लंदन में राहुल गांधी उस योजना को पटरी से उतारने में लगभग सफल हो गये, जब यूनाइटेड किंगडम में उन्होंने व्यापक रूप से प्रचलित उस धारणा को स्वर दिया जिसमें माना जाता है कि भारत में लोकतंत्र कुत्तों के आगे फेंक दिया गया है, और अगर चीजें वैसी ही बनी रहीं, तो वह समय भी आयेगा जब लोग इस कहावत पर भी भरोसा करना छोड़ देंगे कि "हर कुत्ते का दिन फिरते हैं"। नहीं, भारत में सिर्फ हमेशा धड़कता लोकतंत्र ही नहीं बल्कि उसकी उम्मीद भी मर गयी है।
भाजपा के कई "सूत्रों" के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार को भरोसा दिला दिया है कि राहुल गांधी ने लोकसभा में अपना पक्ष रखने का अधिकार ही खो दिया है, जबकि उनपर एकतरफा आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंनेलंदन मेंअपने मन की बात कहकर भारत के प्रति एक पवित्र करार तोड़ा है, जबकि यह लोकतंत्र की असली जननी है।
इसके अलावा, भाजपा को पूरा यकीन है कि राहुल गांधी माफी नहीं मांगेंगे और यह वायनाड के सांसद को सरकार को बेपर्द करने का अवसर देने की तुलना में भाजपा और मोदी सरकार के अनुकूल ही बैठता है।इसलिए, उन्होंन इस बात पर जोर दिया कि उन्हें "पहले माफी मांगनी चाहिए" और उसके बाद ही सदन में अपने मन की बात कहें।
आप देखिए कि सरकार और भाजपा को किस प्रकार देर से पता चला कि वे स्वये जाकर एक जाल में फंस गये हैं। उन्होंने स्वेच्छा से अपने सिर को एक फटी हुई बांस में फंसा लिया है। अगर उन्होंने राहुल को संसद में बोलने नहीं दिया तो वह सही साबित होंगे कि भाजपा के शासन में भारत का संसदीय लोकतंत्र मर चुका है और विपक्ष को संसद में बोलने की अनुमति तक नहीं दी जा रही है।
इससे भी बदतर, अगर माइक और संसदीय मंच, दोनों उसे दे दिये गये, तो यह नहीं कहा जा सकता कि आगे क्या होने वाला है?राहुल क्या कहेंगे, राहुल क्या मांग करेंगे, और मोदी-अडानी और हिंडनबर्ग के इर्द-गिर्द बुने गये कथित रूप से सावधानीपूर्वक कोरियोग्राफ किये गये कवर-अप का क्या परिणाम होगा?क्या होगा अगर असली कहानी, सच्ची कहानी, राहुल के बोलने के साथ ही सुलझने लगे? क्या होगा अगर ...? न जाने और ऐसे कितने सवाल उभर आयेंगे?
