जो लोग एचसीईएस के विवरण के बारे में नहीं जानते, उन्हें कभी पता नहीं चलेगा कि बीवीआर सुब्रमण्यम आखिर कह क्या रहे हैं। वह कह रहे हैं कि गरीब लोग वे हैं जो प्रति दिन 32 रुपये से कम कमाते हैं, और ऐसे लोगों का प्रतिशत 5 से भी कम होने की उम्मीद है। गरीबी रेखा के इस बेतुकी स्तर आलोचना पहले ही 2011-12 में हो चुकी है, और उस समय अधिकांश लोगों ने इसे खारिज कर दिया था, जब तत्कालीन योजना आयोग 32 रुपये प्रति दिन की कमाई पर गरीबी रेखा का विचार लेकर आया था। अब एक दशक बाद एक शीर्ष सरकारी अधिकारी का 32 रुपये की गरीबी रेखा पर आधारित तर्क दोगुना बेतुका है। यह तर्क देने के लिए उन्होंने हाल के 2022-23 सर्वेक्षण को आधार बनाया।

इस दावे का उद्देश्य आगामी लोक सभा आम चुनाव के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की मदद करना है, जब वह और भाजपा अपने तीसरे कार्यकाल के लिए प्रयास कर रहे होंगे, और वे मोदी राज में वृद्धि और विकास की कथा को आगे बढ़ा रहे होंगे। अधिकारी ने आगे कहा, “अगर हम प्रतिदिन 32 रुपये पर जायें, जो कि 2011-12 की अंतिम स्वीकृत गरीबी रेखा थी, और तब से मुद्रास्फीति के रुझान को ध्यान में रखते हुए उस स्तर को दोगुना कर लगभग 60 रुपये प्रतिदिन कर दिया जाए, तो आप देखेंगे गरीबी 10 प्रतिशत से कम है।” इसका मतलब है कि शीर्ष अधिकारी अपने पहले के दावे का खंडन करते हैं कि गरीबी रेखा 5 प्रतिशत से नीचे चली गयी है, जो 2011-12 की कीमतों पर थी, लेकिन मौजूदा कीमतों पर यह 10 प्रतिशत से नीचे होगी।

अब आइए एचसीईएस के अनुसार 2022-23 में विभिन्न वर्गों में मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीसीई) औसत पर आते हैं। श्री सुब्रमण्यम ने स्वयं नोट किया कि निचले 5 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के लिए औसत उपभोग स्तर 1373 रुपये था, जबकि अगले 5 प्रतिशत के लिए यह 1782 रुपये था। कोई कल्पना ही कर सकता है कि यदि कोई व्यक्ति 1373 रुपये या 1782 रुपये प्रति माह पर भी जीवन यापन करता है तो वह गरीब कैसे नहीं है।

“मुझे विश्वास है कि भारत में गरीबी निश्चित रूप से कम एकल अंकों में है, और यह डेटा 5 प्रतिशत से नीचे दिखाता है, यदि आप पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना जैसी योजनाओं के तहत परिवारों द्वारा प्राप्त खाद्य हस्तांतरण और सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर का अनुमानित मूल्य जोड़ते हैं, ”श्री सुब्रमण्यम ने कहा। “आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य देखभाल और मुफ्त शिक्षा जैसे लाभों को उपभोग व्यय सर्वेक्षण में शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा, एक तरह से, गरीबी और अभाव लगभग खत्म हो गया है।

हाल ही में नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक ने 11 फीसदी लोगों को गरीबी रेखा के नीचे रखा था, पीएम मोदी ने दावा किया था कि उनके शासन में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि पीएमजीकेएवाई के तहत 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त अनाज दिया जाता है, जबकि सरकार को खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत अनुमानित 81.4 करोड़ गरीबों में से 1.4 करोड़ गरीबों की पहचान करना बाकी है। इसमें प्रवेश करने वाले और बाहर जाने वाले गरीबों की संख्या एक पहेली बनी हुई है।

अब हम एचसीईएस 2022-23 परिणाम पर आते हैं। सर्वेक्षण पद्धति में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया गया। एचसीईएस 2011-12 में 347 आइटम थे, जबकि 2022-23 में कई नए आइटम जोड़े और कई हटा दिए गये। वर्तमान सर्वेक्षण में कुल मिलाकर 405 आइटम थे। एक प्रश्नावली के स्थान पर तीन प्रश्नावली का प्रयोग किया गया - 1. खाद्य पदार्थों पर 2. उपभोग्य सामग्रियों एवं सेवाओं की वस्तुओं पर, और 3. टिकाऊ वस्तुओं पर। इसके अतिरिक्त, घरेलू विशेषताओं के साथ-साथ घरों के सदस्यों के जनसांख्यिकीय विवरण पर जानकारी एकत्र करने के लिए एक और प्रश्नावली थी। डेटा संग्रह का तरीका पेन-एंड-पेपर पर्सनल इंटरव्यू (पीएपीआई) से बदलकर कंप्यूटर-असिस्टेड पर्सनल इंटरव्यू (सीएपीआई) कर दिया गया। सर्वेक्षण स्वयं चेतावनी देता है कि पिछले सर्वेक्षणों के साथ एचसीईएस 2022-23 के परिणामों की तुलना करते समय इन परिवर्तनों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।

