सरकार ने फैसले के कार्यान्वयन को कमजोर करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के माध्यम से कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि अप्रैल 2019 से खरीदे गये चुनावी बांड के सभी विवरण सार्वजनिक किये जाने चाहिए, जिसमें खरीद की तारीख, खरीदार का नाम और बांड का मूल्य शामिल है। इसके लिए, भारतीय स्टेट बैंक, जो चुनावी बांड के लेनदेन के लिए एकमात्र एजेंसी थी, को 6 मार्च तक बांड के सभी प्रासंगिक विवरण भारत के चुनाव आयोग को प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था और उसके बाद चुनाव आयोग को 13 मार्च तक इस सम्बंध में सारी जानकारी सार्वजनिक करनी थी।
एसबीआई ने 4 मार्च को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और चुनावी बांड लेनदेन का विवरण प्रस्तुत करने के लिए अधिक समय मांगा है। इसमें 30 जून तक का समय बढ़ाने के लिए कहा गया है। इसका मतलब यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसबीआई को दिये गये 21 दिनों के बजाय, बैंक अब काम पूरा करने के लिए 116 दिन और चाहता है। दरअसल, इस अर्थ होगा लोकसभा चुनाव खत्म होने और नयी सरकार बनने के बाद ही जनता को चुनावी बांड के विवरण के बारे में सूचित किया जायेगा।
एसबीआई के अनुरोध को व्यापक आलोचना और उपहास का सामना करना पड़ा है। एसबीआई के सभी बैंकिंग परिचालन डिजिटल हो गये हैं। एसबीआई द्वारा दिये गये एक आरटीआई जवाब के अनुसार, चुनावी बांड जारी करने के लिए आईटी प्रणाली के विकास पर कुल 1,50,15,338 रुपये की लागत में से 60,43,005 रुपये खर्च किये गये। यदि चुनावी बांड योजना के लिए एक आईटी प्रणाली विकसित करने के लिए 60 लाख रुपये से अधिक खर्च किये गये थे, तो यह कैसे हो सकता है कि एसबीआई अब यह दावा करता है कि चुनावी बांड के कुछ रिकॉर्ड एसबीआई के मुंबई मुख्यालय में मैन्युअल रूप से और सीलबंद कवर में रखे गये हैं?
जब किसी व्यक्ति या इकाई द्वारा एसबीआई की निर्दिष्ट शाखा में बांड खरीदा जाता है, तो उसे डिजिटल रूप से रिकॉर्ड किया जायेगा। जब धारक बांड किसी अन्य निर्दिष्ट एसबीआई शाखा में जमा किया जायेगा, तो उसका भी एक डिजिटल रिकॉर्ड होगा। 2019 की शुरुआत में, हफ़पोस्ट इंडिया में नितिन सेठी ने लिखा था कि कैसे एसबीआई द्वारा जारी किये गये बांड में एक गुप्त अल्फ़ान्यूमेरिक कोड होता है, जिसका उपयोग यह ट्रैक करने के लिए किया जा सकता है कि बांड किसने खरीदा और किस पार्टी को इसे दान किया गया है।
भले ही कुछ रिकॉर्ड मैन्युअल रूप से रखे गये हों, फिर भी यह मानने का कोई कारण नहीं है कि 22,217 चुनावी बांड का हिसाब-किताब 21 दिनों के अंतराल में नहीं किया जा सकता है। एसबीआई को बस इतना करना था कि इस काम के लिए अतिरिक्त कर्मियों को नियुक्त करता।
इसलिए, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि एसबीआई एक घटिया बहाना और गलत कारण लेकर सामने आया है, जो सुप्रीम कोर्ट की बुद्धिमत्ता का अपमान करने जैसा है।
गलत मंशा इस बात से भी स्पष्ट होती है कि एसबीआई ने 6 मार्च से ठीक एक दिन पहले अदालत में अपनी याचिका दायर की, ताकि समय सीमा चूकना एक नियति बन जाये।
मोदी सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा के पास अब तक जारी किये गये और भुनाये गये चुनावी बांड के विवरण के प्रकाशन को रोकने की कोशिश करने का हर कारण है। जैसा कि अदालत ने स्वयं बताया था, यह योजना इस प्रकार तैयार की गयी थी कि प्रतिदान की सुविधा प्रदान की जा सके। एक बार जब भाजपा को प्राप्त 6,565 करोड़ रुपये के बांड का ब्यौरा पता चल जाये, तो इसका संबंध इस बात से लगाया जा सकता है कि किस कंपनी या व्यक्तिगत पूंजीपति ने उसे कितना बांड राशि दान किया था और बदले में कौन सी नीति या लाभ उसे दिया गया था।
एक और पहलू है जो भाजपा को मिले चुनावी बांड का ब्यौरा प्रकाशित होने से उजागर होगा। न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट द्वारा हाल ही में भाजपा को प्राप्त कॉर्पोरेट दान (चुनावी बांड के माध्यम से नहीं) के एक अध्ययन से पता चलता है कि कम से कम 30 कंपनियां हैं, जिन्होंने पिछले पांच वित्तीय वर्षों में भाजपा को लगभग 335 करोड़ रुपये का दान दिया था। वर्षों तक इसी अवधि के दौरान उन्हें केंद्रीय एजेंसियों द्वारा कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। इनमें से 23 कंपनियों ने 2014 और ईडी या आईटी विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गयी कार्रवाई के वर्ष के बीच कभी भी भाजपा को दान नहीं दिया था; केंद्रीय एजेंसी की कर्रवाई के चार महीनों के भीतर चार कंपनियों ने कुल 9.05 करोड़ रुपये का दान दिया; छह कंपनियां जो पहले से ही भाजपा को दान दे रही थीं, उन्होंने तलाशी के बाद के महीनों में बड़ी रकम सौंपी।
यह इस बात का ज़बरदस्त सुबूत है कि कैसे केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल भाजपा के लिए धन उगाही करने के लिए किया जाता है। एक बार जब भाजपा के संबंध में चुनावी बांड विवरण प्रकाशित हो जाते हैं, तो न केवल रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का के बीच संबंध स्थापित किया जा सकता है, बल्कि यह भी स्थापित किया जा सकता है कि केंद्रीय एजेंसियों की जबरदस्त कार्रवाइयों द्वारा ब्लैकमेल के माध्यम से धन कैसे निकाला गया था।
सुप्रीम कोर्ट 6 मार्च तक एसबीआई की याचिका पर विचार नहीं कर सका। कोर्ट को छल-कपट को पारित नहीं होने देना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय को एसबीआई के अनुरोध पर शीघ्र सुनवाई कर समुचित निर्णय का उसके अनुपालन के लिए तत्काल अल्प समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए, ताकि चुनावों के सम्पन्न हो जाने तक जनता को अंधेरे में न रखा जा सके। (संवाद)
चुनावी बांड विवरण पर समय सीमा बढ़ाने की एसबीआई की याचिका अनुचित
भाजपा को बचाना मूल उद्देश्य, सर्वोच्च न्यायालय को अनुमति नहीं देनी चाहिए
पी. सुधीर - 2024-03-08 10:44
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक और स्पष्ट रूप से मनमाना बताते हुए रद्द कर दिया था। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि मोदी सरकार को यह फैसला अरुचिकर लगा, इस तथ्य की पृष्ठभूमि में कि चुनावी बांड योजना राजनीतिक भ्रष्टाचार को वैध बनाने के लिए बनायी गयी थी।