फ्रांसीसी अखबार ले मोंडे ने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी के पहले 100 दिन “खराब” रहे। इस साल इतिहास बनने से पहले प्रधानमंत्री मोदी को कई अन्य चुनावी परीक्षाओं का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी होने हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव भी होने हैं और एक दशक में पहली बार मोदी चुनाव से थके हुए नज़र आये। क्या मोदी-शाह की चुनावी जंग की रफ़्तार धीमी पड़ गयी है?
18 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने इस केन्द्र शासित प्रदेश की विधानसभा के चुनाव के पहले चरण के लिए वोट डाले। लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस सत्ता में आती है तो 10 साल में पहली बार होने वाले इन जम्मू-कश्मीर चुनावों में अनुच्छेद 370 और 35 ए का पुनर्जन्म होगा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए सबसे बड़ी परीक्षा यह देखना होगा कि अनुच्छेद 370 को हटाये जाने का प्रस्ताव आयेगा। मोदी और शाह नहीं चाहते कि “अब्दुल्ला जीतें।” नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन में ये चुनाव लड़ रहे हैं और विपक्ष के नेता राहुल गांधी घाटी में “मोहब्बत की दुकान” और जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दिलाने की बात कर रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले 100 दिनों में जम्मू-कश्मीर पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया। एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने कई रास्तों से पाकिस्तान के साथ व्यापार फिर से शुरू करने का वायदा किया, जबकि भारतीय सेना पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादियों से लड़ने में मुश्किल में थी। आतंकियों की भीड़ पाकिस्तान की अफगानिस्तान के साथ सटी पश्चिमी सीमा पर चली गयी है जिसके पूर्व में नियंत्रण रेखा है।
जम्मू में भारतीय सेना के सैनिक और अधिकारी भी नियमित रूप से मारे जा रहे हैं और अपंग हो रहे हैं। यह एक पुरानी कहानी है, लेकिन मोदी के पहले 100 दिनों में जम्मू क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की लगातार मौतें देखी गयीं। ऐसा महसूस हुआ कि मोदी की एनडीए सरकार पाकिस्तानी सेना से सीधे मुकाबला करने या दुश्मन पाकिस्तान के साथ बातचीत फिर से शुरू करने में दिलचस्पी नहीं रखती।
मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति का लगभग अभाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से है। पाक सेना की चालों की बदौलत, पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करना कभी बंद नहीं किया और इसने कभी भी नई-नवेली भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को सख्त और त्वरित कार्रवाई करने का मौका नहीं दिया।
पाकिस्तान को जल्द से जल्द सबक सिखाया जाना चाहिए था, कम से कम अब, मोदी के पहले 100 दिनों के बीच में। यह बात दुखद है कि पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादी जम्मू के इलाके को भारतीय सेना से कहीं बेहतर जानते हैं।
मोदी सरकार के पहले दो कार्यकालों में और अब मोदी के तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों में भी "पाकिस्तान" का ख्याल उनके दिमाग में नहीं आया। मोदी यूक्रेन-रूस युद्ध में उलझे हुए हैं और जम्मू के जंगलों में भारतीय सेना के जवानों की मौत के बावजूद वह कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादियों और पाक सेना ने यह सुनिश्चित किया कि कश्मीर घाटी को एक बहुत जरूरी ब्रेक मिले, जबकि जम्मू में अनेक सैनिकों की जानें चली गयी। सीमा पार का दुश्मन जम्मू-कश्मीर में सत्ता परिवर्तन चाहता है।
अगर एनसी-कांग्रेस गठबंधन राज्य में जीतता है तो क्या होगा? तब, नयी सरकार के एजंडे में राज्य का दर्जा सबसे ऊपर होगा। भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-ए के बारे में क्या? क्या कोई राज्य सरकार शाह द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के फैसले को निरस्त कर सकती है? क्या ऐसे संवैधानिक मामले केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते? क्या जम्मू-कश्मीर में फिर से पत्थरबाजी शुरू हो जायेगी और क्या मोदी सरकार कम से कम अब अपना रुख स्पष्ट करेगी?
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद भाजपा जम्मू-कश्मीर के लिए अपनी योजनाओं के बारे में बहुत ही अस्पष्ट रही है। राहुल गांधी ने घाटी की अपनी यात्रा के दौरान अनुच्छेद 370 का उल्लेख नहीं किया, और खुद को जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करने के वायदे तक ही सीमित रखा। राहुल गांधी के आने और जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर में थे और मोदी ने ऐसे बात की जैसे भाजपा बिना किसी मेहनत के जम्मू-कश्मीर जीत जायेगी।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच एक दुर्लभ दोस्ती है। इतना ही नहीं, मोदी और मैक्रोन, दोनों को दोनों देशों में हुए चुनावों में केवल "आधी जीत" मिली। साथ ही, मैक्रोन का भविष्य अंधकारमय है और अगर भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश उपचुनाव हार जाती है तो मोदी भी मुश्किल में पड़ सकते हैं।
लोकसभा चुनावों में मोदी की "आधी जीत" ने भारतीय जनता पार्टी को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, जिससे प्रधानमंत्री मोदी को एक दयनीय स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। मोदी के गठबंधन सहयोगी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू "अप्रत्याशित क्षेत्रीय नेता" हैं।
जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के "अगले 100 दिन" रडार के नीचे होंगे और उनको अपना राजनीतिक प्रभाव बनाये रखने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जीत की आवश्यकता है। क्या हरियाणा में भाजपा जीत हासिल कर पायेगी, और क्या वे महाराष्ट्र जीतेंगे? क्या मोदी और शाह जम्मू-कश्मीर में चुनावी जीत हासिल कर अनुच्छेद 370 की वापसी को रोक पायेंगे?
समस्या यह है कि एनडीए सरकार का बने रहना जनता दल (यू) और तेलुगू देशम पार्टी की सनक पर निर्भर करता है। मोदी के पहले 100 दिन कई यू-टर्न वाले रहे। आगे चलकर वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 और 'धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता' बड़ी चुनौतियां होंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत ही कठिन राह पर चल रहे हैं और उनके दूसरे 100 दिन या तो उन्हें बना देंगे या बिगाड़ देंगे। कौन सा होगा? (संवाद)
बिना शोर-शराबे के गुजरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन
भाजपा सदस्य उनके 74वें जन्मदिन के अवसर पर भी उतने ही शांत रहे
सुशील कुट्टी - 2024-09-19 10:42
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एनडीए सरकार ने 17 सितंबर को अपने तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन पूरे किये। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं, और उनका प्रदर्शन कैसा रहा, यही 17 सितम्बर के दिन का विषय था, क्योंकि इसी दिन उनका जन्मदिन भी था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को 74 साल के हो गये और इस अवसर पर बहुत जश्न का माहौल नहीं था। 2024 के लोकसभा चुनावों में “आधी जीत” की भावना मन में अभी भी बनी हुई है, जो लोगों को परेशान और उन्हें सोचने पर मजबूर करती है।