जैसा कि राजनीतिक विश्लेषक और कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा ने एक बार कहा था कि जिस तरह से अब दलबदल हो रहा है, 2024 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस (नेहरू) बनाम कांग्रेस (मोदी) के बीच मुकाबला होने जा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि भारतीय राजनीति को कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की भाजपा की भव्य योजना के बजाय भाजपा कांग्रेस सदस्यों से भरी हुई हो जायेगी।

गंभीर बात यह है कि इस तरह की व्यापक आया राम, गया राम की राजनीति एक बुनियादी सवाल उठाती है - नैतिकता को क्या हो गया है, खासकर भारतीय राजनीति में। परिपक्व पश्चिमी लोकतंत्र में ऐसा अक्सर होता नहीं दिखता। लोग एक विशेष विचारधारा के प्रति अपनी प्राथमिकता के कारण एक विशेष पार्टी में हैं जिसके माध्यम से वे लोगों की सेवा करना चाहते हैं। यहां भारत में राजनीतिक विचारधारा केवल अपनी सेवा करना प्रतीत होती है। इससे भी बुरी बात यह है कि भाजपा, जो एक विचारधारा पर आधारित पार्टी होने और एक अलग पार्टी होने का दावा करती है, अब आया राम गया राम की राजनीति के सबसे खराब रूप में शामिल हो गयी है। यह न केवल अक्सर होता है बल्कि थोक में होता है।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन लोगों के खिलाफ गंभीर भ्रष्टाचार और आपराधिक मामले लंबित हैं और खुद भाजपा ने उन पर आरोप लगाये हैं, उन्हें अपने पाले में ले लिया है। एक बार कार्रवाई होने के बाद, मामले या तो गायब हो जाते हैं या ठंडे बस्ते में डाल दिये जाते हैं, जिससे कथित अपराधियों को बड़ी राहत मिलती है।

ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का अब कोई मूल्य नहीं रह गया है। यह इस तथ्य को उजागर करता है कि देश में साक्षरता, कौशल और शैक्षिक स्तर में पर्याप्त सुधार के सभी बड़े दावों के बावजूद हमारी शैक्षिक प्रणाली पूरी तरह से दोषपूर्ण है। सच तो यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली जीवन की मूलभूत आवश्यकता यानी नैतिकता नहीं सिखाती। नैतिक शिक्षा का मतलब धार्मिक शिक्षा नहीं है। देखिए इस देश में लोग किस तरह गाड़ी चलाते हैं। नियमों का उल्लंघन करने में डर की कोई झलक नहीं है। यहां तक कि पुलिसकर्मी भी ट्रैफिक सिग्नल पर दूसरी तरफ मुड़ जाते हैं, यह जानते हुए भी कि बड़ी संख्या में लोगों ने सिग्नल पर लाइन पार करके या सिग्नल जंप करके नियमों का उल्लंघन किया है।

भारत में नियम दंडमुक्ति के साथ तोड़े जाने के लिए बने हैं। दोपहिया वाहन चालक अपनी सुरक्षा के लिए हेलमेट नहीं पहनते हैं और पुलिसकर्मी इस उल्लंघन पर संज्ञान नहीं लेते हैं। एक विशेष पोस्टिंग पाने के लिए पुलिसकर्मियों ने स्वयं नियमों का उल्लंघन किया होगा और भ्रष्टाचार में लिप्त होंगे। मूल रूप से कानून का कोई डर नहीं है, जिसे आसानी से झुकाया जा सकता है, खासकर नैतिकता की कीमत पर अमीर और शक्तिशाली लोगों द्वारा। जब उन्हें पढ़ाने वालों में ही नैतिकता नहीं है तो स्कूली छात्रों को दोष क्यों दिया जाये। वे सत्ताधारी स्थानीय राजनेताओं को रिश्वत देकर स्कूलों में, विशेषकर सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में नौकरियाँ पाते हैं।

इस उद्देश्य के लिए संगठित दलाल हैं। निजी स्कूलों में, शिक्षकों को नियामक संस्था द्वारा निर्धारित वेतनमान से कम वेतन दिया जाता है और स्कूल प्राधिकारी उनसे एक शपथ पत्र लेते हैं कि उन्हें आधिकारिक वेतनमान का भुगतान किया गया है। यह हमारे विद्यालयों की मूल नैतिकता है। इसी तरह सरकारी नौकरियों में भी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद है। पिछड़ों के उत्थान के लिए दी गयी संवैधानिक गारंटी आरक्षण में भ्रष्टाचार है। ब्राह्मण के अलावा हर समुदाय के कुछ उप-संप्रदाय आरक्षण श्रेणी के अंतर्गत आते हैं ताकि अमीर और शक्तिशाली लोग शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में प्रवेश पाने के लिए झूठे प्रमाण पत्र प्राप्त करके इस आरक्षण नीति का दुरुपयोग कर सकें। इन सभी मामलों में कुछ को छोड़कर मेधावी और योग्य अनेकों को लाभ नहीं मिल पाता है।

