शाह की समझ में, वे केवल वोट बैंक थे।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य में राजनीतिक विमर्श को तय करने में जाति हमेशा प्रमुख कारक रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश के विपरीत, जहां जाति कारक धार्मिक घृणा से जुड़ा हुआ है, बिहार में जाति विन्यास समाजवादी उन्मुख है।यहाँ जाति कारक का उपयोग जाति घटकों के विकास और सशक्तीकरण के लिए किया जाता है।
बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम पर करीब से नज़र डालने से पता चलता है कि नीतीश के एनडीए से संबंध तोड़ने के बाद, भाजपा आक्रामक हो गयी है और यादव, कोइरी और कुर्मी को निशाना बनाने के लिए उच्च जाति के राजपूतों और भूमिहारों के लड़ाकू गिरोहोंको प्रोत्साहित कर रही है।इसी महीने की 6 तारीख को करणी सेना के गुंडों ने सारण जिले के मुबारकपुरिन के सिधारिया टोला मुहल्ले में यादवों के एक गांव पर हमला कर करीब 35 घरों में आग लगा दी थी।
स्थानीय भाजपा विधायक नीरज कुमार सिंह, एक राजपूत ने नीतीश सरकार पर जाति की राजनीति करने का आरोप लगाया था।यह महसूस करते हुए कि हिंसा की इस प्रकृति की राजनीति का उलटा असर होगा, भाजपा नेतृत्व ने नीतीश को नीचे खींचने के लिए अपना "ऑपरेशन लोटस" शुरू किया।भाजपा के कम से कम दो वरिष्ठ नेताओं ने इस खेल में सक्रिय भूमिका निभायी।उनका मिशन पार्टी में फूट डालना था।इसके लिए उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा को चुना, जो काफी समय से नीतीश के खिलाफ काम कर रहे हैं।उनकी मुख्य शिकायत यह थी कि नीतीश ने डिप्टी सीएम के रूप में शामिल किए जाने के उनके दावे को नजरअंदाज कर दिया था।इसके बजाय नीतीश ने तेजस्वी यादव को पद की पेशकश की।हालाँकि नीतीश ने उन्हें संसदीय बोर्ड का प्रमुख बना दिया है, लेकिन वे नीतीश के खिलाफ ताने मारते रहे।
आखिरकार दो दिन पहले, उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया, वह भी नीतीश की इस टिप्पणी पर कि अगर वह इस्तीफा देना चाहते हैं तो उनकी योजना को आकार देने के लिए उनका स्वागत है।पूरे खेल के दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय पासवान कुशवाहा के साथ नजर आये।
भाजपा पहले ही तेजस्वी के खिलाफ एक अभियान शुरू कर चुकी है और उनके पिता लालू यादव को नये मामलों में फंसाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।कुशवाहा का इस्तेमाल उन्हें निशाना बनाने और उनके खिलाफ सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने के लिए कर रही है।
नीतीश के नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने और विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए लगन से काम करने से भाजपा का राजनीतिक तंत्र उनके प्रति पूरी तरह से शत्रुतापूर्ण हो गया है।यह एक सच्चाई है कि मोदी और शाह हिंदी पट्टी के किसी भी अन्य विपक्षी नेता की तुलना में उनसे अधिक डरते हैं।
जद (यू) के रैंक और फ़ाइल में भ्रम पैदा करने के लिए, भाजपा द्वारा एक नया अभियान शुरू किया गया है।इस बार ऐसा प्रतीत होता है कि कमान वरिष्ठ नेता सुशील मोदी को सौंपी गयी है, जिनकी विडंबना यह है कि उनके पास महत्वपूर्ण अनुयायी नहीं हैं।यहां तक कि राज्य के भाजपा नेताओं का एक बड़ा हिस्सा भी उनके निर्देशों और सुझावों को नहीं सुनता है।बुधवार को ही सुशील मोदी ने भविष्यवाणी की कि उपेंद्र कुशवाहा का जद-यू छोड़ना कोई सामान्य घटना नहीं है और “यह जद-यू में पहला विद्रोह है और इसके दूरगामी परिणाम होंगे।इससे पता चला है कि चीजें कमजोर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नियंत्रण से बाहर हैं।”
भाजपा निषाद नेता मुकेश सहनी को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है।उनकी पार्टी के चार विधायक हैं।वह उपमुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक थे।सूत्रों की मानें तो भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उन्हें सम्मानित पुनर्वास का आश्वासन दिया है।
उधर भाजपा को केन्द्र की सत्ता से बाहर करने के लिए नीतीश ने चौतरफा योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। उनका ध्यान सिर्फ अपने राज्य में ही नहीं, बल्कि देश पर भी है।वह आरएसएस और भाजपा पर अपने हमले तेज करेंगे।बापू गांधी को किसने मारा?क्या हम भूल गए हैं?हमें गांधी के हत्यारों के बारे में नयी पीढ़ी में जागरूकता पैदा करनी है।
दूसरा, वह लोगों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं और फीडबैक मांग रहे हैं कि क्या वे कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं।वह इसका उपयोग गैर-यादव तथा अत्यंत पिछड़े वर्गों तक पहुंचने के लिए करते हैं, जो राज्य के मतदाताओं के लगभग 28% हैं। वहा महादलितों तक भी पहुंच रहे हैं।
तीसरा, नीतीश और उनके डिप्टी दोनों ही नौकरी देने का काम करते रहे हैं।सरकारी सूत्रों का कहना है कि गठबंधन सरकार चार महीने में करीब सवा लाख नौकरियां दे चुकी है।जिस चीज ने मोदी और शाह को सबसे ज्यादा परेशान किया है, वह है नीतीश सरकार का जातिगत जनगणना शुरू करने का फैसला।इसमें भाजपा को खत्म करने और ओबीसी के बीच ताकत को मजबूत करने की क्षमता है, जिस तरह से 1990 के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट ने उनके बीच एकता कायम की थी।(संवाद)
हिंदी पट्टी में नई सोशल इंजीनियरिंग से घबड़ायी भाजपा
उत्तर प्रदेश में संभावित असर से डरा हुआ है भगवा नेतृत्व
अरुण श्रीवास्तव - 2023-02-25 15:25
लगभग सात महीने पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) सुप्रीमो नीतीश कुमार के बाहर निकलने से भारतीय राजनीति पर कई सवाल खड़े हो गये हैं। इसने बिहार में अगड़ी और पिछड़ी जातियों के वोटों को मजबूत करने की भाजपा की उम्मीद को चकनाचूर कर दिया है।हिंदी पट्टी की राजनीति में नीतीश कुमार को बदनाम कर हाशिये पर डालने की भाजपाकी रणनीति का न केवल उलटा असर हुआ है, बल्कि भगवा पार्टी के लिए अस्तित्व के संकट की स्थिति भी पैदा हो गयी है।