इसलिए, अपेक्षाओं के अनुरूप, संसद के दोनों सदन हंगामे के साथ खुले और लगातार हंगामे के कारण एक और दिन का स्थगन हुआ।एक दिन पहले जब "गांधी" "अपनी बात बोलने" आये तो फिर यही हंगामा दोहराया गया।राहुल गांधी के शब्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय और वैश्विक योजनाओं के लिए घातक साबित हो सकते हैं।राहुल गांधी मोदी के दोस्त नहीं हैं और वह 'मोहब्बत की दुकान' से सीधे संसद नहीं आये हैं।
इसके अलावा, विपक्षी दलों ने अडानी-हिंडनबर्ग पर जेपीसी जांच की अपनी मांग पर भी चुप्पी नहीं साधी है, हालांकि आरोप लगाए गए थे कि दोनों सदनों में हंगामे के लिए सदन के अंदर "ऑडियो" को म्यूट कर दिया गया था।ऐसा लग रहा था कि जिसके हाथ में माइक्रोफोन था, वहभाजपा का प्रशंसक था और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने साबित करना चाहता था।
कांग्रेस ने दुनिया को यह बताने के लिए यह ट्वीट किया: "पीएम मोदी के दोस्त के लिए सदन मूक है।" हंगामे के केंद्र में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी लोकसभा में नजर आये।उसके चेहरेऔर हाव-भाव से ऐसा लग रहा था कि वह अपनीबात बोलने के लिए उत्सुक हैं।लेकिन उनकी बातों से तो भाजपा के मन की शांति को ही ठेस पहुंचेगी।यह बात और साफ होती जा रही थी कि सदन चलाने का फैसला स्पीकर के हाथ में नहीं है।
"राहुल गांधी जवाब देना चाहते हैं बनाम पहले वह माफी मांगें" का विवाद दोनों सदनों में फिरौती के लिए बना रहेगा।भाजपा का फॉर्मूला राहुल गांधी से पहले माफी मांगने की मांग करके उन्हें अपमानित करना है और उसके बाद ही उन पर लगे सभी आरोपों की बदबू को दूर करने का सहारा लेना है।यह तब स्पष्ट था जब गांधी की लंदन की टिप्पणियों को भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला द्वारा "घृणित और गंभीर रूप से अपमानजनक" करार दिया गया था, जो बहुत पहले गांधी परिवार के वफादार हुआ करते थे।
भाजपा का राग अलापना कि "एक परिवार का अहंकार" "संसद की संस्था" से बड़ा नहीं है, उसके इस विश्वस का प्रकटीकरण है कि यह बड़े पैमाने पर लोगों के साथ प्रतिध्वनित होता है।पूनावाला ने ट्वीट किया, "राहुल ने विदेशी धरती पर विदेशी हस्तक्षेप की मांग करके हमारी संप्रभुता के खिलाफ एक अपमानजनक और गंभीर अपमानजनक टिप्पणी की है।"“आप पहने संसद को नीचा दिखाकर बाद में इसी का सहारा नहीं ले सकते।पहले माफ़ी मांगो देश से"।
हालांकि, इस बहादुरी और आत्मतुष्टि के पीछे सवाल हैं: क्या होगा अगर राहुल गांधी माफी मांगने से इनकार कर दें?क्या होगा अगर कांग्रेस मोदी के नेतृत्व वाले भारत के बारे में उन सभी गंदी बातों को दोहराये जो उन्होंने अपने लंदन में उजागर की थी?अनजाने में, इसकी घोषणा किये बिना, या बाकी विपक्षी पार्टियों के इससे सहमत हुए बिना, राहुल गांधी विपक्ष के सबसे प्रमुख नेता तथा प्रधानमंत्री पद का चेहरा बन गये हैं।शहजाद पूनावाला इसे स्वीकार नहीं करेंगे परन्तु "मोदी-अडानी-हिंडनबर्ग" 2024 के लिए विपक्ष का मुख्य चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। 1989 के लोकसभा चुनावों में, विपक्ष ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स का हौवा खड़ा कियाऔर चुनाव जीता। अब 35 साल बाद क्या 2024 के चुनावों में वही खेल दोहराया जा सकता है जब इस बार राजीव के बेटे राहुल ने भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोला है? (संवाद)
भाजपा राहुल को बना रही विपक्षी खेमे का हीरो
क्या अडानी-मोदी प्रकरण 2024 लोकसभा चुनावों में मुख्य मुद्दा होगा?
सुशील कुट्टी - 2023-03-18 11:14
नरेंद्र मोदी सरकार कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को तब तक संसद में बोलने नहीं देगी, जब तक कि वह सरकारी फरमान नहीं मान लेते।लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को तो भूल ही जाइए, उनके पास सरकार के खिलाफ जाने का कोई मौका नहीं है।फिर जहां तक भाजपा के बाकी लोगों की बात है, जिनमें वे भी शामिल हैं जो संसद सदस्य नहीं हैं, उन्होंने तो न केवल मोदी को प्रधानमंत्री पद पर बनाये रखने की शपथ ली है, बल्कि नोबेल शांति पुरस्कार पर भी उनकी नजर है!