कोलकाता में ब्रिटिश काल में बनी लाल रंग की ईंटों की दो बिल्डिंग है। एक है राइटर बिल्डिंग और दूसरी है केएमसी, जिसमें कोलकाता महानगर निगम का दफ्तर है। केएमसी पर तों ममता बनर्जी का कब्जा हो चुका है और राइटर बिल्डिंग पर भी विधानसभा के चुनावों के बाद कब्जा होने के पूरे आसार है। ममता ने केएमसी को चलाने के लिए एक नई व्यवस्था की है। अब केएमसी सिर्फ चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा ही नहीं चलाया जाएगा, बल्कि ममता ने एक सलाहकार समिति का गठन किया है, जिसके सदस्यों की संख्या तृण्मूल कांग्रेस के नगर पार्षदों की संख्या के बराबर है। सलाहकार परिषद में समाज के सभी क्षेत्रों के लोगों को जगह दी गइै है। कोलकाता में 7 चैंबर्स ऑफ कामर्स हैं और उनके प्रतिनिधि सलाहकार परिषद में शामिल किए गए हैं।

राज्य के व्यापार और उद्योग जगत के लोग तेजी से ममता बनर्जी की ओर अपना पाला बदल रहे हैं। उन्हें इसमें कुछ भी समय नहीं नग रहा है। अब ममता के इर्द गिर्द उनकी भीड़ देखी जा सकती है। ममता भी अब अपनी छवि सुधारने के लिए अवसर का इस्तेमाल कर रही है। टाटा नैनो प्रोजेक्ट के खिलाफ आंदोलन करने के कारण उनकी उद्योगोन्मुख छवि का धक्का लगा था। अब उनकी यह छवि बदलने लगी है। उन्हें पता है कि सत्ता में आने के बाद उन्हें उद्योगपतियों की जरूरत पड़ेगी और उद्योगपतियों को उनकी जरूरत पड़ेगी।

दिलचस्प बात यह है कि शहरी निकायों के चुनाव ने कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों को यह सीख दे दी है कि आने वाले विधानसभा चुनावों मे उन्हें मिलकर लड़ना होगा, तभी वे वाममोर्चा को सत्ता से हटा सकेंगे। हालांकि ममता बनर्जी अकेले की वाम मोर्चा पर भारी पड़ी हैंख् लेकिन सच यह भी है कि अनके शहरों में कांग्रेस और तृणमूल के अलग अलग लड़ने का फायदा वाम मोर्चा के उम्मीदवारोें को हुआ। अब तृणमूल को 26 शहरों की नगरपालिकाओं पर कब्जा करने के लिए कांग्रेस की सहायता लेनी पड़ रही है। कांग्रेस अपने बल पर 7 शहरो में पर कब्जा करने मे सफल है और 6 अन्य शहरों में उसे काबिज होने के लिए तृणमूल की सहायता लेनी पड़ रही है। दोनों के अलग अलग चुनाव लड़ने का एक फायदा यह भी हुआ है कि दोनों को अपनी असली ताकत और कमजोरियों का अहसास हो गया है, जो विधानसभा चुनाव में उनके द्वारा सीटों की तालमेल में सहायक हो सकता है।

अगले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की जीत राज्य के व्यापारी वर्ग के लिए खास मायने रखता है। यदि त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आ गई, तो राजनैतिक अस्थिरता के कारण राज्य के उद्योगों के विकास का काम खटाई में पड़ जाएगा। बहरहाल, औद्योबिक और व्यापारी वर्ग ममता बनजीै की जीत के प्रति आश्वस्त दिखाई पड़ रहा है और उसने सुश्री बनजीै की पार्टी के साथ अपने समीकरण मजबूत करने शुरू कर दिए हैं। उन्हे उम्मीद है कि राज्य में उद्योगों का कायाकल्प हो जाएगा। (संवाद)