पिछले 25 साल से असहनीय पीड़ा भुगत रहे गैस पीड़ितों के साथ-साथ न्याय के नाम पर लगातार छलावा मिला है. भोपाल गैस त्रासदी मामले में सीजेएम मोहन प्रकाश तिवारी ने यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन केशव महेंद्रा, विजय गोखले, किशोर कामदार, एसए कुरैशी, एसपी चौधरी, जे. मुकुंद एवं केपी शेट्टी को विभिन्न धाराओं के तहत दो-दो साल की सश्रम कारावास एवं प्रति दोषी 1 लाख 1750 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई. य्ाूनिय्ान कार्बाइड इंडिय्ाा लिमिटेड को 5 लाख 1750 रुपए की सजा सुनाई गई. फैसले के बाद 25-25 हजार रुपए की जमानत पर आरोपी जेल जाने से बच गए. कोर्ट के अंदर सीबीआई एवं आरोपियों के वकील और आरोपी को ही जाने की अनुमति मिली. इस बात से गैस पीड़ित संगठन नाराज हुए, उनका कहना था कि हम पीड़ित हैं और हमारे साथ इस तरह व्यवहार किया जा रहा है, मानो हम ही अभियुक्त हों.

अदालत के इस फैसले का तीखा प्रतिकार हुआ है, पर जिन धाराओं में केस दर्ज था, उसमें यह अधिकतम सजा है. विभिन्न संगठनों का आरोप है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में सरकार के इशारे पर सीबीआई ने केस की विवेचना ठीक से नहीं की. आरोपियों के खिलाफ जनसंहार के खिलाफ केस चलना चाहिए था, पर सरकार ने हमेशा कंपनियों के पक्ष में काम किया. गैस पीड़ित संगठन उच्च न्यायालय में अपील करने की योजना बना रहे हैं.

दुनिय्ाा के भीषणतम औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल गैस त्र्ाासदी को हुए 25 साल बीत चुके हैं पर उस घटना की चपेट में आए लाखों लोगों के जख्म आज तक नहीं भर पाए. भोपाल स्थित य्ाूनिय्ान कार्बाइड इंडिय्ाा लिमिटेड से 2.3 दिसंबर, 1984 की रात को मिथाइय्ा आइसो साय्ानेट गैस की रिसाव में 15274 लोगों की मौत हुई थी और 5 लाख 73 हजार लोग सीधे तौर पर घाय्ाल हुए थे. त्र्ाासदी के पचीस साल बाद भी पीडित लोग उचित पुनर्वास, उचित मुआवजा, उचित इलाज और सुरक्षित वातावरण के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कारखाना परिसर के गोदामों में पडे हुए 350 मिट्रिक टन जहरीले कचरे का निष्पादन एक चुनौती बना हुआ है. गैस पीडितों के लिए संघर्ष कर रहे संगठनों का कहना है कि परिसर क्षेत्र्ा में 8000 मिट्रिक टन जहरीले रासाय्ानिक कचरा दफन है और परिसर के सोलर इंपोरेसन तालाब में 10000 मिट्रिक टन रासाय्ानिक कचरा है. कचरे के कारण परिसर के आसपास के कॉलोनिय्ाों का भूजल प्रदूषित हो गय्ाा है, और आसपास का वातावरण खराब हो गया है.

गैस पीडित महिला उद्योग संगठन के संय्ाोजक अब्दुल जब्बार कहते हैं, ’’अदालत के इस फैसले का अनुमान पहले से ही था कि गैस पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा. गैस पीडित पिछले 25 साल से त्र्ाासदी का दंश झ्ोल रहे हैं, पर उनके बारे में लगातार य्ाह भ्रम फैलाय्ाा जा रहा है कि उन्हें उचित मुआवजा मिल चुका है, उनके इलाज के लिए पयर््ााप्त सुविधाएं मुहैय्ाा करा दी गई है और अब उन्हें कोई परेशानी नहीं है. लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है. सरकार ने गैस पीड़ितों के साथ 1989 में सबसे बड़ा छल किया था. मुआवजा के लिए 1989 में य्ाूनिय्ान कार्बाइड के साथ हुए समझ्ाौते में 3 हजार मृतकों और एक लाख 2 हजार घाय्ालों के लिए मुआवजा लिय्ाा गय्ाा था, जबकि दावा अदालतों में चली सुनवाई में मृतकों की संख्य्ाा 15274 और घाय्ालों की संख्य्ाा 5 लाख 73 हजार सामने आई. आश्चयर््ा की सरकार ने उसी राशि से पांच गुना अधिक लोगों को मुआवजा बांट दी, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दावेदारों की संख्य्ाा बढने पर सरकार अतिरिक्त राशि की व्य्ावस्था करेगी. एक ओर हम इस उचित पुनर्वास, उचित मुआवजा, उचित इलाज और सुरक्षित वातावरण के लिए अदालतों का चक्कर लगा रहे हैं, तो दूसरी ओर इस बात की मांग कर रहे है कि मुख्य अभियुक्तों को फांसी से कम सजा नहीं दी जाए. पर सीबीआई न तो वारेन एंडरसन को कभी कोर्ट ला पाई और न ही इस केस को अदालत में सही तरीके से प्रस्तुत किया. यह दुःखद है, पर हम आगे भी लड़ाई जारी रखेंगे.‘‘

गैस त्रासदी भोपाल के लिए ऐसा जख्म है, जिसे आनेवाली पीढ़ियां भी नहीं भुला पाएगी. कई अनुवांसिक बीमारियों से जूझ रहे गैस पीड़ितों की दास्तां बाहरी लोगों के लिए अबूझ पहेली है. सरकार भी यह कहती है कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है, पर कोई उनकी आवाज उठाने या फिर उनकी लड़ाई लड़ने के लिए आगे नहीं आ रहा है. उलटे केन्द्र सरकार तो वर्तमान में सिविल उत्तरदायित्व के लिए परमाणु नुकसान विधेयक ला रही है, उसके पारित हो जाने पर भविष्य में यदि कोई परमाणु दुर्घटना होगी, तो भोपाल गैस त्रासदी से भी बुरी स्थिति देखने को मिलेगी. निश्चय ही यदि सरकार चाहती तो गैस पीड़ितों के जख्म पर मलहम लगाया जा सकता था, पर उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया. (संवाद)