गौरतलब है कि सपा प्रमुख ने यूपीए में शामिल होने की अपनी इच्छा का इजहार कर दिया है। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि यदि ममता की तृणमूल यूपीए से बाहर होती है, तो यूपीए सरकार को बनाए रखने के लिए सरकार में शामिल होने से कोई परहेज नहीं होगा।

दरअसल समाजवादी पार्टी का मुस्लिम जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है और उसके साथ ही पार्टी की जमीन भी सिकुड़ती जा रही है। यादवों के मतों को भी अपने साथ रख पाना मुलायम के लिए मुश्किल हो रहा है। अमर सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद सपा में यह महसूस किया जा रहा है कि पार्टी को केन्द्र की सरकार में शिरकत करनी चाहिए और कुछ मंत्रालय उनके पास होने चाहिए।

पार्टी प्रवक्ता मोहन सिंह ने भी राज्य में बसपा को पराजित करने के लिए सेकयुलर दलों की एकता पर जोर दिया है। उनके उस बयान का एकमात्र मतलब यही हो सकता है कि पार्टी कांग्रेस के साथ न केवल केन्द्र में सत्ता की साझीदारी करना चाहती है, बल्कि वह राज्य में बसपा के खिलाफ उसके साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहती है।

दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से इस तरह का संकेत नहीं मिल रहा है कि पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी तालमेल की हद तक जा सकती है। राहुल गांधी राज्य का व्यापक दौरा कर रहे हैं और उन्होंने हाल ही में मिर्जापुर में कहा था कि उनकी पार्टी राज्य की सभी सीटों से अपने उम्मीदवार खड़ा करेगी। राज्य के कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि सपा द्वारा कांग्रेस को राज्यसभा चुनाव में समर्थन दिए जाने का ज्यादा अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए।

समाजवादी पार्टी से भी ज्यादा दिलचस्प राष्ट्रीय लोकदल द्वारा कांग्रेस को दिया गया समर्थन है। रालोद नेता अजित सिंह देश की राजनीति में मोलतोल करने वाले नेता की ठवि रखतें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने लखनऊ के अमौसी हवाई अड्डे का नाम अपने पिता चौधरी चरण सिंह के नाम पर करवा लिया था, लेकिन कांग्रेस के साथ उनकी चुनावी तालमेंल नहीं हुआ। उन्होंने तालमेल किया भाजपा से।

अब चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिलाने की उनकी कोशिश चल रही है। कहा जा रहा है कि वे अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय तक कराने को तैयार है। इसके लिए उनकी दो मुख्य शर्तें हैं। वे खुद अपने लिए केन्द्र में एक अच्ठा मंत्रालय चाहते हैं और अपने बेटे के लिए कांग्रेस संगठन में एक अच्ठा सा पद। वे चाहते हैं कि उनका सांसद बेटा राहुल गांधी की टीम का एक प्रमुख सदस्य बने। (संवाद)