अब गौड़ा भी पार्टी में खतरनाक दरार के लिए जिम्मेदार हैं, जिसे कुछ लोग यह कहकर खुद को बेवकूफ बना रहे हैं कि यह विभाजन नहीं है, बल्कि केवल मतभेद है जो बनते-बनते विभाजन में तब्दील हो गया है। सबसे ख़राब स्थिति में, जेडी सेक्युलर एक जर्जर रस्सी से लटका हुआ है और अलार्म बजाने की कोई ज़रूरत नहीं है, भले ही राज्य पार्टी प्रमुख हर किसी को बता रहे हों कि यह मेरा रास्ता है या राजमार्ग।
सी एम इब्राहिम कोई स्प्रिंग-चिकन नहीं हैं। न ही उनका जन्म कल हुआ था। वह जनता दल (सेक्युलर) का वर्तमान मुस्लिम चेहरा हैं।
उनके कारण मुसलमानों के बहुत सारे वोट जद (एस) को मिलते हैं। अगर जनता दल (सेक्युलर) भाजपा के साथ बने रहने पर जोर देती है तो उसे उनके वोट से चूकना होगा जो पार्टी बर्दाश्त नहीं कर सकेगी। जब गुस्सा शांत होगा और इस विशेष नाटकीय घटनाक्रम पर धूल जम जायेगी, तो बेहतर समझ कायम होगी और पार्टी एकजुट रहेगी।
सही? नहीं गलत। गौड़ा कबीले की चुनौती को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। यह अवज्ञा है जो विभाजन से भी आगे जाती है। यह एक बेशर्म अधिग्रहण बोली है। पिता-पुत्र की जोड़ी एक कंप्यूटर चिप की तरह बदली जा सकती है। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के साथ गठबंधन करने का पार्टी का निर्णय एक तैयार बहाना है। सीएम इब्राहिम का कहना है कि उनका "गुट" मूल है और गौड़ा का जद (एस) विभाजित है। किसी भी स्थिति में, भाजपा के साथ गठबंधन करने का मतलब है कि जनता दल अब "धर्मनिरपेक्ष" नहीं रहेगा।
अगर किसी को अब भी आपत्ति है तो बता दें कि राज्य इकाई के अध्यक्ष के रूप में इब्राहिम को न केवल निर्णय लेने बल्कि उन्हें कर्नाटक में लागू करने का भी पूरा अधिकार था। इब्राहिम का फैसला है कि जद (एस) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी भाजाप के नेतृत्व वाले एनडीए में नहीं रहेगी और वह इस फैसले से एचडी देवेगौड़ा को अवगत कराने के लिए एक कोर कमेटी बनाने जा रहे हैं।
जनता दल (सेक्युलर) की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष का विद्रोह हवा के साथ चलना तय है। अगर उनका फैसला जनता दल (सेक्युलर) में संभावित विभाजन का संकेत दे रहा है तो ऐसा ही होगा। जाहिर तौर पर आधा जनता दल (सेक्युलर) इब्राहिम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। "मैं जद(एस) का कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष हूं," यह हाल के दिनों में किसी द्वारा दिया गया सबसे जोरदार राजनीतिक बयान है।
तो, जनता दल (सेक्युलर) में विभाजन का ट्रेंड है। सीएम इब्राहिम के हवाले से कहा जा रहा है कि पार्टी ने 2024 का आम चुनाव लड़ने के लिए एनडीए में शामिल नहीं होने का फैसला किया है और पार्टी सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा की अब कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है। अब केवल उन विधायकों की संख्या गिनना बाकी है जो गौड़ा को गिराने में इब्राहिम के साथ शामिल हो गये हैं। इब्राहिम ने भाजपा के साथ संबंध तोड़ने के फैसले को "हमारा पहला निर्णय" करार दिया। दूसरा, देवेगौड़ा से भाजपा के साथ गठबंधन के लिए "नहीं" कहने का अनुरोध करना था। कोर कमेटी देवेगौड़ा से मिलेगी और उन्हें बतायेगी कि जहां तक जनता दल (सेक्युलर) का सवाल है तो यह खेल भाजपा के लिए है।
देवेगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी ही थे जिन्होंने भाजपा के साथ जनता दल (सेक्युलर) का गठबंधन किया था। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा से मुलाकात की। दोनों दल गठबंधन पर मुहर लगाने ही वाले थे कि तभी इब्राहिम ने पूरे भाजपा-जनता दल (सेकुलर) समझौते पर पानी फेर दिया।
क्या भाजपा को इसका अनुमान था? बिल्कुल नहीं, जब तक जनता दल (सेक्युलर) ने ऐसा नहीं किया। इब्राहिम ने भाजपा के साथ-साथ गौड़ा को भी मुश्किल में डाल दिया है। उन्होंने अपनी गेंद गुगली के बराबर फेंक दी और इसने न केवल गौड़ा नेतृत्व को क्लीन बोल्ड कर दिया, बल्कि भाजपा को भी बाहर कर दिया। क्रिकेट में ऐसा कभी नहीं हुआ।
भाजपा मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनावों में उतर रही है और मतदाताओं के मन में जनता दल (सेक्युलर) के त्याग की यादें ताजा हैं। क्या जनता दल (सेक्युलर) का फैसला उन पांच राज्यों में मतदान पर अपनी छाप छोड़ेगा जहां चुनाव होंगे? इब्राहिम ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन उनकी "सर्वसम्मत राय" है जो सदैव दिमाग में रहेगी और शायद प्रभाव भी डालेगी।
फिर यह फैसला रद्द नहीं किया जायेगा। कुमारस्वामी और देवेगौड़ा ग्रामीण परिदृश्य को उलट-पुलट कर सकते हैं लेकिन निर्णय कसौटी पर खरा उतरेगा। इब्राहिम ने कुमारस्वामी को "भाई" और देवेगौड़ा को "पिता" कहा और उन्होंने कहा, "उन्हें मेरा संदेश है कि कृपया वापस आ जायें", जो पिता और पुत्र को बता रहा है कि जनता दल (एस) आपकी समझ से बाहर है।
ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि एक परिवार द्वारा संचालित पार्टी ने अपना जुआठ उतार फेंका है। कम से कम एक राजनीतिक राजवंश लूप से बाहर है। यह भी सोचने के लिए है कि भाजपा, जो वंशवाद की इतनी विरोधी है, उसके साथ गठबंधन करने पर आमादा थी, चुनावी राजनीति की लूट के लिए एक वंशवाद का सहारा। विरोधाभास दिमाग चकरा देने वाला है। (संवाद)
एक कमजोर रस्सी पर लटका है कर्नाटक जनता दल (एस) और भाजपा का संबंध
देवगौड़ा के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद से परिवार पर सबसे बड़ा संकट
सुशील कुट्टी - 2023-10-18 10:55
कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) बीच में बंट गयी है। यदि संगठन के बाह्य रूप में नहीं, तो कम से कम मनभेद से। पार्टी के बड़े नेता सी एम इब्राहिम इस झगड़े के केंद्र में हैं, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और उनके बेटे, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाले गौड़ा परिवार को गठबंधन चुनने के लिए मुश्किल स्थिति में डाल दिया है, और उनके लिए ही दुखद है कि “सार्वभौमिक राजनीतिक अछूत”, भारतीय जनता पार्टी के साथ, जो लोकतांत्रिक दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी भी है।