महबूब कैसर को पार्टी का अध्यक्ष बनाकर केन्द्रीय आलाकमान ने मुसलमानों को अपनी ओर खींचने की रणनीति बनाई है। मुसलमान लालू को छोड़ने लगे हैं, इसका पता तो पहले से ही चल रहा था। लालू के बाद मुसलमानों की पहली पसंद कांग्रेस ही होगी, यह भी किसी से छिपा हुआ नही था, लेकिन कांग्रेस ने महिला आरक्षण को राज्य सभा से पारित करवाकर लालू को मुसलामानों के बीच फिर से मजबूत बनाने का काम किया है।

मुसलमान बिहार में ही नहीं, बल्कि देश भर में महिला आरक्षण विधेयक के वर्तमान स्वरूप के खिलाफ हैं। उन्हें लगता है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद लोकसभा और विधानसभाओं मे उनकी भागीदारी और भी कम हो जाएगी। वो पहले से ही अपनी जनसंख्या के अनुपात से बुित कम हिस्सेदारी लोकसभा और विधानसभाओं में कर रहे हैं। महिला आरक्षण विधेयक से उनकी हिस्सेदारी और भी कम हो जाएगी। यह कोई काल्पनिक भय नहीं है, बल्कि एक हकीकत है। और यही कारण है कि मुसलमान महिला आरक्षण् के वर्तमान रूप का विरोध करते हैं। कांग्रेस के प्रति जो उनका आकर्षण बढ़ रहा था, वह महिला आरक्षण के कारण अब कम हो गया है। और जहां कहीं भी उन्हें महिला आरक्षण का विरोध करने वाला कोई राजनैतिक मंच मिलता हैख् वे उसके साथ हो जाते हैं।

पश्चिम बंगाल के नगर निकायों के चुनाव के परिणामों पर भी महिला आरक्षण की राजनति का असर पड़ा है। वाममोर्चा और कांग्रेस दोनों महिला आरक्षण के कट्टर समर्थक हैं। उनका सामना पश्चिम बंगाल मे ममता बनर्जी से हुआ। ममता पहले खुद महिला आरक्षण का समर्थन करती रही हैं, लेकिन इस बार जब राज्य सभा में उस पर मतदान हुआ, तो उन्होंने इससे दूरी बना ली। लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक को सरकार द्वारा पारित न करवा पाने का श्रेय भी ममता बनजीै को ही चला गया। इसका फायदा उन्हें बंगाल के नगर निकायों के चुनावों मं मिला, क्यांकि मुसलामानों ने उनकी पार्टी को पसंद किया।

पश्चिम बंगाल में 2001 की जनगणना के अनुसार वहां की आबादी का 25 फीसदी मुसलमान हैं। मुसलमान गांवों की अपेक्षा शहरों मे ज्याादा रहते हैं। जाहिर है कि शहरों में उनकी जनसंख्या 25 ॅफीसदी से ज्यादा होगी। इसका तिकोणीय मुकाबले मे जीत के लिए 35 फीसदी मत ही काफी होते हैं। ममता बनर्जी को शहरों मे मुयलमानों के व्यापक समर्थन मिलने के कारण उतना मत मिलना संभव हो गया और उन्होंने सिर्फ अपने बूते वाम मोर्चा का पटखनी दे डाली।

बिहार बंगाल के पड़ोस में ही हैं। यहा ूमुसलमानों की तादाद कुल आबादी का साढ़े सोलह फीसदी है। कांग्रेस की नजर इस आबादी पर है। लंबे समय तक मुसलमान कांग्रेस के पक्ष में ही मतदान करते रहे हैं। पिछले दो दशकों से वे कांग्रेस विराघी हो गए हैं। लेकिन लालू यादव के राजनैतिक पतन के बाद कांग्रेस की ओर एक बार फिर मुसलमानों का रुझान हो रहा है, और उसका फायदा उठाने के लिए ही श्री कैसर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है। पर यदि लालू यादव ने महिला आरक्षण को चुनावी मुद्दा बनाया और यह उक बड़ा मुद्दा बन गया, तो फिर कांग्रेस के लिए मुश्किल हो जाएगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विकास को मुद्दा बनाने मे लगे हुए हैं। जाति आधारित समाज में विकास मुद्दा बन पाता है या नहीं यह देखना अभी बाकी है। पिछले विधानसभा चुनाव मे नीतीश को अगड़ी जातियों का समर्थन मिला था। उसका प्रमुख कारण लालू का उनका विरोध था। लेकिन इस बार नीतीश को उनका पहले की तरह समर्थन पाना आसान नहीं है। उनका रुझान इस बार कांग्रेस की ओर है। कैसर का अध्यक्ष होना कांग्रेस की ओर उनके झुकने मे कोई बाधा खड़ा करने वाला नहीं है, लेकिन कांग्रेस में आपसी गुटबाजी चरम पर है। यह सच है कि अध्यक्ष बनने के कुड समय तक तो कैसर को सभी गुटों का समर्थन मिलेगा। सभी गुट चाहेंगे कि चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष से उनक रिश्तें अच्छे रहें, लेकिन सबके बीच संतुलन बनाण् रखना श्री कैसर के लिए आसान नहीं होगा। (संवाद)