यह तथ्य है कि भाजपा ने अपना बहुमत खो दिया है और लोकसभा में 240 सीटों तक सीमित हो गयी है, जो मोदी और आरएसएस/भाजपा द्वारा तीसरे कार्यकाल में लागू किये जाने वाले एजंडे के कुछ पहलुओं को रोक सकता है या धीमा कर सकता है। संवैधानिक परिवर्तन, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत को कमजोर कर सकते हैं, को हासिल करना अब भाजपा के लिए मुश्किल होगा। सत्तावादी केंद्रीयवाद को मजबूत करना भी कठिन हो सकता है। लेकिन मोदी शासन की आर्थिक नीतियों, संस्थाओं के विनाश और सत्तावादी अभियान के संदर्भ में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं दिखेगा।

विपक्ष के प्रति मोदी शासन का टकराववादी रुख और संसदीय मानदंडों के प्रति अवमानना संसद के आयोजन की शुरुआत में ही प्रदर्शित हुई थी। नये अध्यक्ष के चुनाव के मुद्दे पर सरकार ने विपक्ष को उपसभापति का पद देने से इनकार कर दिया, जिससे इस मामले पर आम सहमति नहीं बन पायी। नयी सरकार के शपथ ग्रहण के कुछ ही दिनों के भीतर, हमें याद दिलाया गया है कि एक सत्तावादी-दमनकारी शासन की वास्तुकला पूरी तरह से स्थापित हो चुकी है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जिन्हें निचली अदालत ने जमानत दी थी, ने देखा कि उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत को रद्द कर दिया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि केजरीवाल जेल से बाहर न आयें, सीबीआई ने उसी मामले में उनकी फिर गिरफ्तारी की है जब उन्हें अदालत में पेश किया गया था। लेखिका अरुंधति रॉय के खिलाफ मामला दर्ज होने के चौदह साल बाद, दिल्ली के उपराज्यपाल ने यूएपीए के तहत उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। 1 जुलाई से, तीन आपराधिक संहिताएँ लागू होंगी, जिन्होंने पहले की आपराधिक प्रक्रिया और दंडात्मक कानूनों की जगह ले ली है। इन संहिताओं के कई प्रावधान नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर और अधिक प्रतिबंध लगाने जा रहे हैं और नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस की शक्तियों को बढ़ायेंगे, जिसमें देशद्रोह जैसे अपराधों को दंडित करने के लिए और अधिक कठोर शक्तियाँ शामिल हैं।

अमित शाह के गृह मंत्री के रूप में फिर से नियुक्त होने के साथ, प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और अन्य केंद्रीय एजंसियों से उम्मीद की जा सकती है कि वे विपक्ष और किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था को निशाना बनाने का अपना काम जारी रखेंगी, जिन्हें शासन शत्रु मानता है या जिन्हें डराकर अधीन करने की आवश्यकता है। पिछली सरकार के अंतिम चरण में अपनाये गये कई कानून जैसे दूरसंचार अधिनियम और आईटी अधिनियम नियम अब लागू होने जा रहे हैं। दूरसंचार अधिनियम 2023 को 26 जून को आंशिक रूप से अधिसूचित किया गया है। यह सरकार को सार्वजनिक आपातकाल के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा के नाम पर इंटरनेट पर किसी भी संदेश के प्रसारण को रोकने की अनुमति देता है। दस केंद्रीय एजंसियों को दूरसंचार संचार को बाधित करने का अधिकार है, बशर्ते उनके पास ऐसा करने के लिए गृह सचिव की अनुमति हो।

बड़े व्यवसायियों ने चुनावों के दौरान भाजपा और नरेंद्र मोदी का खुलकर समर्थन किया। शेयर बाजार, जो नतीजों के आने पर गिर गया था क्योंकि भाजपा ने अपना बहुमत खो दिया था, मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के गठन की घोषणा होने पर फिर से उछल गया। निर्मला सीतारमण ने वित्त मंत्री के रूप में फिर से पदभार संभाला और बाद में अपने पहले बयान में कहा कि अगली पीढ़ी के सुधारों को तुरंत शुरू किया जायेगा। बड़े व्यवसाय केंद्रीय बजट के लिए अपनी मांगों के साथ वित्त मंत्री की पैरवी करने में व्यस्त हैं।

