अब दो साल की सजा पर हाय तोब्बा मचाया जा रहा है और इसे अपराध के आयाम को देखते हुए नाकाफी बताया जा रहा है। हाय तोब्बा मचाया जाना गलत नहीं है। सजा वास्तव में नाकाफी है, पर सवाल उठता है कि क्या इसके लिए अदालत जिम्मेदार है अथवा कोई और? जवाब ढूंढ़ना कठिन नहीं है।

दरअसल इस कांड के जो मुख्य अभियुक्त हैं, उनपर मुकदमा चलाया ही नहीं गया। इस मुकदमे के मुदई भोपाल की जनता को होना चाहिए था, सीबीआई को नहीं। और इस मुकदमें के मुख्य अभियुक्त केन्द्र की सरकार, राज्य की सरकार और यूनियन कार्बाइड को बनाया जाना चाहिए था। केन्द्र सरकार भोपाल गैस कांड का एक प्रमुख अभियुक्त है, क्योंकि यूनियन कार्बाइड को मिथाइल आइसो साइनेट गैस के उत्पादन की इजाजत उसने ही दी थी।

सबसे पहले तो यूनियन कार्बाइड को एक जहरीली गैस भारत में बनाने की इजाजत देना भारत सरकार की ओर से किया गया पहला अपराध है। लाइसेंस उसे समय दिया गया था, जिस समय देश में लाइसेंस राज चल रहा था और लाइसेंस हासिल करना कोई आसान काम नहीं होता था। लाइसेंस देने के पहले जिन पहलुओं पर ध्यान रखा जाना चाहिए था, वह ध्यान रखा ही नहीं गया। यूनियन कार्बाइड को जिस जहरीली गैस को भोपाल में बनाने की इजाजत दी गई थी, उसे भारत में नहीं बेचा जाता था। उसकी बिक्री वापस अमेरिका में ही होती थी। वह यूरोप और आस्ट्रेलिया में भी भेजी जाती थी, लेकिन वह भारत के लिए नहीं थी।

सवाल उठता है कि आखिर उस जहरीती गैस का उत्पादन यूनियन कार्बाइड अपने देश अमेरिका में क्यों नहीं करना चाहता था। जहर बनाने के लिए उसने भारत को ही क्यों चुना और भारत ने उसे इजाजत क्यों मिली? जिन लोगों ने उस जहरीली गैस के भारत में उत्पादन के लिए लाइसेंस जारी किए थ,े वे सभी इसमें अपराधी हैं, लेकिन उनमें किसी के खिलाफ मुकदमा चलाया ही नहीं गया। उसी तरह मध्य प्रदेश सरकार भी इस कांड के लिए जिम्मेदार है, जिसने कारखाने के लिए जमीन दी। यदि जमीन दी ही गई, तो वह भोपाल जैसे घनी आबादी वाले इलाके में ही क्यों दी गई? दूर दराज इलाके में भी जमीन दी जा सकती है, जो आबादी से बहुत दूर हों। तब दुर्घटना की स्थिति में कम से कम वे लोग तो नहीे मारे जाते, जिनका उस कारखाने और उसमें हो रहे जहरीली गैस के उत्पादन से कोई लेना देना नहीं था।

लेकिन सीबीआई ने केन्द्र सरकार की तरह मध्यप्रदेश सरकार को भी जहरीली गैस कांड के लिए राज्य सरकार को भी अदालत के कटघरें में खड़ा नहीं किया। आखिर सीबीआई केन्द्र सरकार को कटघरे में खड़ा कैसे करता? वह खुद ही केन्द्र सरकार के अधीन काम करता है। सीबीआई के निदेशक के पास इतना दम ही नहीं कि वह अपने राजनैतिक आकाओं को अपनी जांच के घेरे मे लाए।

यूनियन कार्बाइड को तो इस कांड के लिए दोषी बनाया गया, लेकिन उसके अध्यक्ष एंडरसन को गिरफ्तारी के दिन ही रिहा कर दिया गया। फिर एंडरसन कानून की गिर्फत मंे कभी आया ही नहीं। जिन लोगों को सजा दी र्गइं है, उनमें सबसे बड़े अधिकारी हैं केशब महेन्द्र, जो यूनियन कार्बाइड की भारतीय सब्सिडियरी के अकार्यकारी अध्यक्ष थे। जाहिर है जो असली दोषी थे, वे कानून के दायरे में कभी आए ही नहीं। (संवाद)