चीन भारत को पहले से कहीं ज्यादा स्टील निर्यात कर रहा है क्योंकि उसकी अपनी घरेलू मांग कम हो गयी है। सिकुड़ती निर्माण गतिविधियों और आर्थिक मंदी के कारण घरेलू इस्पात की मांग में गिरावट के साथ, चीन अपने ब्लास्ट फर्नेस को पूरी तरह से चार्ज रखने के लिए निर्यात पर जोर दे रहा है। कीमतों में छूट और युआन के कमजोर होने से चीन को अपने उद्देश्य हासिल करने में मदद मिल रही है।
जनवरी के बाद से, युआन में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग पांच प्रतिशत की गिरावट आयी है। भारत के अलावा, चीन अधिशेष इस्पात को उतारने के लिए अपने ओबीओआर (वन बेल्ट वन रोड) भागीदारों और एशिया और अफ्रीका में चीन की परियोजना सहायता प्राप्तकर्ताओं पर भी निर्भर है।
भारत ने आवास, निर्माण और बुनियादी ढांचे की गतिविधियों और ऑटोमोबाइल उद्योग की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपने इस्पात उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक मेगा योजना बनायी है। इसकी अर्थव्यवस्था अगले कई वर्षों तक सालाना छह प्रतिशत से ऊपर बढ़ने की उम्मीद है। हालाँकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक है (पिछले वर्ष 128 मिलियन टन उत्पादन हुआ था), इसकी इस्पात निर्माण क्षमता और उत्पादन चीन के स्तर से काफी नीचे है।
भारत को अपने भविष्य के आर्थिक विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस्पात, अलौह धातुओं, कोयले और बिजली के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता होगी। भारत की प्रति व्यक्ति इस्पात खपत विश्व औसत 233 किलोग्राम के मुकाबले केवल 77 किलोग्राम है। पिछले 10 वर्षों में, भारत की प्रति व्यक्ति इस्पात खपत काफी बढ़ गयी है। आने वाले वर्षों में चीन की अपनी इस्पात खपत में कमी आना निश्चित है जैसा कि दुनिया के पूर्व शीर्ष तीन इस्पात उत्पादक देशों जैसे अमेरिका, जापान और रूस में देखा गया था।
चीन अपनी घरेलू खपत में कमी की क्षतिपूर्ति करने के लिए निर्यात बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहा है। अपनी इस्पात मिलों को चलाने और नौकरियाँ बनाये रखने के लिए पर्याप्त कोशिशें की जा रही हैं। वह विलय और समामेलन के माध्यम से अपने इस्पात उद्योग का पुनर्गठन कर रहा है। इस साल चीन का स्टील निर्यात पिछले साल के 67.32 मिलियन टन के मुकाबले 77 मिलियन टन के शिपमेंट को आसानी से पार कर जाने की उम्मीद है।
दुर्भाग्य से, भारत के पास अपने इस्पात उद्योग को चीनी निर्यात हमले से बचाने और विकसित करने के लिए एक ठोस रणनीति का अभाव है। चीन के विपरीत, भारत में इस्पात उद्योग नियंत्रण मुक्त है। सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह देश की इस्पात खपत को बढ़ावा देने के लिए केवल एक सुविधा प्रदाता के रूप में कार्य करेगी।
2017 में भारत सरकार ने 2030-31 तक प्रति व्यक्ति स्टील की खपत को 160 किलोग्राम तक बढ़ाने पर आधारित एक राष्ट्रीय इस्पात नीति (एनएसपी) का अनावरण किया था। गति-शक्ति मास्टर प्लान, विनिर्माण क्षेत्र के लिए 'मेक-इन-इंडिया' पहल, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि के माध्यम से बुनियादी ढांचे के विकास पर सरकार का जोर देश की स्टील की मांग और खपत को गति प्रदान करने वाला है। एनएसपी की सफलता काफी हद तक लौह अयस्क, मैंगनीज, क्रोमियम, निकेल, कोयला, बिजली और परिवहन जैसे इनपुट की लागत को नियंत्रित करने जैसे कारकों पर निर्भर करेगी।
इस्पात मंत्रालय के पास आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ एक संयुक्त कार्य समूह है जिसमें आवास और निर्माण क्षेत्र में इस्पात के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, आईआईटी और एनआईटी जैसे तकनीकी संस्थानों और उद्योगों के सदस्य हैं।
भारत सरकार ने उत्पादन से संपृक्त प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत विशेष इस्पात के उत्पादन के लिए लगभग 26 कंपनियों के 50 से अधिक आवेदन स्वीकार किये हैं। पीएलआई से वार्षिक विशेष इस्पात उत्पादन क्षमता को 26 मिलियन टन तक बढ़ाने और 30,000 करोड़ रुपये का निवेश उत्पन्न करने में मदद मिलने की उम्मीद है। सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 10 लाख करोड़ रुपये के विशाल पूंजीगत व्यय की भी घोषणा की है, जिससे सभी क्षेत्रों में निवेश के जबरदस्त अवसर खुले हैं।
चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों के दौरान, देश की तैयार इस्पात की खपत आठ प्रति शत बढ़कर 20.3 मिलियन टन रही, जो पिछले छह वर्षों में सबसे अधिक है, जबकि इस अवधि के लिए कच्चे इस्पात का उत्पादन 22.4 मिलियन टन था, जो पिछले छह वर्षों से छह प्रतिशत अधिक है।
चीनी स्टील डंपिंग ब्लिट्ज देश के स्टील उत्पादन लक्ष्यों को आंशिक रूप से अस्थिर कर सकता है। उदाहरण के लिए, पिछले साल जून में भारत के इस्पात आयात में चीन की हिस्सेदारी 26.1 प्रतिशत थी। इस साल जून के दौरान यह आंकड़ा बढ़कर 37.1 प्रतिशत हो गया। चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में चीन से देश का तैयार इस्पात आयात छह साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। चीन भारत के लिए दूसरे सबसे बड़े इस्पात निर्यातक के रूप में उभरा, जिसने 0.2 मिलियन टन मिश्र धातु बेची, जो पिछले वर्ष की समान अवधि से 62 प्रतिशत अधिक है।
बिजली के बुनियादी ढांचे और इलेक्ट्रिक मोटरों में उपयोग किए जाने वाले चीन निर्मित विद्युत स्टील बाजार में बाढ़ ला रहे हैं। भारत ने पिछले अप्रैल और मई में 0.9 मिलियन टन तैयार स्टील का आयात किया। वैश्विक बाजार में चीन द्वारा पेश की जाने वाली स्टील की कीमतों की बराबरी कुछ ही देश कर सकते हैं। चीनी स्टील के निर्यात पर प्रति टन 30 से 50 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के बीच छूट दी जा रही है।
भारत के अपने इस्पात निर्यात में भारी गिरावट के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है। हैरानी की बात यह है कि भारत ने अभी तक सब्सिडी वाले चीनी स्टील के आयात पर काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीवीडी) नहीं लगायी है। 2022-23 के दौरान भारत का इस्पात निर्यात सालाना आधार पर 50.2 प्रति शत घटकर 6.72 मिलियन टन रह गया।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश के तैयार इस्पात निर्यात में छह प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी गई और यह 2.05 मिलियन टन रह गया। इस्पात मंत्रालय के अनंतिम आंकड़ों के अनुसार, जून में निर्यात 28 प्रतिशत गिरकर 0.5 मिलियन टन रह गया, जबकि मई में 0.7 मिलियन टन स्टील शिपमेंट हुआ था। इस साल अप्रैल-मई के दौरान, भारत ने 1.6 मिलियन टन तैयार स्टील का निर्यात किया, ज्यादातर यूरोपीय देशों को।
कुल मिलाकर भारत निकट भविष्य में चीन के मौजूदा इस्पात उत्पादन स्तर तक नहीं पहुंच सकता है, भले ही देश की अर्थव्यवस्था सालाना छह प्रतिशत से अधिक बढ़ती हो। 2020 में विश्व उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 56.6 फीसदी थी। पिछले साल इसकी हिस्सेदारी 54 फीसदी थी। दुनिया के अन्य प्रमुख इस्पात निर्माता हैं: अमेरिका, जापान, रूस, दक्षिण कोरिया, तुर्की, जर्मनी और ब्राजील। ये सभी प्रति वर्ष 100 मिलियन टन से कम उत्पादन करते हैं। तीसरे स्थान पर रहे अमेरिका ने 2022 में 94.7 मिलियन टन कच्चे इस्पात का उत्पादन किया था। जापान का उत्पादन 89.23 मिलियन टन, रूस का 71.5 मिलियन टन और ब्राजील का 37 मिलियन टन था। भारत की वर्तमान इस्पात नीति की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि देश अपने बढ़ते इस्पात उद्योग को चीन के डंपिंग से कैसे बचाता है। (संवाद)
भारत में इस्पात डंप कर रहा है चीन, भारतीय इस्पात निर्माता गहरे संकट में
चीन के इस्पात उत्पादन की तुलना में भारत 15 प्रति शत नीचे
नन्तु बनर्जी - 2023-08-08 12:51
एक अरब टन से अधिक वार्षिक कच्चे इस्पात उत्पादन के साथ चीन दुनिया का सबसे बड़ा इस्पात निर्माता बन गया है और भारत में अपनी लौह धातुओं को लगातार डंप कर भारतीय इस्पात निर्माताओं को गहरे संकट में डाल दिया है। दरअसल, 2030 तक अपनी उत्पादन क्षमता को 150 मिलियन टन के मौजूदा स्तर से दोगुना कर 300 मिलियन टन करने की भारत की कोशिश को वह कमजोर करना चाहता है।