2019 के लोकसभा चुनावों में, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने 19 सीटें जीतकर चुनाव में जीत हासिल की, जबकि सीपीआई (एम) के उम्मीदवार को केवल एक सीट मिली। 19 सीटों में से, अकेले कांग्रेस को 15 सीटें मिलीं, जो 2019 के लोकसभा चुनावों में उसकी राष्ट्रीय 52 सीटों का बड़ा हिस्सा थी। 2024 में, कांग्रेस न केवल इस 15 को बरकरार रखने के लिए बल्कि शेष सीट पर कब्जा करके अपनी संख्या में इजाफा करने के लिए बेताब है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने वर्तमान निर्वाचन क्षेत्र वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं और कांग्रेस इस बात पर ध्यान केंद्रित कर प्रचार कर रही है कि राज्य को अगला प्रधानमंत्री मिलने वाला है। राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर कांग्रेस के लिए केरल में करो या मरो की स्थिति है। आलाकमान ने इस राज्य के लिए कुछ अन्य राज्य स्तरीय दलों की कीमत पर भारी वित्तीय संसाधन जुटाये हैं।

वामपंथियों, विशेषकर सीपीआई (एम) के लिए, यह चुनाव कांग्रेस की तुलना में अधिक नहीं तो कम चुनौतीपूर्ण भी नहीं है। सीपीआई (एम) ने 2019 के चुनावों में 16 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे सिर्फ एक सीट मिली वह भी काफी कम मतों के अन्तर से। सीपीआई ने चार निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ा और उसे एक भी नहीं मिली। 2016 के राज्य विधानसभा चुनावों में एलडीएफ की जीत और 2019 के मतदान के समय सत्तारूढ़ दल होने का कुछ फायदा मिलने के बावजूद वामपंथियों के लिए यह निराशाजनक परिणाम था। 2024 में, सीपीआई (एम) के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन अभी भी शासन कर रहे हैं और वह कांग्रेस और राहुल गांधी के खिलाफ एलडीएफ का मुख्य चेहरा हैं।

पिछली बार की तरह इस बार भी सीपीआई (एम) 15 सीटों पर और सीपीआई चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अधिक ईसाई वोटों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सीपीआई (एम) ने अपने नये सहयोगी केरल कांग्रेस (एम) को एक सीट दी है। सीपीआई (एम) के लिए, 2024 में केरल से अधिक सीटें जीतना सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्टी को तमिलनाडु को छोड़कर देश के किसी भी अन्य हिस्से से निश्चित सीटें मिलने का भरोसा नहीं है, जहां वह दो सीटें बरकरार रखने की उम्मीद कर सकती है। वर्तमान लोकसभा में सीपीआई (एम) के पास तीन सीटें हैं, जो 1964 में इसके गठन के बाद से सबसे कम है। तीन में से दो डीएमके के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के हिस्से के रूप में तमिलनाडु से हैं। इसलिए, अपनी ताकत के आधार पर, सीपीआई (एम) वर्तमान लोकसभा में केवल एक सीट का दावा कर सकती है।

राष्ट्रीय स्तर पर, सीपीआई (एम) पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन के हिस्से के रूप में राज्य की कुल 42 सीटों में से 23 पर चुनाव लड़ रही है। अब तक के चुनाव प्रचार के रुझान से पता चलता है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच मतदाताओं के ध्रुवीकरण के परिणामस्वरूप इस बार सीपीआई (एम) के लिए बंगाल से एक भी सीट हासिल करना बहुत मुश्किल है। 2019 के चुनावों में भी, सीपीआई (एम) लोकसभा की एक भी सीट पाने में असफल रही। जमीनी स्थिति बहुत ज्यादा नहीं बदली है, वास्तव में, 2021 और 2023 में विधानसभा और ग्रामीण चुनावों में सीपीआई (एम) का वोट प्रतिशत क्रमशः कम हो गया।

इंडिया ब्लॉक के एक हिस्से के रूप में, सीपीआई (एम) राजस्थान में एक, बिहार में एक और संभवतः आंध्र प्रदेश में एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। राजस्थान की सीकर सीट पर सीपीआई (एम) उम्मीदवार अच्छी टक्कर दे रहे हैं लेकिन यह निश्चित नहीं है कि वह आखिरकार जीत पायेंगे। त्रिपुरा में, सीपीआई (एम) कांग्रेस के साथ गठबंधन में दो लोकसभा सीटों में से एक पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा का आदिवासियों की पार्टी टिपरा मोथा के साथ गठबंधन है। यह सीट सीपीआई (एम) को मिलने की संभावना कम है। इस तरह, तमिलनाडु की दो सीटों को छोड़कर, सीपीआई (एम) के पास केवल केरल से अपनी सीटों में सुधार करने की क्षमता है। यदि ऐसा नहीं होता है और कांग्रेस की जीत होती है, तो सीपीआई (एम) फिर से 2019 की स्थिति में आ जायेगी।

सीपीआई के लिए चुनौती की प्रकृति समान है। 2019 में, द्रमुक के नेतृत्व वाले मोर्चे के सौजन्य से, सीपीआई को केवल दो लोकसभा सीटें मिलीं, दोनों तमिलनाडु से। किसी भी राज्य से कोई अन्य सीट नहीं थी। सीपीआई के लिए भी, लोकसभा में 2019 का आंकड़ा सीपीआई के इतिहास में सबसे कम था। केरल में भले ही पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं मिली, लेकिन 2024 में सीपीआई ने सभी चार सीटों पर सघन प्रचार अभियान चलाया है और दो सीटों पर पार्टी जीत के काफी करीब है। इससे उम्मीद जगती है कि सीपीआई को केरल से एक सीट मिल सकती है। तमिलनाडु से पिछली बार की तरह इस बार भी पार्टी को डीएमके के नेतृत्व वाले मोर्चे के हिस्से के रूप में दोनों सीटें मिल सकती हैं।

इसके अलावा, सीपीआई आई इंडिया ब्लॉक के हिस्से के रूप में बिहार के बेगुसराय और आंध्र प्रदेश की दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बेगुसराय में लड़ाई कठिन है लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं ने अच्छा प्रचार किया है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भाजपा के उम्मीदवार हैं। देखना यह है कि आखिर मतदाता क्या फैसला करते हैं। आंध्र प्रदेश में सीपीआई एक सीट पर काफी मजबूत है। अगर कांग्रेस और वामपंथी वोटरों की पूरी गोलबंदी हुई तो यह सीट सीपीआई को मिल सकती है। बंगाल में सीपीआई वाम मोर्चे के हिस्से के रूप में दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जीतने का तो सवाल ही नहीं उठता। पार्टी को उम्मीदवारों की जमानत बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।

कुल मिलाकर, वामपंथियों को 18वीं लोकसभा में अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाने की उम्मीद मुख्य रूप से केरल की 20 सीटों पर निर्भर है। एलडीएफ के हिस्से के रूप में सीपीआई (एम) और सीपीआई दोनों ही वर्तमान संख्या को दो अंकों तक बढ़ा सकते हैं। साथ ही, कांग्रेस सीपीआई (एम) की एकमात्र सीट पर भी कब्ज़ा कर चुनाव में परचम लहरा सकती है। दोनों संभावनाएं मौजूद हैं। इसीलिए, वामपंथियों के लिए 26 अप्रैल के मतदान को अपने पक्ष में करने के लिए सब कुछ करना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि वे सफल होते हैं, तो इससे 4 जून के बाद की राजनीतिक स्थिति में सीपीआई और सीपीआई (एम) को अच्छा बढ़ावा मिलेगा। (संवाद)