तीसरी बार बनी मोदी सरकार का आना इस बात का संकेत है कि कॉर्पोरेट समर्थक, नव-उदारवादी नीतियां पूरे जोश के साथ जारी रहेंगी। उम्मीद की जा सकती है कि राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) जैसे निजीकरण के कदम आगे भी जारी रहेंगे। सरकार में सहयोगी दलों, जैसे तेलुगू देशम पार्टी और जेडी(यू), की प्रकृति से संकेत मिलता है कि आर्थिक नीतियों का कोई विरोध नहीं होगा। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद पहले कुछ दिनों में ही हिंदुत्व की राजनीति में कोई कमी नहीं आयेगी और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाना भी स्पष्ट हो गया है। मुसलमानों को निशाना बनाने की कई घटनाएं हुई हैं, खास तौर पर भाजपा शासित राज्यों में।

छत्तीसगढ़ में रायपुर के पास आरंग में भीड़ ने तीन मवेशी ट्रांसपोर्टरों पर हमला कर उनकी हत्या कर दी। उनका एकमात्र अपराध यह था कि वे मवेशी व्यापारी थे। भाजपा शासित मध्य प्रदेश के मंडला जिले में ग्यारह लोगों को अपने घरों में रेफ्रिजरेटर में गोमांस रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इसके बाद स्थानीय प्रशासन ने आरोपियों के ग्यारह घरों को अवैध अतिक्रमण बताकर ढहा दिया। राजस्थान के जोधपुर में सांप्रदायिक झड़प हुई और 51 लोगों को गिरफ्तार किया गया। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करना और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना हिंदुत्ववादी ताकतों की सामान्य राजनीति का हिस्सा है और इस पर कोई रोक नहीं लगेगी। केंद्र सरकार द्वारा इस पर जांच की जानी चाहिए।

यह बात पहचाननी होगी कि गठबंधन में भाजपा प्रमुख ताकत है और दो प्रमुख सहयोगी - टीडीपी और जेडी (यू) - न तो किसी राजनीतिक या नीतिगत स्थिति में रुचि रखते हैं और न ही ऐसा करने की स्थिति में हैं। जहां तक टीडीपी का सवाल है, इसके नेता चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और केंद्र के प्रति उनका दृष्टिकोण आंध्र प्रदेश में अपनी प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के लिए फंड और पैकेज पर बातचीत करने तक ही सीमित है। जेडी (यू) के पास बिहार के अलावा कुछ भी नहीं है, जहां वह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपनी स्थिति मजबूत करने की उम्मीद कर रही है। विपक्ष की रणनीति तैयार करते समय इस वास्तविकता को ध्यान में रखना चाहिए।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ लड़ाई और उसके कुकृत्यों को उजागर करने के लिए संसद में विपक्ष की बढ़ी हुई ताकत को देखते हुए बेहतर तरीके से लड़ाई लड़ी जा सकती है। लेकिन मोदी सरकार द्वारा लोकतंत्र पर किये जा रहे अधिनायकवादी हमलों और नवउदारवादी नीतियों के माध्यम से लोगों की आजीविका पर किये जा रहे हमलों के खिलाफ संघर्ष और जन-आंदोलन आयोजित करके प्रतिरोध खड़ा करना अधिक महत्वपूर्ण है।

यहां वामपंथ की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नवउदारवादी नीतियों और हिंदुत्व विचारधारा का सबसे दृढ़ और सुसंगत विरोधी है। संविधान, लोकतंत्र और संघवाद की रक्षा के व्यापक मुद्दों पर जहां इंडिया ब्लॉक और व्यापक विपक्षी एकता को प्रमुख भूमिका निभानी होगी, वहीं वामपंथ को लोगों को उनके दैनिक संघर्षों में संगठित करने और इन संघर्षों को नवउदारवादी नीतियों के समग्र विरोध से जोड़ने तथा वैकल्पिक नीतियों को एक विश्वसनीय मंच बनाने में प्रमुख भूमिका निभानी होगी। वामपंथ से जुड़े विभिन्न जन संगठनों और लोकतांत्रिक मंचों को व्यापकतम एकजुट कार्रवाई करनी होगी। लोकसभा के फैसले से मुख्य सबक यह है कि हिंदुत्व-कॉर्पोरेट गठजोड़ के खिलाफ प्रतिरोध को तेज करने के लिए कुछ राजनीतिक जगह खुल गयी है। (संवाद)