एमपीसीई के अनुमान, जिसके आधार पर श्री सुब्रमण्यम ने तर्क दिया है, में विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से परिवारों द्वारा मुफ्त में प्राप्त और उपभोग की जाने वाली कई वस्तुओं की खपत की मात्रा पर जानकारी एकत्र करने के लिए एक अलग अतिरिक्त प्रावधान भी है। नतीजतन, मुफ्त खाद्य पदार्थों और मुफ्त गैर-खाद्य वस्तुओं जैसे लैपटॉप, पीसी, टैबलेट, मोबाइल हैंडसेट, साइकिल, कपड़े, जूते (स्कूल जूते) आदि के मूल्य आंकड़े "उचित विधि" का उपयोग करके जोड़ दिये गये हैं।

इसलिए यह स्पष्ट है कि एचसीईएस 2022-23 डेटा पहले के डेटा से अलग है जिसे स्पष्ट रूप से समझने की आवश्यकता है अन्यथा यह हमें लोगों की वास्तविक कमाई और उनकी गरीबी के बारे में गलत निष्कर्ष पर पहुंचा देगा।

2022-23 में औसत अनुमानित एमपीसीई ग्रामीण भारत में 3,773 रु. शहरी भारत में 6,459 रुपये है। ग्रामीण लोग भोजन पर 46 प्रतिशत और गैर-खाद्य पर 54 प्रतिशत खर्च करते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह क्रमशः 39 प्रतिशत और 61 प्रतिशत है। एमपीसीई द्वारा रैंक किये गये भारत की ग्रामीण आबादी के निचले 5% का औसत एमपीसीई 1,373 रुपये है, जबकि यह शहरी क्षेत्रों में समान श्रेणी की जनसंख्या के लिए 2,001 रुपये। एमपीसीई द्वारा रैंक किए गए भारत की ग्रामीण और शहरी आबादी के शीर्ष 5% का औसत एमपीसीई क्रमशः 10,501 रु. और 20,824 रुपये है। यह अंतर बहुत गहरा है जो मोदी शासन में असमानता को दर्शाता है।

हालाँकि वर्तमान सर्वेक्षण पूर्व के सर्वेक्षणों से तुलनीय नहीं है, जैसा कि इस सर्वेक्षण ने भी चेतावनी दी है, इसने पहले के सर्वेक्षण के आंकड़ों की तुलना वर्तमान सर्वेक्षण से की है, जो स्वीकार्य नहीं है। 2022-23 के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की खपत का स्तर 3773 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6459 रुपये है। यह स्तर दर्शाता है कि औसत लोग अपनी कम कमाई के कारण बड़ी कठिनाई में हैं।

2022-23 में औसत एमपीसीई में ग्रामीण क्षेत्रों में अनाज की हिस्सेदारी 4.91 प्रतिशत और खाद्य पदार्थों की 46.38 प्रतिशत थी। शहरी क्षेत्रों में ये क्रमशः 3.64 और 39.17 प्रतिशत हैं। यह जानकर निराशा हो सकती है कि लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीण आबादी का औसत एमपीसीई 3,094 रुपये से कम है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 4,963 रुपये है। ग्रामीण क्षेत्रों में शीर्ष तीन फ्रैक्टाइल 80-90 प्रतिशत, 90-95 प्रतिशत और 95-100 प्रतिशत का औसत एमपीसीई क्रमशः 5356 रुपये, 6638 रुपये और 10,501 रुपये था, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 9,582 रुपये, 12,399 रुपये और 20,824 रुपये था।

सबसे कम उपभोग व्यय में फिर से असमानता देखी गयी है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में 0-5 प्रतिशत सबसे कम फ्रैक्टाइल में 1373 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 95-100 प्रतिशत उच्चतम फ्रैक्टाइल में 20,824 रुपये प्रति माह है। ऐसी असमानता स्वीकार्य नहीं है, भले ही हम ग्रामीण और शहरी उच्चतम और निम्नतम फ्रैक्टाइल की अलग-अलग तुलना करें।

अनुसूचित जनजाति (एसटी) का औसत एमपीसीई ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे कम 3,016 रुपये है, जबकि एससी के लिए यह 3,474 रुपये, ओबीसी के लिए 3,848 रुपये और अन्य के लिए 4,392 रुपये है। शहरी क्षेत्रों में सबसे कम एमपीसीई एससी के लिए 5,307 रुपये है, जबकि एसटी के लिए 5,414 रुपये, ओबीसी के लिए 6,177 रुपये और अन्य के लिए 7,333 रुपये है।

एमपीसीई के अनुमान के अनुसार, 2022-23 में मुफ्त वस्तुओं के अनुमानित मूल्यों के साथ औसत अनुमानित एमपीसीई 3,860 रु. ग्रामीण भारत में और शहरी भारत में 6,521 रुपये था। एमपीसीई द्वारा रैंक किए गये भारत की ग्रामीण आबादी के निचले 5% का औसत एमपीसीई 1,441 रुपये तथा शहरी क्षेत्रों में 2,087 रुपये था। एमपीसीई द्वारा रैंक किए गए भारत की ग्रामीण और शहरी आबादी के शीर्ष 5% का औसत एमपीसीई क्रमशः 10,581 और 20,846 रुपये था।

कल्याणकारी योजनाओं के तहत आपूर्ति की गयी मुफ्त राशि के आधार पर गरीबी के स्तर को नकारना महज कुतर्क होगा, क्योंकि यह सिर्फ गरीबी को थोड़ा सहनीय बनाता है, लेकिन कमाई के स्तर को बढ़ाकर गरीबी को खत्म नहीं करता है। यह सिर्फ मुफ्तखोरी और कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से उपभोग स्तर को बढ़ाने की राजनीति है, केवल यह दावा करने के लिए कि गरीबी कम हो गयी है, जो वास्तव में बेकारी और कम कमाई के स्तर के कारण बदतर होती जा रही है। बढ़ती कीमतों ने पहले से ही जीवनयापन की लागत का संकट पैदा कर दिया है। (संवाद)