पिछले सप्ताह तिरुवनंतपुरम में केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक और पंजाब के वित्त मंत्रियों ने भी भाग लिया। इस सम्मेलन में केंद्र-राज्य राजकोषीय संबंधों में बढ़ते असंतुलन पर गंभीर चिंता व्यक्त की गयी।

सम्मेलन में पांच गैर-भाजपा शासित राज्यों के वित्त मंत्रियों ने विभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने और केंद्र प्रायोजित योजनाओं में ‘एक ही आकार सभी के लिए उपयुक्त’ की केन्द्रीय नीति में संशोधन की मांग की क्योंकि सभी राज्यों की स्थितियां भिन्न हैं। वित्त मंत्रियों ने उपकर और अधिभार पर सीमा लगाने की जोरदार मांग की ताकि सीमा से ऊपर की कोई भी राशि विभाज्य पूल में जाये।

सम्मेलन का उद्घाटन करने वाले केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 16वें वित्त आयोग का ध्यान आकर्षित किया और कहा कि वह अपनी सिफारिशों का मसौदा तैयार करते समय उपकर और अधिभार में बढ़ती प्रवृत्ति को ध्यान में रखे। पिनाराई ने कहा, “पिछले दशक में अधिभार और उपकर में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी गयी है और अब यह संघ के सकल कर राजस्व का पांचवां हिस्सा है। इसका सीधा परिणाम करों के विभाज्य पूल का सिकुड़ना है।”

केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किये जाने वाले करों में राज्यों के लिए अधिक हिस्सेदारी की मांग “निरंतर प्रासंगिकता” रखती है। संतुलन बनाने की प्रक्रिया में, 16वें वित्त आयोग को कर वितरण के फार्मूले पर निर्णय लेने में अत्यधिक सावधानी बरतनी होगी तथा जरूरतमंद राज्यों को अनुदान वितरित करने के लिए अनुच्छेद 275 के संवैधानिक प्रावधानों का प्रभावी ढंग से उपयोग करना होगा।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए, तेलंगाना के उपमुख्यमंत्री तथा वित्त मंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क ने वास्तविक संघीय व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए केंद्र-राज्यों के बीच शक्ति संतुलन को पुनः संतुलित करने की मांग की।

तमिलनाडु के वित्त मंत्री थंगम थेन्नारासु ने विभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 41 से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु को लगातार वित्त आयोगों द्वारा बार-बार दंडित किया गया है, तथा नौवें वित्त आयोग के तहत इसकी हिस्सेदारी 7.93 से घटकर 15वें वित्त आयोग के तहत 4.07 प्रतिशत रह गयी है।

कर्नाटक के राजस्व मंत्री कृष्ण बायरे गौड़ा ने 16वें वित्त आयोग से केंद्र सरकार द्वारा लगाये जाने वाले उपकर तथा अधिभार को सकल कर राजस्व के पांच प्रतिशत पर सीमित करने को कहा। इससे ऊपर की कोई भी चीज विभाज्य पूल का हिस्सा बननी चाहिए। यही तमिलनाडु की मांग है।

पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने स्वीकार किया कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरूआत एक ऐतिहासिक सुधार था, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि इसने राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को गंभीर रूप से कम कर दिया है।

सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले केरल के वित्त मंत्री के एन बालगोपाल ने महसूस किया कि सहकारी संघवाद एक बड़े संकट का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह तेजी से “अधीनस्थ संघवाद” या “जबरदस्ती संघवाद” बनता जा रहा है।

सम्मेलन में यह आशंका भी व्यक्त की गयी कि लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन से दक्षिणी राज्यों के हितों को नुकसान पहुंचेगा।

तेलंगाना ने इसे एक “बढ़ते राजनीतिक खतरे” के रूप में देखा, जिससे लोकसभा में दक्षिणी राज्यों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम हो जायेगा। उन्हें यह भी डर था कि जिन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण और सामाजिक विकास को प्राथमिकता दी है, उन्हें अनुचित रूप से दंडित किया जा सकता है, जबकि उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को लोकसभा में असंगत प्रतिनिधित्व मिल सकता है।

कर्नाटक ने तेलंगाना द्वारा व्यक्त की गयी आशंकाओं से खुद को जोड़ा। यदि यह प्रक्रिया आगामी जनगणना पर आधारित है तो संसद में दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो जायेगा। राज्य के वित्त मंत्री ने कहा कि यह एक अजीब विरोधाभास है कि एक तरफ दक्षिणी राज्यों का आर्थिक योगदान बढ़ रहा है, जबकि दूसरी तरफ इस बात की पूरी संभावना है कि उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह अस्वीकार्य है और दक्षिणी राज्यों को पूरी ताकत से इसका विरोध करना चाहिए। दोपहर के सत्र में भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने मुख्य भाषण दिया। (संवाद)