पहली रिपोर्ट निर्णायक नहीं हो सकती है, लेकिन नवीनतम असम मीडिया में आ रही खबरों से पता चलता है कि भारतीय नागरिकता की पुष्टि चाहने वाले लोगों की संख्या दोहरे अंक के स्तर तक भी नहीं पहुंची है!
फिर भी, नये नियमों के तहत खुद को पंजीकृत करने और अंततः भारतीय बनने के लिए लाखों लोगों (संदिग्ध 'विदेशियों' सहित) के लंबी कतारों में खड़ा होना, गैर-भाजपा विपक्षी दलों/नेताओं के बीच सबसे बड़ा डर था। अधिकांश राजनीतिक दलों के साथ-साथ असम स्थित शक्तिशाली सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने इसके पहले एकजुट होकर सीएए का विरोध किया था।
हाल के दिनों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसके राज्य नेताओं को विपक्ष के तीखे राजनीतिक अभियान का सामना करना पड़ा था। उनकी मुख्य शिकायत थी एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी द्वारा असमिया संस्कृति और परंपराओं के भविष्य को खतरे में डालने की। श्री शर्मा, जिन्होंने सीएए का जोरदार समर्थन किया, ने स्वाभाविक रूप से बहुत आलोचना झेली, जो अक्सर व्यक्तिगत हो गयी।
सामान्य आशंका यह थी कि सीएए के बाद की अवधि में केंद्र के कदम का लाभ उठाने और अपने लंबे समय से प्रतीक्षित नागरिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए असम में बड़ी संख्या में बंगाली भाषी हिंदू निवासियों के लिए द्वार खुल जायेंगे। इस प्रक्रिया में, अधिकांश मूल असमिया-भाषी आबादी खतरे में पड़ जायेगी, जिससे राज्य की विशिष्ट घरेलू संस्कृति और जातीय चरित्र के लिए संभावित संकट पैदा हो जायेगा।
कोई आश्चर्य नहीं कि चुनावी मौसम में, श्री शर्मा ने विपक्ष के खिलाफ हमला करने के लिए बहुत कम समय गंवाया है। प्रमुख विपक्षी हस्तियों के दावों का मज़ाक उड़ाते हुए कि नागरिकता के लाभों का दावा करने वाले 'आवेदकों के ट्रक कई दिनों तक आयेंगे', श्री शर्मा ने अपने उत्पीड़कों को यह समझाने के लिए चुनौती दी है कि वे लक्ष्य से इतने दूर कैसे हो सकते हैं। उनकी स्पष्ट विफलता का तो जिक्र ही क्या करना जब असम में मौजूदा जमीनी स्थिति/वास्तविकताओं का आकलन करने के लिए भी विपक्ष असफल रहा, उनका कहना था!
