दरअसल लोकसभा के आमचुनाव में खराब प्रदर्शन करने के बावजूद बसपा विधानसभा उपचुनावों में एक के बाद एक जीत हासिल करती रही है। लोकसभा चुनाव के तुरत बाद हुए विधानसभा के उपचुनावों में उसने लखनऊ पश्चिम को छोड़कर सारी सीटों पर विजय प्राप्त कर ली थी। इस बार डुमरियागंज के उपचुनाव में तो उसकी जीत की मार्जिन भी बहुत रही। उसकी उम्मीदवार ने 44,765 मत प्राप्त किए, जबकि निकटवर्ती भाजपा के उम्मीदवार ने मात्र 28,927 मत प्राप्त किए।

सपा और बसपा के उम्मीदवार मुसलमान थे। मुसलमानों की पार्टी माने जाने वाली पीस पार्टी ने अपना एक हिन्दू उम्मीदवार खड़ा कर रखा था। भाजपा को भरोसा था कि मुसलमानों के मत तीन भागों में बंटने और हिन्दू मतों के ज्यादातर उसके खाते में पड़ने के कारण वह सीट निकाल भी सकती है। लेकिन उसे निराशा हाथ लगी।

पर भाजपा से भी ज्यादा निराशा समाजवादी पाटी्र और कांग्रेस को लगी हैख् जिनके उम्मीदवार क्रमशः चौथे और पांचवे नंबर पर खिसक गए और उनकी जमानतें भी जग्त हो गईं। पिछले आमचुनाव में समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बसपा उम्मीदवार से एक हजार से भी कम मत से हारा था, लेकिन इस बार तो सपा उम्मीदवार अपनी जमानत जब्त कराते हुए चौथे नंबर पर खिसक गया। मुलायम सिंह यादव की पकड़ मुसलमानों पर लगातार कमजोर होती जा रही है, इस उपचुनाव का उनके लिए यही संदेश है।

कांग्रेस को भी डुमरिया उपचुनाव ने निराश किया है। राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के 2012 मिशन को लेकर बहुत मेहनत कर रहे हैं। उन्हें 2012 के विधानसभा उपचुनाव से बहुत उम्मीदें हैं, लेकिन उनका उम्मीदवार 5वें नंबर पर रहा और उसकी जमानत भी जब्त हो गई। प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रीता जोशी बहुगुणा ने बसपा की जीत के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुप्योग को जिम्मेदार बताया है, लेकिन इस तरह की सफाई से राहुल गांधी संतुष्ट नहीं हैं। डुमरिया्रंज की हार उन्हें इसलिए भी चुभ रही है कि लोकसभा चुनाव के दौरान यहां से कांग्रेस को अच्छे मत मिले थे। गौरतलब है कि कांग्रेस के नेता पूर्व मुख्यमंत्री जगदंबिका पाल डुमरिया लोकसभा क्षेत्र का संसद में प्रतिनिधित्व करते हैं।

लोकसभा चुनाव में उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन के बाद कांग्रेस का उत्साह तो बढ़ा है, लेकिन उसके बढ़े उत्साह पर विधानसभा के उपचुनावों मे मिल रही हार पानी छिड़कने का काम करती है। केन्द्रीय मंत्री आरपीएन सिंह और प्रदीप जैन लोकसभा के चुनाव जीतने के पहले विधानसभा में थे। लोकसभा में जीत के कारण उन्होंने विधानसभा की अपनी सीटें खाली कर दी थीं। उन सीटों पर हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस जीत नहीं सकी थी और दोनों सीटों पर बसपा का ही कब्जा हो गया था। डुमरिया विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों ने काग्रेस की उन हारों से लगे जख्म को भी जिंदा कर दिया है।

जाहिर है कांग्रेस और समाजवादी पार्टी- दोनों इस चुनाव नतीजे से आहत हैं। दोनों के उम्मीदवारों की जमानतें यहां जब्त हुई हैं। यदि मुसलमान मुलायम को छोड़ रहे हैं, तो वे आवश्यक रूप से कांग्रेस में आ रहे हैं, यह कोई जरूरी नहीं है। इस उपचुनाव का संदेश यही है। जाहिर है ताजा हार से सबक लेते हुए कांग्रेस और सपा को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी। (संवाद)