किसान इसके खिलाफ सुरक्षा चाहते हैं, लेकिन मोदी सरकार कह रही है कि किसानों का कल्याण केवल उन कानूनों और नीतियों के माध्यम से सुरक्षित किया जा सकता है जिन्हें वे लागू करना चाहते हैं। किसान उन्हें इस आधार पर खारिज करते हैं कि सरकार का मतलब केवल व्यापार और कॉर्पोरेट के लिए कृषि-अर्थव्यवस्था का विकास करना है, जबकि सरकार का कहना है कि उनकी योजनाओं से किसानों की आय बढ़ेगी। किसानों ने कानूनी तौर पर एमएसपी की गारंटी मांगी, लेकिन केंद्र ने 3 सितंबर को एग्रीश्योर फंड लॉन्च किया। संक्षेप में, मोदी सरकार और किसान दो अलग-अलग ध्रुव हैं - किसान कृषि और अपनी फसलों के लिए लाभकारी मूल्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन सरकार का ध्यान कृषि-अर्थव्यवस्था पर है जो व्यापार और कॉर्पोरेट लाभप्रदता को बढ़ावा देती है।

मोदी सरकार ने स्पष्ट रूप से कृषि और ग्रामीण विकास की उपेक्षा की है, अन्यथा यह कैसे हो सकता था कि दोनों विभागों में पूर्णकालिक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी तैनात नहीं किये गये हैं? शिवराज सिंह चौहान को कृषि और किसान कल्याण के साथ-साथ ग्रामीण विकास दोनों मंत्रालय सौंपे गये हैं। यह किसानों और ग्रामीण लोगों के वास्तविक कल्याण के लिए सरकार की कम प्राथमिकताओं को दर्शाता है। इसलिए यह आरोप प्रथम दृष्टया सही है कि मोदी सरकार आर्थिक विकास के नाम पर मुख्य रूप से व्यापार और कॉर्पोरेट लाभप्रदता पर ध्यान केंद्रित कर रही है, और इस भरोसे में है कि वे अधिक निवेश और रोजगार लायेंगे, जिसमें वे पिछले एक दशक में विफल रहे हैं।

किसानों, ग्रामीण लोगों और बेरोजगारी की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 3 सितम्बर को एग्रीश्योर का शुभारंभ किया, जो स्टार्ट-अप और ग्रामीण उद्यमों के लिए एक कृषि कोष है, जिसके बारे में सरकार ने कहा कि यह एक अभिनव कोष है, जो भारत में कृषि परिदृश्य में क्रांति लाने की दिशा में एक अग्रणी कदम है। प्रौद्योगिकी-संचालित, उच्च-जोखिम, उच्च-प्रभाव वाले उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, एग्रीश्योर को, सरकार के दावे के अनुसार, कृषि और ग्रामीण स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र में विकास को बढ़ावा देने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। 750 करोड़ रुपये के, सेबी पंजीकृत श्रेणी – 2 के साथ, वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) एक मिश्रित पूंजी कोष है जिसमें भारत सरकार से ₹250 करोड़, नाबार्ड से ₹250 करोड़ और बैंकों, बीमा कंपनियों और निजी निवेशकों से ₹250 करोड़ जुटाये जा रहे हैं।

अपने मुख्य भाषण में केंद्रीय मंत्री चौहान ने कहा कि एग्रीश्योर फंड का शुभारंभ सरकार के पिछले प्रयासों का ही एक हिस्सा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में हर किसान को फलने-फूलने के लिए आवश्यक तकनीकी सहायता मिले। उन्होंने आगे कहा कि किसानों की समृद्धि से ही समृद्ध अर्थव्यवस्था बनेगी।

मोदी सरकार हमेशा किसानों की समृद्धि पर जोर देती रही है, लेकिन कुछ खास नहीं कर रही है। मोदी सरकार का 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा एक उदाहरण है, जो सरकार की दोषपूर्ण नीतियों और तथाकथित किसान कल्याण योजनाओं के कारण पूरी तरह विफल हो गया, जिससे कृषि उपज और उत्पादों में कॉरपोरेट और व्यवसायों को भारी मुनाफा हुआ, लेकिन किसानों को नुकसान हुआ। सरकार ने कभी किसानों की बात नहीं सुनी, बहुत ही साधारण बात - किसानों को उनकी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य की गारंटी मिलनी चाहिए, यानी स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के अनुसार एमएसपी। राजनीति के लिए मोदी सरकार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किया, और साथ-साथ किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भी यह सम्मान दिया गया ताकि नाराज किसानों को खुश किया जा सके। लेकिन किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने की कभी परवाह नहीं की। किसानों के कल्याण के नाम पर यह घोर पाखंड है।

