इस श्रृंखला में नवीनतम है लोकसभा चुनाव से ठीक दो महीने पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की प्रवर्तन निदेशालय द्वारा एक पुराने आरोप में गिरफ्तारी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बैंक खातों के संचालन पर रोग लगाना। आयकर विभाग ने ऐसे समय में कांग्रेस के बैंक खातों के संचालन पर रोक लगायी है जब वह सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा, जिसके पास भारी मात्रा में धन है, के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए वित्त की व्यवस्था करने के लिए कठिन संघर्ष कर रही है।

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस मुक्त भारत की बात कही थी। अब वह खुले तौर पर विपक्ष मुक्त चुनाव के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन पिछले पांच वर्षों में उनकी सरकार के कार्यों के कारण केंद्र में सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके विरोधी दलों के बीच समान अवसर खत्म हो गये हैं। फासीवादी राज्य के उभरने के ये चेतावनी संकेत हैं और अगर 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा तीसरी बार केंद्र में सत्ता हासिल करती है तो यह प्रक्रिया तेज हो जायेगी। इस तरह, आने वाले चुनावों ने विपक्षी इंडिया गुट और समाज की अन्य सभी ताकतों, जो भारत में सत्तावाद और लोकतंत्र के क्षरण के खिलाफ हैं, के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है।

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार तृणमूल कांग्रेस की सदस्य बनीं महुआ मोइत्रा ने अपने संबोधन में फासीवाद के सात चेतावनी संकेतों का जिक्र किया था, जो उन्होंने अमेरिका के होलोकॉस्ट म्यूजियम में पढ़े थे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरी बार बनी सरकार के शासन के तहत भारत में उन चेतावनी संकेतों के शुरुआती संकेतों का उल्लेख किया था। आज, 2024 के लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर, महुआ मोइत्रा के उस संबोधन के पांच साल बाद, संकेत कहीं अधिक स्पष्ट हैं। यह अधिनायकवाद का अंतिम चरण हो सकता है और जब तक इसे प्रभावी ढंग से नहीं रोका जाता, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार के शासन के दौरान फासीवाद के पहले चरण का कारण बन सकता है।

होलोकॉस्ट संग्रहालय के पोस्टर में उल्लिखित पहला चेतावनी संकेत अति राष्ट्रवाद था जो देश को विभाजित करता है। महुआ ने 2019 में उल्लेख किया था कि कैसे हाल ही में पारित सीएए आबादी के एक वर्ग के बीच आतंक पैदा कर रहा है। पांच साल बाद, सीएए प्रावधानों को कार्यान्वयन के लिए अधिसूचित किया गया है और दस्तावेजों की कमी के कारण अल्पसंख्यकों के एक अच्छे वर्ग की नागरिकता खोने की एक बड़ी संभावना है। बंगाल में एक युवक ने आवश्यक कागजात नहीं मिलने के कारण आत्महत्या कर ली। असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने नये मानदंडों की घोषणा की है जिसके तहत अल्पसंख्यक लोग उनके राज्य में रह सकते हैं। यह पूरा कदम देश को बांटने का है, जोड़ने का नहीं।

दूसरा लक्षण मानवाधिकारों का तिरस्कार है। प्रधान मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में यह बहुत मुखर नहीं था, लेकिन नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में, मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले गैर सरकारी संगठनों को हर संभव तरीके से परेशान किया गया है, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है, और सत्ताधारी दल की नीतियों के खिलाफ किसी भी असंतोष को राष्ट्रविरोधी माना जा रहा है। केंद्र में शासन एक आयामी है जिसमें किसी भी भिन्न विचार की कोई गुंजाइश नहीं है। विरोधी विचारों का तिरस्कार किया जा रहा है। यह एक राय, एक पार्टी, एक सरकार की तरह है। उत्तर प्रदेश एक विशिष्ट मामला है जहां संघ परिवार के सीमांत तत्वों द्वारा अल्पसंख्यकों पर कोई भी अत्याचार जारी रखा जा सकता है और बहुत कम सरकारी कार्रवाई होती है। राज्य सरकार द्वारा ही मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे के नागरिक जैसा व्यवहार किया जाता है।

फासीवाद का तीसरा प्रारंभिक संकेत सत्तारूढ़ दल का अपने मित्रवत व्यावसायिक घरानों के माध्यम से जनसंचार माध्यमों पर पूर्ण नियंत्रण है। महुआ ने अपने 2019 के भाषण में रुझानों का उल्लेख किया था, लेकिन अब, राष्ट्रीय मीडिया, प्रिंट और टीवी दोनों पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अनुकूल समूहों का पूरी तरह से वर्चस्व है। ऐसा कोई रास्ता नहीं है, जिससे समाचार रिपोर्टिंग स्वतंत्र रह सके। वर्तमान डिजिटल सूचना युग में, वर्तमान सरकार का विरोध करने वाले किसी भी समाचार पोर्टल को दंडित करने के लिए कानूनों में संशोधन किया गया है। लोकसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर राष्ट्रीय मीडिया में शायद ही विपक्ष के लिए कोई जगह है।

