कांग्रेस नेतृत्व उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में भाजपा से मुकाबला करने के लिए इंडिया ब्लॉक में संभावित रूप से शामिल होने के लिए मायावती के संपर्क में था। कांग्रेस को इस बात का एहसास है कि बसपा के शामिल होने से इंडिया ब्लॉक को ताकत मिल सकती है, जो केंद्र में सत्ता हासिल करने की दिशा में भाजपा के कदम को रोक सकती है।

साथ ही भाजपा चाहती थी कि मायावती और उनकी बसपा इंडिया गठबंधन से बाहर रखकर स्वतंत्र रूप से ही चुनाव लड़े। अब मायावती के ताजा निर्णय से जब लोकसभा में 80 सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में लगभग सभी सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना है तो भाजपा नेतृत्व को लगता हो कि इससे उनको फायदा जरूर होगा। हो सकता है कि मायावती सीट न जीतें लेकिन उनकी पार्टी निश्चित रूप से इंडिया गठबंधन को नुकसान पहुंचाएगी, क्योंकि भाजपा विरोधी मतों का विभाजन निश्चित रूप से होगा।

बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती को इंडिया गुट का हिस्सा बनने या न बनने की दुविधा का सामना करना पड़ रहा था। उनपर विपक्षी राजनीतिक पार्टियों तथा भाजपा का भी दबाव था कि वह उनके गठबंधनों में शामिल हों। परन्तु अन्ततः उन्होंने किसी भी गठबंधन में शामिल होना फिलहाल उचित नहीं समझा और निर्णय किया कि उनकी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव स्वतंत्र रूप से ही लड़ेगी।

कांग्रेस नेतृत्व अब भी मायावती के संपर्क में है और उनसे फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह कर रहा है। ऐसी धारणा है कि यह घोषणा सिर्फ अधिक सीटें हासिल करने के लिए दबाव बनाने के लिए हो सकती है।

इसीलिए अखिलेश यादव ने टिप्पणी की कि चुनाव बाद के परिदृश्य में मायावती की कोई गारंटी नहीं है। यही कारण है कि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बसपा को इंडिया ब्लॉक का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करने के विचार के सख्त खिलाफ हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को बसपा के साथ कड़वा अनुभव हुआ था जब दोनों पार्टियों ने गठबंधन किया था। जबकि बसपा ने अपनी सीटें शून्य से बढ़ाकर 10 कर ली थी, समाजवादी पार्टी 2014 के लोकसभा चुनावों में जीती अपनी पांच सीटें ही बरकरार रख सकी। पार्टियों के बीच इस बात पर सहमति थी कि उनका महागठबंधन 2022 में विधानसभा चुनाव तक जारी रहेगा। लेकिन लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद मायावती ने बसपा उम्मीदवारों के लिए वोट ट्रांसफर नहीं करने के लिए समाजवादी पार्टी को दोषी ठहराया और उन्होंने गठबंधन को एकतरफा भंग कर दिया।

अब समाजवादी पार्टी बसपा के साथ किसी भी सीट बंटवारे को इच्छुक नहीं है। लेकिन क्या मायावती ने इंडिया गठबंधन में शामिल होने का विकल्प चुना है? अखिलेश ने संकेत दिया कि वह अपनी पार्टी के लिए 60 सीटें रखते हुए गठबंधन के लिए अधिकतम 20 सीटें छोड़ सकते हैं। राहुल गांधी की चल रही न्याय यात्रा के मद्देनजर बहुत कुछ कांग्रेस की सौदेबाजी की शक्ति पर निर्भर करता है।

पिछले एक पखवाड़े के दौरान अखिलेश यादव और मायावती के बीच कड़वाहट तब स्पष्ट हो गयी जब बसपा प्रमुख ने समाजवादी पार्टी पर हमला बोला और जनता को 2 जून 1995 के कुख्यात स्टेट गेस्ट हाउस कांड की याद दिलायी। फिलहाल, मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के मायने निकाले जा रहे हैं और उसे इंडिया ब्लॉक से भी बाहर रखने का जबरदस्त दबाव है। (संवाद)