अपने झूठे अहम् को संतुष्ट करने और इज्जत के नाम पर हत्या को उकसावा देने का यह घिनौना खेल सारा समाज बड़े बजे लेकर देखता है। इस खेल की शुरुआत से लेकर अंत तक की कहानियाँ चटखारे लेकर सुनाई जाती हैं। जितने मुंह उतनी बातें। जितना मसाला इन कहानियों में पड़ता है, उतना ही छोंक उन माँ-बापों के गुस्से में लग जाता है जिन्हे अंदेशा होता है कि उनके बच्चे भी प्रेम की राह पर चल पड़े हैं। इस छोंक से भड़क जाती है नफरत की आग।

दुख इस बात का है कि पुलिस, जिसका यह कर्तव्य है कि वह संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे, वह भी इन विक्षिप्तों को अपराध करते देख गांधी जी के तीन बंदरों की त्रिमूर्ति बन जाती है। असल में यह अपराध को मौन स्वीकृति होती है। हाल ही में दिल्ली हाइकोर्ट ने भी इससे जुड़े सबूतों के आधार पर पुलिस को फटकार लगाई थी। दिल्ली हाइकोर्ट का कहना था कि ‘‘प्रेमी जोड़ घर से भागता है तो आप 376(रेप) का केस दर्ज करते हो और जहां ऐसा करना चाहिए वहां नहीं करते।’’ सच है - सोलह आने सच है। बिना पुलिस की शह के इज्जत के नाम पर बेधड़क हत्यायें नहीं हो सकती हैं। इसका कारण यह भी है कि पुलिस मकहमे के ज्यादातर व्यक्ति भी इज्जत के नाम पर हत्या करने के कीटाणु से ग्रस्त हैं। इसलिए अधिकतर मामलों में मामले को हल्का कर दिया जाता है, या फिर उल्टे प्रेमी जोड़े पर ही आपराधिक धाराएं ठोक दी जाती हैं। क़ानूनन अपराध का साथ देना भी अपराध ही होता है।

कुछ दिन पहले ही दिल्ली में इज्जत के नाम पर योगेश कुमार और आशा सैनी की करंट लगाकर हत्या की गई। इस घटना के बाद लड़की के पिता का बयान आया ‘‘मुझे दुख इस बात का होता है कि लड़की ने मेरी बात नहीं मानी।’’ हद है। अपने बच्चे की हत्या के बाद बच्चे के जाने का दुख या हत्या की ग्लानि तो दूर की बात है, बात ना मानने का मलाल है। क्या इस कथन से आपको नाज़ीवाद और हिटलर जैसी तानाशाही की बू नही आती? क्या दो वयस्कों को अपना जीवन जीने का अधिकार नही है? खुशी पर उनका हक नहीं है? परिवार समाज की इकाई होता है। जब तक हम इकाई स्तर पर मौलिक अधिकारों और लोकतंत्र को स्थापित नहीं कर सकते तब तक सामाजिक स्तर पर कैसे इनकी परिकल्पना की जा सकती है। यह दो वयस्कों के संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई है।

माँ-बाप पर भी मुझे आश्चर्य होता है। वह पिता जो उंगली पकड़ कर चलना सिखाता है वही हाथ-पैर काट देता है। वह माँ जो अपने बच्चे को नौ महीने खून से सींचती है और असहनीय पीड़ा से गुजरकर जन्म देती है। जिस बच्चे को वह अपनी आँखों का तारा और कलेजे का टुकड़ा कहती है, उसी बच्चे के कलेजे को छलनी कर देती है। अपने बच्चो की हत्यारन बन जाती है । जरूर मानसिकता में एक बड़ा बदलाव होता होगा। यह मानसिक बदलाव इज्जत के डर के चलते होता है। कहाँ से आता है यह डर ? यह डर रिश्तेदारों और समाज के तानों का होता है। जाति-वर्ण व्यवस्था में अटूट आस्था रखने वालों को यह डर इतना निर्मम, पत्थर, और विवेकहीन बना देता है कि कल तक जिस बच्चे पर वह जान न्यौछावर कर रहे होते हैं, उसी की जान लेने पर उतारू हो जाते हैं। इसलिए आवश्यकता है कि समाज की यह मानसिकता बदलने का बड़े स्तर पर अभियान चलाया जाए। इस कार्य में समय लगेगा लेकिन लोगों को यह समझाना आवश्यक है कि वयस्क होने के बाद आपकी संतान अपने जीवन के निर्णय लेने की अधिकारी है। आप उन्हें अपनी कठपुतली की तरह नहीं नचा सकते। ना ही वह आपके पालतू जानवर हैं कि जब तक आपका कहना मानते रहे तब तक प्यार-दुलार दिया और जब कहा नहीं माना तो मार दिया। आपके बच्चों को आपने परवरिश दी है, अपनी परवरिश पर इतना भी भरोसा नहीं कि वह सही निर्णय लेंगे?

क्यों आप अपने बच्चों की खुशी में खुश नहीं हो सकते? क्यों आप ताना देने वालों को और बातें बनाने वालों को दो टूक जवाब नहीं दे सकते कि हमारे बच्चों ने जो किया है सही किया है और हम उनके साथ हैं। शायद इसलिए क्योंकि कभी आपने भी दूसरों के बच्चों के फैसले पर फब्तियाँ कसी होंगी और अपने रिश्तेदारों को यह बता रखा होगा कि आप जाति-वर्ण व्यवस्था के कितने बड़े उपासक हैं। तो क्या अपनी ग़लती बार-बार दोहराना चाहेंगे?

मेरी समझ में समाज कल्याण विभाग को विधवा विवाह और भ्रुण हत्या विरोधी अभियान की तर्ज पर इज्जत के नाम पर हत्या के विरोध में भी अभियान चलाना होगा। ताकि समाज की मानसिकता बदली जा सके, तभी कुछ नतीजा निकल पाऐगा। लेकिन यह तभी संभव होगा जब न्याय प्रणाली आधिकारिक रूप से यह स्वीकारेगी कि इज्जत के नाम पर हत्या एक जघन्य अपराध है और इसकी रोकथाम के लिए क़ानून बनाए जाएंगे। इन क़ानूनों के तैयार होने के अनुकूल माहौल तैयार हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रगति दिखाई है और जिन राज्यों से इज्जत के नाम पर हत्या के मामले बड़ी संख्या में सामने आते हैं (पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) उन राज्यों की हाईकोर्ट को नोटिस भेजा है। उम्मीद है कि जल्द ही कोई उपाय निकलेगा और निर्दोशों की बर्बरतापूर्ण हत्याओं पर अंकुश लगेगा। (फर्स्ट न्यूज लाइव)