केजरीवाल को एक दशक पहले एक भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में प्रसिद्धि मिली थी - उन्होंने 2011 में अन्ना हजारे को दिल्ली में दो हाई प्रोफाइल भूख हड़तालों पर बैठाया था - भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जन लोकपाल की मांग की थी, और "सभी राजनेताओं" पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। दिन भर की मीडिया कवरेज के साथ, अन्ना और केजरीवाल एक सनसनी बन गये थे, जिससे तत्कालीन यूपीए सरकार को नुकसान हुआ। हालाँकि, काफी हद तक, एक बड़े संगठन वाली भाजपा – जो पार्टी के रूप में अन्ना आंदोलन के समय बहुत सतर्क थी - ने 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस विरोधी मूड का पूरा फायदा उठाया, और नरेंद्र मोदी को अपना पीएम उम्मीदवार बनाया।

इस बीच, केजरीवाल ने एक स्वच्छ सरकार का नेतृत्व करने के वायदे के साथ आप का गठन किया इस उद्देश्य से कि यह लोगों के लिए काम करेगी। उन्होंने 2013 के विधानसभा चुनावों में दिल्ली में शुरुआती सफलता का स्वाद चखा- 70 में से 28 सीटें जीतीं और कांग्रेस की मौजूदा मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराया। शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन में भाजपा को 32 सीटें मिलीं लेकिन वह बहुमत नहीं जुटा सकी। आठ सीटों वाली कांग्रेस के समर्थन से सीएम बनकर आप ने आश्चर्य चकित कर दिया। उनतालीस दिन बाद, उन्होंने नाटकीय ढंग से इस आधार पर इस्तीफा दे दिया कि दिल्ली विधानसभा उनके जन लोकपाल विधेयक में बाधा डाल रही थी।

उसके बाद केजरीवाल ने 'राष्ट्रीय' मोड़ लेते हुए 2014 में वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। वह लगभग 2.7 लाख वोटों के अंतर से हार गये, लेकिन 2.09 लाख वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। इससे उनका प्रोफाइल और भी ऊंचा हो गया।

2015 की शुरुआत में आप ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की तथा 70 विधान सभा सीटों में से 67 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा को सिर्फ तीन सीटें मिलीं और कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। केजरीवाल ने जीत के कुछ ही महीनों के भीतर प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को "पार्टी विरोधी गतिविधियों" के आधार पर पार्टी से बाहर निकाल दिया। भूषण ने इसे तानाशाही बताया और कहा कि पार्टी एक 'खाप' बनकर रह गयी है।

केजरीवाल की छवि तेजी से एक लोकतंत्रवादी से एक ऐसे व्यक्ति की बन रही थी जो पक्षपात के माध्यम से पार्टी को नियंत्रित करना चाहता था। हालाँकि, बिजली और पानी की सब्सिडी जारी रही। उन्होंने 2014 से 2019 तक दिल्ली में सरकारी स्कूलों और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की स्थिति में सुधार करने का दावा किया। इस प्रकार वह एक लोकलुभावन नेता बन गये, जो विचारधारा अज्ञेयवाद के साथ सेवा-वितरण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। लोकपाल की मांग धीरे-धीरे पूरी तरह गायब हो गयी।

अपनी लोकप्रियता के बावजूद, वह 2019 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत सके, और भाजपा ने सभी सातों सीटों पर जीत हासिल की। 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में, आप ने 62 सीटों के साथ फिर से दिल्ली में जीत हासिल की। भाजपा को सिर्फ आठ सीटें मिलीं।

लेकिन इतना ही नहीं था। केजरीवाल दिल्ली से आगे विस्तार करने और 2022 के विधानसभा चुनावों में पंजाब में शानदार जीत दर्ज करने में सक्षम रहे। उन्होंने 118 में से 92 सीटें जीतीं और कांग्रेस को सिर्फ 18 पर सीमित कर दिया। उन्होंने गुजरात में भी सेंध लगायी तथ विधानसभा चुनावों में 182 में से पांच सीटें जीतीं। गुजरात में कांग्रेस ने 17 सीटें जीतीं जबकि भाजपा ने 156 सीटों के साथ चुनाव जीता।

यह आप को भाजपा के लिए एक संभावित भविष्य की चुनौती बनाता है, जो अभी ध्रुव की स्थिति में है। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने कथित भ्रष्टाचार के लिए अपने मुकाबले के एकमात्र विरोधी कद्दावर नेता पर हमला करके दिखा दिया है कि वह पार्टी के आगे विस्तार से पहले ही उसे खत्म करने को तैयार है। दिल्ली के मुख्यमंत्री को अंततः 21 मार्च की रात को मोदी सरकार के प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और 28 मार्च तक ईडी की हिरासत में रखा गया है। कानूनी लड़ाई जारी रहेगी, लेकिन अहम सवाल यह है कि दिल्ली और पंजाब के लोग आगामी लोकसभा चुना के समय मतदान में कैसी प्रतिक्रिया देंगे? (संवाद)