पंजाब सरकार ने पिछले दिनों पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट को बताया कि 1984 के आपरेशन ब्लूस्टार में मारे गए भिंडरावाले एक आतंकवादी थे। उन्हें आतंकवादी मानने वालों की कोई कमी नहीं है, लेकिन पंजाब सरकार द्वारा इस तरह की बात करना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इसका नेतृत्व शिरोमणि अकाली दल कर रहा है।

शिरामणि अकाली दल भिंडरावाले को अब तक शहीद संत का दर्जा देता रहा है। उसके नियंत्रण वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी की भी अब तक यही मान्यता रही है। उसने तो भिंडरावाले को महिमामंडित करते हुए उनकी एक बड़ी तस्वीर भी लगवा रखी है। भिंडरावाले की मौत की बरसी मनाने और उसके भोग में शामिल होने में भी शिरोमणि अकाली दल के नेता कार्यकर्त्ता परहेज नहीं करते थे।

इस पृष्ठीाूमि में भिंडरावाले को 1984 के आपरेशन ब्लू स्टार में मारा गया आतंकवादी बताना शिरोमणि अकाली दल के उनके प्रति आए रवैये में आया एक बहुत ही बड़ा बदलाव है। पंजाब में आतंकवादी आज फिर अपने सिर उठाने की कोशिश में लगे हुए हैं और उन्हें पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई का समर्थन भी हासिल है। पैसे माहौल में अकाली राजनति के सबसे बड़े खिलाड़ी द्वारा भिंडरावाले से अपने को अलग कर लेना आतंकवाद को बढ़ाने का मंसूबा पाल रहे संगठनों के के इरादों पर पानी डालने वाला साबित हो सकता है।

अकाली दल (पंच प्रधान) ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर भिंडरावाले की 26वीं बरसी सार्वजनिक तौर पर मनाने का आदेश जारी करने की अपील की थी। अपील में कहा गया था कि उनके आयोजनों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाने से सरकार को रोका जाय। लेकिन सरकार ने उस याचिका का विरोध किया और कहा कि भिंडरावाले मारे गए एक आतंकवादी थे। इसलिए उनसे संबंघित आयोजनों पर अंकुश लगाने के सरकार के अघिकार को चुनौती देना गलत है। याचिका का यह कहते हुए भी विराध किया गया कि याचिका कर्ता का संगठन भिंडरावाले को संत बदा बहादुर सिंह के साथ एक पोस्टर में छापकर दोनों को उक नजरिए से देख और दिखा रहा है। गौरतलब है कि संत बंदा बहादुर को सिखों के बीच मं बहुत ही इज्जत और सम्मान से याद किया जाता है। उन्होंने 1708 में मुगलों के ऊपर एक बहुत बड़ी विजय हासिल की थी।

भिंडरावाले को लेकर शिरोमणि अकाली दल में आया यह बदलाव अनायास नहीं है। सच तो यह है कि 1990 के दशक से ही अकाली दल उदार हो रहा है। उसने उसी समय से सभी धर्मों के लोगों के लिए अपनी पार्टी के दरवाजे खोल दिए थे, हालांकि उसने तब निर्वाचन आयोग के दबाव में ऐसा किया था, पर उस बदलाव के कारण अकाली दल को चुनाव में फायदा हुआ। उसे पता चला कि पार्टी को उदार बनाए रखने में ही राजनैतिक लाभ भी है। इसके अलावा वह एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहा है। उसे अपनी सहयोगी भाजपा का भी ख्याल रखना है। कारण चाहे जो भी शिरोमणि अकाली दल की राजनीति में आ रहा यह बदलाव पंजाब के लिए बहुत ही अच्ठा है। (संवाद)