बर्लिन के हेनरिक बोल स्टिफ्टंग द्वारा हाल ही में आयोजित बहु-राष्ट्रीय विचार-विमर्श में, भारतीय प्रतिभागी राकेश मोहन, जो भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर हैं, ने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया कि विश्व बैंक की चुकता पूंजी (पेड़ अप कैपिटल) 22 अरब डॉलर है, जबकि पिछले साल एलन मस्क का मुआवज़ा 46 अरब डॉलर था।
दुनिया भर में एलन मस्क और उनके जैसे लोगों के पास दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनियों के शेयरों में बहुत अधिक संपत्ति है। लेकिन जैसे-जैसे शेयर की कीमतें बढ़ती हैं शेयरधारकों की सम्पदा बढ़ती है, और तब तक उनमें से किसी पर भी कर नहीं लगाया जा सकता जब तक कि उसे बेचकर लाभ अर्जित न कर लिया जाये। यह कर अधिकारियों और सार्वजनिक वित्त विशेषज्ञों के साथ-साथ सरकारों का भी ध्यान आकर्षित कर रहा है।
यदि विश्व बैंक की पूंजी 10 अरब डॉलर के निवेश से जुटायी जाती है, तो इसकी उधार लेने की क्षमता 50 अरब डॉलर बढ़ जायेगी और बहुपक्षीय विकास बैंक को कम विकसित देशों के विकास को आगे बढ़ाने के लिए बहुत अधिक धन उपलब्ध होगा।
डॉ. मोहन ने कहा कि सुपर रिच पर 5% का कर लगाने से कम विकसित देशों के विकास के लिए बहुत अधिक संसाधन जुटाये जा सकेंगे और मिलेनियम डेवलपमेंट गोल (एमडीजी) को आगे बढ़ाया जा सकेगा। यह सच है। लेकिन डॉ. मोहन ने प्रस्ताव में वास्तविक अड़चन को भी रेखांकित किया।
मस्क का वेतन ज्यादातर स्टॉक विकल्पों के रूप में है। जब तक एलन मस्क उन विकल्पों को वास्तविक हस्तांतरण में परिवर्तित नहीं कर लेते और अपने स्टॉक बेचकर अपने लाभ को प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक इतनी बड़ी संपत्ति पर कर लगाने का कोई प्रावधान नहीं है।
सभी विकसित देशों के साथ-साथ अधिक समृद्ध उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में भी, इस तरह की भारी संपत्ति का निर्माण हो रहा है। जैसे-जैसे शेयर बाजार चढ़ रहे हैं, सुपर अमीर बिना किसी परेशानी के और अमीर होते जा रहे हैं।
भारत में क्या हो रहा है, इस पर गौर करें। शेयर बाजार इस तरह से व्यवहार कर रहे हैं जैसे कि चढ़ाई का कोई अंत ही नहीं है। यह ऊपर और ऊपर जा रहा है। तेजड़िये पूरी ताकत से हमला कर रहे हैं। इसका मतलब है कि भारत के सुपर रिच और अधिक अमीर होते जा रहे हैं।
एक उदाहरण लें, इन्फोसिस के संस्थापक और मुख्य संरक्षक, एन.आर. नारायणमूर्ति ने अपने नवजात शिशु को $293 मिलियन के शेयर उपहार में दिये। यह छोटा बच्चा चलने से पहले ही बहुत अमीर हो गया है। लेकिन इस राशि पर कर नहीं लगाया जा सकता क्योंकि बच्चे को बेचने की बिल्कुल भी जल्दी नहीं है।
अंबानी और अडानी दिन-ब-दिन अमीर होते जा रहे हैं और वे ऐसी विलासिता पर पैसे लुटा रहे हैं जो दुनिया भर में उनके हमवतन लोगों को भी चौंका रहे हैं। अंबानी के बेटे की शादी से पहले, अंबानी परिवार ने आकर्षक “दिलचस्प” पार्टियों का आयोजन किया था जिसमें बिल गेट्स और बेजोज शामिल हुए थे। अनंत अंबानी ने 66 करोड़ रुपये की कलाई घड़ी पहनी थी, और इसने अमेरिका के सबसे अमीर लोगों में से एक का ध्यान आकर्षित किया।
