ऐसे कई अन्य ज्वलंत प्रश्न 18 सितंबर को तब उभरे, जब हमारे प्रधानमंत्री के 74वें जन्मदिन और प्रधानमंत्री के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने के एक दिन बाद, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लिया, जिसमें मांग की गयी थी कि इजरायल 12 महीने के भीतर बिना किसी देरी के अपने कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में अपनी अवैध उपस्थिति को समाप्त करे।
193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, जिसमें भारत को छोड़कर अधिकांश विकासशील देशों और ब्रिक्स सदस्यों सहित 124 सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि अमेरिका और इजरायल सहित 14 सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया और भारत सहित 43 सदस्यों ने मतदान में भाग नहीं लिया।
खास बात यह रही कि भारत की तरह ही क्वैड के एक सदस्य जापान ने भी प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और कहा कि इजरायल की फिलिस्तीन में कब्जे वाली बस्तियों की गतिविधियां दो राष्ट्रों के प्रस्ताव की प्रगति को कमजोर करती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 सितंबर को अमेरिका में चार देशों के क्वैड शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। यह अमेरिका की उनकी तीन दिवसीय यात्रा का पहला दिन होगा। यह राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा आयोजित एकमात्र शिखर सम्मेलन है, जिसमें हमारे प्रधानमंत्री बड़े उत्साह के साथ भाग ले रहे हैं। चार भागीदारों में से, अमेरिका जो इजरायल का संरक्षक है, ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, लेकिन जापान ने इसका समर्थन किया और दो अन्य सदस्य भारत और ऑस्ट्रेलिया ने मतदान में भाग नहीं लिया।
भारत और ऑस्ट्रेलिया एक ही समूह में हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया पश्चिमी हितों से जुड़ा एक समृद्ध राष्ट्र है, जबकि भारत, जिसे कई वर्षों से वैश्विक दक्षिण के चैंपियन के रूप में जाना जाता है, ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है कि दुनिया का सबसे बड़ा सक्रिय लोकतंत्र भारत ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सक्रिय सदस्यों से अलग-थलग पड़ गया है।
पिछले साल 7 अक्तूबर को इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध शुरू होने के बाद से ग्यारह महीने से अधिक समय में, गाजा क्षेत्र के विनाश की ओर ले जाने वाली शत्रुता को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर कई प्रयास किये गये हैं। मरने वालों की संख्या लगभग 40,000 है गयी है। भारत को छोड़कर ब्रिक्स के सभी सदस्यों ने इजरायल द्वारा अत्याचारों को तुरंत समाप्त करने और फिलिस्तीन क्षेत्र पर उसके अवैध कब्जे को समाप्त करने की मांग में अग्रणी भूमिका निभायी।
दक्षिण अफ्रीका ने आधिकारिक तौर पर मांग की है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अपराधी घोषित करे और इजरायल से अपना कब्जा समाप्त करने को कहा जाये। ब्राजील के राष्ट्रपति ने दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति के कदम का पूरा समर्थन किया। अंत में, आईसीजे ने इजरायल को उसके अत्याचारों को समाप्त करने के लिए अपना आदेश जारी किया लेकिन इजरायल सरकार आईसीजे के आदेश का पालन नहीं कर रही है।
18 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित प्रस्ताव इस संदर्भ में विशेष महत्व रखता है। 21 सितंबर को क्वैड की बैठक होगी जिसमें चारों देशों के राष्ट्राध्यक्ष भाग लेंगे। गाजा पर इजरायल के कब्जे समेत वैश्विक मुद्दों पर भारतीय प्रधानमंत्री के विचारों पर नजर रखना दिलचस्प होगा।
एससीओ की बैठक 15 और 16 अक्तूबर को इस्लामाबाद में होनी है, जबकि ब्रिक्स की बैठक रूस में राष्ट्रपति पुतिन की मेजबानी में 22 से 24 अक्तूबर को होगी, जिसमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल होंगे। यह बैठक काफी दिलचस्प होगी।
अभी तक जो संकेत मिल रहे हैं, उसके अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एससीओ बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं। संभव है कि वे आगामी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल हों। लेकिन ब्रिक्स में वे कम महत्वपूर्ण भूमिका में शामिल होंगे, क्योंकि वे इंडो-पैसिफिक रणनीति में अमेरिका के करीब आने की उत्सुकता में खुद को वैश्विक दक्षिण से अलग कर चुके हैं। (संवाद)
भारत ने इजरायल के मुद्दे पर खुद को ब्रिक्स सदस्यों से अलग-थलग कर लिया
फिलिस्तीनी क्षेत्र से कब्जा हटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में मतदान से बचना शर्म की बात
नित्य चक्रवर्ती - 2024-09-20 10:46
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान भारतीय विदेश नीति में क्या हो रहा है? क्या भारत 2024 में संयुक्त राज्य अमेरिका का एक जागीर देश बन जायेगा और देश के ब्रिक्स भागीदारों के साथ अपने सभी राजनीतिक संबंधों को समाप्त कर देगा?