चौथा संकेत यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का जुनून है - दुश्मनों की पहचान। एनआईए अब एक सुपर विशाल एजेंसी है। संगठन किसी भी असंतुष्ट पर छापा मार सकता है और उस पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का आरोप लगा सकता है। प्रधानमंत्री के नाम पर सेना की उपलब्धियां हड़पी जा रही हैं।

कई सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी सत्तारूढ़ दल के अनुकूल सेना की गतिविधियों को शामिल करने की केंद्र की कोशिश से चिंतित हैं। वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों में सेवानिवृत्ति से पहले सत्तारूढ़ दल के साथ मेलजोल बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है। हाल ही में एक सेवानिवृत्त वायु सेना प्रमुख भाजपा में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि मोदी शासन के पिछले दस साल पेशेवर तौर पर उनके लिए सबसे अच्छे रहे। इस तरह से सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों को सत्तारूढ़ दल के साथ शामिल करना एक खतरनाक प्रवृत्ति है।

पांचवां संकेत यह है कि इस देश में अब सरकार और धर्म एक-दूसरे से जुड़ गये हैं, जिसका महुआ ने अपने 2019 के भाषण में शुरुआती रुझान का ही जिक्र किया था। लेकिन अब कोई पर्दा नहीं है। धर्म को सत्ताधारी सरकार से जोड़ने की बात पूरी हो गयी है। इस साल 22 जनवरी को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, जो सभी धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाले देश के 140 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने राम मंदिर का उद्घाटन किया जो 100 प्रतिशत धार्मिक मामला था। तब से यह सिलसिला जारी है। भाजपा के वरिष्ठ नेता खुले तौर पर कह रहे हैं कि एक बार जब वे अच्छे बहुमत से लोकसभा चुनाव जीत जायेंगे, तो भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया जायेगा जो संघ परिवार का अंतिम लक्ष्य है।

छठा संकेत बुद्धिजीवियों और कलाओं के प्रति पूर्ण तिरस्कार है। सभी असहमतियों का दमन किया जा रहा है, उदार शिक्षा के लिए फंडिंग में कटौती की जा रही है, संविधान के अनुच्छेद 51 में निहित वैज्ञानिक मानसिकता को हतोत्साहित किया जा रहा है। स्कूल और कॉलेज की किताबों को आरएसएस प्रेरित इतिहास की तर्ज पर संशोधित किया जा रहा है। वैज्ञानिक संस्थानों में सत्य और साक्ष्य पर आधारित विज्ञान के मुकाबले आस्था आधारित इतिहास को बढ़ावा दिया जा रहा है। छात्रों में वैज्ञानिक मानसिकता को प्रोत्साहित करने के क्षेत्र में देश पीछे जा रहा है।

सातवां और आखिरी संकेत चुनाव प्रणाली का क्षरण है - भारत के मामले में चुनाव आयोग की भूमिका का। लेकिन यह लेखक भारत में एक अतिरिक्त संकेत का उल्लेख करेगा – और वह है निचली अदालतों में भारतीय न्यायपालिका की बदतर स्थिति का। निचले स्तर पर अदालतों में न्यायाधीश संवैधानिक मानदंडों के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं। वे कई मामलों में सत्ता पक्ष से प्रभावित हो जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय फिलहाल भारतीय संविधान के संरक्षक के रूप में काम कर रहा है, लेकिन इसका असर निचली अदालतों के कई जजों के कामकाज पर नहीं दिख रहा है। यह देश में न्याय की निष्पक्ष प्रक्रिया के ख़िलाफ़ है।

इंडिया गुट और वे सभी जो भारतीय संविधान और देश में जीवंत लोकतंत्र के कामकाज की परवाह करते हैं, उन्हें लोकसभा चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों को हराने के लिए इस समय व्यापक एकता का निर्माण करना चाहिए। इसमें देर करने की कोई गुंजाइश नहीं है। संयुक्त विपक्ष की ओर से कोई भी गलत कदम या गलत निर्णय भारत में जीवंत लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के भाग्य पर मुहर लगा देगा। 4 जून के नतीजों से यह सुनिश्चित होना चाहिए कि लोकतंत्र कायम रहे और अधिनायकवाद को बड़ा झटका लगे। (संवाद)