हालांकि, इनमें से कोई भी परिवार इन अथाह धन-संपत्ति पर कर नहीं चुका रहा है। वे बिना कर चुकाए ही समृद्ध हो रहे हैं, जबकि आम लोग अपनी जेब ढीली कर रहे हैं।
एक बार फिर से विचार करें। सरकार महीने-दर-महीने जीएसटी संग्रह में उछाल का दावा कर रही है। केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा आरामदायक हो सकता है। राज्य जीएसटी बोनस का अपना हिस्सा वसूल रहे हैं। लेकिन जीएसटी कौन चुका रहा है? सबसे गरीब लोग अपनी हर खरीद पर जीएसटी चुका रहे हैं।
साधारण बिस्कुट पर कर लग रहा है, “टेंट वाले” गरीब लोगों की शादी में रखे जाने वाले शामियाने पर भी सेवा कर वसूल रहे हैं। फिर अगर आप अपने बेटे या बेटी के अच्छे नतीजों के जश्न में किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने जा रहे हैं, तो बिल चुकाने पर केंद्र और राज्य सरकारें भी बिन बुलाए मेहमान की तरह शामिल हो जाती हैं।
सुपर रिच पर कर लगाने का मुद्दा एक विचारोत्तेजक विषय बनता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा सामाजिक योजनाओं के लिए धन जुटाने के लिए अरबपतियों पर कर लगाने की बात के बाद द इकोनॉमिस्ट ने इस वित्तीय पहेली को उठाया था।
द इकोनॉमिस्ट ने कुछ रिपोर्टों का हवाला दिया है जो संकेत देती हैं कि अवास्तविक पूंजीगत लाभ (शेयर बाजार के मूल्यांकन में वृद्धि से संपत्ति में वृद्धि) सुपर रिच के पास मौजूद $11 ट्रिलियन की संपत्ति में से $6 ट्रिलियन है। दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी एनवीडिया के मालिक ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उन्माद के बाद से $100 बिलियन की वृद्धि देखी। एनवीडिया चिप्स एआई संचालन का अनिवार्य हिस्सा हैं।
कर कानून यह है कि जब तक लाभ का एहसास नहीं होता है और अर्जित आय नहीं बन जाती है, तब तक इन पर कर नहीं लगाया जा सकता है।
भारत की तीसरी बार बनी मोदी सरकार पूरे वित्तीय वर्ष, 2024-25 के लिए अपना बजट तैयार करने की कवायद में लगी हुई है। मौजूदा सत्र में, यह मानने का कारण है कि इन भारी लाभों का दोहन करने के तरीकों पर गौर करने के लिए कुछ अभ्यास शुरू किये जाने चाहिए।
लेकिन एक समस्या है। आखिरकार, स्टॉक वैल्यूएशन बत्तख की पीठ पर पानी की बूंदों की तरह है। वैल्यूएशन बढ़ रहे हैं लेकिन ये गिर भी सकते हैं। इसलिए आप वृद्धि पर कर लगाते हैं, और क्या होता है जब लाभ गायब हो जाता है और घाटे में बदल जाता है?
लेकिन इनका ध्यान प्रावधान द्वारा रखा जा सकता है जब ऐसा होता है तो घाटे के समायोजन के लिए ऋण देना पड़ता है। क्योंकि एक बार के बढ़े हुए मूल्य बाद में कम हो सकते हैं, इसलिए विस्मयकारी भारी लाभ पर कर न लगाने का कोई कारण नहीं हो सकता। (संवाद)
2024-25 के बजट में भारत के सुपर रिच पर कर लगाना चाहिए
अपार संपत्ति अर्जित कर रहे शीर्ष उद्योगपति, आम जन भोजन के मोहताज
अंजन रॉय - 2024-07-03 11:30
वैश्विक वित्तीय संरचना और विकास के वित्तपोषण पर अंतर्राष्ट्रीय विचार-विमर्श में सुपर-रिच पर कर लगाना एक समसामयिक मुद्दा बन गया है।