अन्य राज्यों (पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा को छोड़कर) के विपरीत, असम के लिए जातीयता, धर्म और भाषा हमेशा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कारक रहे हैं, एक ऐसा क्षेत्र जिसने ब्रिटिश शासन के बाद से पड़ोसी राज्यों/देशों से बहुत अधिक आप्रवास देखा है। दशकों से बढ़ती मिश्रित स्थानीय आबादी में मूल असमिया भाषी लोगों का प्रतिशत कम हो गया, वर्तमान आंकड़ा 320 लाख, है।
पुरानी बसी जनजातियों, प्रवासी बंगालियों (हिंदुओं और मुसलमानों सहित) और असमियाओं के बीच सामूहिक हिंसा की छिटपुट घटनाएं हुई हैं। फिर भी, पिछले दशकों में, इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि अंतर्निहित जातीय तनावों के बावजूद, असम में आम तौर पर जीवन व्यवस्थित और शांतिपूर्ण रहा है - निश्चित रूप से यह अस्थिर पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है।
जनगणना कार्य गणनाकर्ताओं के साथ-साथ राजनीतिक दलों/नेताओं के लिए एक बड़ी समस्या यह है कि राज्य में गैर असमिया भाषियों की सटीक संख्या कैसे तय की जाये। यह सामान्य ज्ञान है कि कई बंगाली भाषी मुस्लिम (मियाँ) और साथ ही कुछ हिंदू, जनगणना कार्यों के दशक के दौरान खुद को असमिया भाषी नागरिक घोषित करते हैं। एक बार जब सीएए पूरी तरह से लागू हो जाता है, तो असमिया लोगों को स्वाभाविक रूप से डर लगता है कि उनकी स्थिति कमजोर होगी और हमेशा के लिए बदल सकती है।
हालाँकि, श्री शर्मा, जो 'मियां' आबादी के प्रति अपने कठोर दृष्टिकोण के विपरीत बंगाली हिंदुओं के लिए अपनी प्राथमिकता को गुप्त नहीं रखते हैं, ने अपने वर्तमान चुनाव अभियान में हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि पूर्व समूह को एलियंस के रूप में मानने की आवश्यकता नहीं है। उनके आंकड़े भी बहुत अधिक नहीं हैं, अधिकांश अनुमान बंगाली हिंदुओं की वर्तमान संख्या लगभग 30 लाख या उसके आसपास बताते हैं - जो अन्य प्रमुख जातीय समूहों/समुदायों के लिए शायद ही कोई चुनौती है।
वर्तमान अभियान से पहले भी, श्री शर्मा ने नियमित रूप से तीन बंगाली बहुल बराक घाटी जिलों का दौरा किया है, और अधिकांश अन्य असमिया नेताओं के विपरीत, कई बार बंगाली में बैठकों को संबोधित किया है। राज्य भाजपा का दावा है कि हाल के दिनों में बराक घाटी क्षेत्र में अधिक निवेश/आर्थिक विकास हुआ है।
उनके आलोचक ऐसे अभियानों से अप्रभावित रहते हैं। एक स्वप्रमाणित कट्टर हिंदुत्व अनुयायी के रूप में, शर्मा की रणनीति असम में बंगाली भाषी समुदाय को तेजी से विभाजित करती है, और मुस्लिमों को किनारे कर दिया जाता है। इसके अलावा, सत्तारूढ़ भजापा सरकार द्वारा हाल ही में की गयी परिसीमन की कार्यवाही ने असम में राज्य विधानसभा/संसद निर्वाचन क्षेत्रों को प्रभावी ढंग बदला गया, जबकि असमिया और आदिवासी समुदायों की संख्यात्मक श्रेष्ठता सुनिश्चित की गयी।
नये परिसीमन संरेखण के खिलाफ बराक घाटी में मुख्य रूप से बंगाली-प्रभुत्व वाले समूहों/पार्टियों के विरोध प्रदर्शनों को बहुत कम समर्थन मिला। इसके विपरीत, श्री शर्मा ने खुले तौर पर घोषणा की कि असम के आवश्यक जातीय और सांस्कृतिक चरित्र को संरक्षित करना राज्य सरकार का इरादा था। फिर भी, राज्य के भाजपा नेताओं को सीएए के लागू होने के बाद अब बराक घाटी जिलों से मजबूत समर्थन की उम्मीद है। (संवाद)
असम में सीएए अधिसूचना के खिलाफ आक्रोश प्रदर्शन अत्यल्प
मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने भाजपा की सफलता पर भरोसा जताया
आशीष विश्वास - 12-04-2024 10:44 GMT-0000
असम के मुख्यमंत्री श्री हिमंत विश्व शर्मा एक आराम की आकर्षक राजनीतिक जीवन जी रहे हैं: क्योंकि अपने कई विरोधियों को चकित करते हुए उनके द्वारा लागू किये गये नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) कानून के कार्यान्वयन ने अब तक राज्य में शायद ही कोई हलचल पैदा की है।