तमिलनाडु में डीएमके के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी का मामला लीजिए। उन्हें राज्य परिवहन निगमों में नौकरियों के संबंध में भ्रष्टाचार के आरोपों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। मामले उस समय के हैं जब वह एआईएडीएमके सरकार में मंत्री थे। अब वह डीएमके में हैं। द्रमुक नेता, एम के स्टालिन, जिन्होंने स्वयं बालाजी के अन्नाद्रमुक में रहने के दौरान भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था, अब उन्हें बचाते नजर आ रहे हैं और उनकी गिरफ्तारी के बाद उन्होंने कई महीनों तक उन्हें बिना विभाग के मंत्री बनाये रखा। हालाँकि उन्होंने हाल ही में इस्तीफा दे दिया, शायद अपना केस लड़ने के किसी मकसद से।

भाजपा भी मुख्य दोषियों में है, अगर कोई बंगाल में सुभेन्दु अधिकारी, असम में हिमंत विश्व शर्मा, अजीत पवार, महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण इत्यादि के मामलों के आधार बनाया जाये। इन सभी व्यक्तियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा द्वारा अक्सर इन पर आरोप लगाये जाते रहे हैं। अब वे भाजपा का हिस्सा हैं और उनके भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कोई बात नहीं होती। ये व्यक्तिगत राजनेताओं के पाला बदलने के मामले हैं। भाजपा द्वारा गोवा, कुछ पूर्वोत्तर राज्यों, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि में सरकार बनाने के लिए धन और बाहुबल के माध्यम से विपक्षी दलों के कुछ विधायकों का समर्थन प्राप्त करके सरकारें बनायी गयी हैं। हाल ही में वे हिमाचल प्रदेश में विधिवत निर्वाचित बहुमत वाली कांग्रेस सरकार को गिराने का प्रयास कर रहे हैं।

अब भाजपा सत्ता में है और मोदी के करिश्मे, पार्टी के बाहुबल और धनबल तथा आरएसएस के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क के समर्थन से, इस अनैतिक आया राम गया राम की राजनीति के कारण सत्तारूढ़ दल को कुछ अल्पकालिक लाभ होना तय है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि उन्होंने कांग्रेस से सबक नहीं सीखा, जो इंदिरा गांधी के समय से जो इस राजनीति की मूल प्रवर्तक थी। निःसंदेह, दो गलतियाँ एक को सही नहीं बनातीं। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि आया राम गया राम की राजनीति के बाद से कांग्रेस की लोकप्रियता और वोट शेयर में लगातार गिरावट आ रही है।

इस गिरावट की वजह इस तरह की राजनीति के प्रति कैडर की नाराजगी है। कैडर स्थानीय स्तर पर पार्टी के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें किसी अन्य पार्टी से आयातित कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाता है, जिसके पास कोई वैचारिक आधार नहीं होता और वह उनका नेता बन जाता है। जीतने की क्षमता का कारक एक या दो चुनावों में काम कर सकता है, लेकिन कैडर परेशान हो जाता है और पार्टी मामलों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना बंद कर देता है। यह नाराजगी तुरंत सामने नहीं आयेगी, लेकिन लंबे समय में इसका असर पड़ेगा, खासकर भाजपा जैसी कैडर आधारित पार्टी पर।

आज तो उनके लिए सब ठीक है, लेकिन वह समय दूर नहीं, जब यह एक और कांग्रेस बन जायेगी, जिसमें केवल नेता होंगे, कैडर नहीं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सही सोच वाले नागरिकों को इस बात पर विचार करना शुरू करना होगा कि हम अपनी नैतिक शिक्षा कैसे सुधारें और उन राजनेताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग कर जितायें, जो सच्चे, नैतिक, ईमानदार हैं और अपने कल्याण के बजाय निर्वाचन क्षेत्र और लोगों के कल्याण के बारे में सोचते हैं। इसके लिए अधिकांश लोगों, विशेषकर उत्पीड़ित लोगों को नैतिक शिक्षा प्रदान करने के लिए एक ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी। यह आसान नहीं होने वाला है और इसके लिए पीढ़ियों तक जबरदस्त प्रयास की आवश्यकता है। (संवाद)