एग्रीश्योर के लॉन्च से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट समिति ने किसानों के कल्याण के नाम पर 13,966 करोड़ रुपये की 7 नयी बड़ी योजनाओं को मंजूरी दी थी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कैबिनेट का फैसला भारत के कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए है। मोदी सरकार का यह फैसला केंद्र द्वारा 28,602 करोड़ रुपये की 12 औद्योगिक स्मार्ट सिटी परियोजनाओं को मंजूरी दिये जाने के एक सप्ताह बाद आया है। कई लोगों को यह उद्योग बनाम कृषि क्षेत्र के बीच संतुलन बनाने जैसा लगा, लेकिन यह आंशिक रूप से ही सही है, क्योंकि किसानों के कल्याण के नाम पर शुरू की गयी योजनाएं किसानों की आय बढ़ाने के बजाय कृषि-व्यवसाय के हितों की बेहतर सेवा करती हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तो सरकार बढ़ती इनपुट लागत को ध्यान में रखते हुए किसानों को न्यूनतम मूल्य का आश्वासन क्यों नहीं देती?

फिर भी, कृषि क्षेत्र की योजनाओं के लिए 7 नयी बड़ी घोषणाएँ हैं: फसल विज्ञान खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए 3,979 करोड़ रुपये; कृषि शिक्षा, प्रबंधन के लिए 2,291 करोड़ रुपये; डिजिटल कृषि मिशन के लिए 2,817 करोड़ रुपये; पशुधन स्वास्थ्य एवं उत्पादन के लिए 1,702 करोड़ रुपये; बागवानी के सतत विकास के लिए 860 करोड़ रुपये; कृषि विज्ञान केंद्र प्रबंधन के लिए 1,202 करोड़ रुपये; तथा प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए 1,115 करोड़ रुपये।

डिजिटल कृषि मिशन को डिजिटल कृषि पहलों का समर्थन करने के लिए एक व्यापक योजना के रूप में परिकल्पित किया गया है, जैसे कि डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) का निर्माण, डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (डीजीसीईएस) का कार्यान्वयन, तथा केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, तथा शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों द्वारा अन्य आईटी पहलों को अपनाना।

सरकार ने कहा है कि एग्रीस्टैक, जिसे किसान-केंद्रित डीपीआई के रूप में परिकल्पित किया गया है, किसानों को कुशल, आसान और तेज़ सेवाएँ तथा योजनाएँ प्रदान करने में सक्षम बनायेगा। किसानों को आधार की तरह एक डिजिटल पहचान (किसान आईडी) दी जायेगी, जो एक विश्वसनीय 'किसान की पहचान' होगी। यह वास्तव में एक सुंदर नारा है, लेकिन बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कैसे लागू किया जायेगा, और उसके बाद ही किसानों को पता चलेगा कि इससे उन्हें कितना फायदा होगा। फिर भी, केंद्र ने कहा है कि मिशन कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के रोजगार पैदा करने में उत्प्रेरक प्रभाव डालेगा।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि विनिर्माण या उद्योग क्षेत्र के मुकाबले कृषि, विशेष रूप से कोविड-19 संकट के बाद और भी अधिक बेरोजगारों को सहारा दे रही है। बहुत कम आय के कारण, कृषि से अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में पलायन हुआ, जो 2020 के लॉकडाउन और शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में आर्थिक ठहराव के दौरान उलट गया। लाखों लोग गांवों से कभी वापस नहीं लौटे, जिससे पहले से ही कम आय का स्तर और कम हो गया, और कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत अनेक लोग वास्तव छिपी हुई बेरोजगारी ही झेल रहे हैं।

नयी घोषित योजनाएं निश्चित रूप से कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में बहुत कम आय वाले रोजगार या बेरोजगारी की इस समस्या को खत्म नहीं कर सकती हैं, क्योंकि ये योजनाएं रोजगार पर केंद्रित नहीं हैं, बल्कि किसी और चीज पर केंद्रित हैं, जिसमें रोजगार केवल एक उप-उत्पाद है। नयी घोषित योजनाएं अपने आप में अच्छी लगती हैं, लेकिन मोदी सरकार का यह दावा झूठा है कि ये किसानों का कल्याण कर सकती हैं, खासकर तब जब सरकार स्वामीनाथन की सिफारिश और किसानों की मांग के अनुसार फसलों के लिए इनपुट लागत को ध्यान में रखते हुए कानूनी रूप से बाध्यकारी न्यूनतम मूल्य देने के लिए भी तैयार नहीं है। (संवाद)