उसकी अदाओं के कई दीवाने थे। वह जब चलती थी तो सबकी निगाहें उस पर टिकीं होती थीं। लगभग हर दूसरे दिन पेज थ्री पर उसके चर्चे आम थे। वह विज्ञापन जगत की एक जानी-मानी हस्ती थी। और एक दिन उसने आत्महत्या कर ली।

जाने कितनी बार ऐसी कहानियां हमारे सामने आती हैं। या यूं कहें कि फैशन जगत के सुनहले पर्दे के पीछे की सच्चाई सामने आती है। इस चकाचैंध भरी दुनिया का यह वह काला पक्ष है जो गाहे-ब-गाहे हमारे सामने आता रहता है। हाल ही में विवेका बाबाजी ने आत्महत्या कर ली। फैशन जगत एक बार फिर स्तब्ध रह गया। कुछ और मॉडल्स को उसकी कहानी अपने जैसी लगी होगी। शायद उन्होंने भी सोचा हो कि अच्छा हुआ। हम भी कुछ ऐसा कर के इस दुनिया को अलविदा कह देंगे।

लाखों-करोड़ों के दिलों पर राज करने वाले आखिर क्यों ऐसा कदम उठाने पर मजबूर होते हैं? क्या कमी होती है उन्हें ? धन-दौलत, ऐशो-आराम सब कुछ तो होता है। एक आज़ाद ज़िंदगी होती है। अपने जीवन के हर फैसले पर उनका अधिकार होता है। लेकिन शायद नहीं। यह वह पर्दा है जो हम बाहर से देखते हैं। अंदर का खालीपन, मन का सूनापन मेकअप की पर्तों के पीछे कहीं छुपा होता है। चेहरे पर पड़ती रोशनी की बारिश भी मन के अंधेरों को मिटा नहीं पाती। काम का दबाव, अकेलापन और अपने इस्तेमाल किए जाने की कसक अंदर ही अंदर उन्हें खोखला बना देती है। उसके उपर जुल्म यह कि अधिकतर ऐसे लोगों की उनके आस-पास कमी होती है जिससे वे अपनी पीड़ा, अपनी व्यथा बांट सकें। सबके सामने कुछ कह भी नहीं सकते। कहेंगे तो उनकी बात का बतंगड़ बन जाएगा। आपस में चुगलियां होंगी। मीडिया परेशान करेगा। न जाने क्या-क्या उनके बारे में लिखा जाएगा। और हो सकता है कि उन्हें अगला मॉडलिंग असाइंगमेंट भी न मिले। या फिर ना जाने कितनी मुश्किलों और सालों बाद हाथ आये विज्ञापन के अनुबंध को कंपनी तोड़ दे। फिर क्या होगा? करियर खत्म। कैसे जिऐंगे? इस आलीशान लाइफस्टाइल के लिए पैसे कहां से लाएंगे?

ऐसे ही न जाने कितने ही सवाल उनके मन में उथल-पुथल मचाते रहते होंगे। और वे खुद ही अपने सवालों का जवाब देते रहते होंगे। इन सवालों से निजात पाने के लिए कुछ लोग नशे का सहारा लेने लगते हैं। ड्रग्स की लत में फंस जाते हैं। और फिर उनकी परेशानी और आत्मग्लानि और बढ़ जाती होगी। औैर उन्हें लगता होगा कि वे जिंदगी से हार गए हैं, आत्महत्या के सिवा उनके पास और कोई रास्ता नहीं बचा। बड़े किस्मत वाले होते हैं वे लोग जिनके पास वक्त पर समझाने के लिए कोई अपना, कोई दोस्त होता है। सुख-दुख बांट सकता है। ज़िदगी से उन्हें हारने नहीं देता।

पिछले कुछ सालों में परवीन बॉबी, नफीसा जोसफ, कुलजीत रंधावा, जैसे कितने ही नाम हैं जिन्होंने आत्महत्या का रास्ता चुना। परवीन बॉबी 70 के दशक की हिंदी सिनेमा की बेहद खूबसूरत अभिनेत्री थीं। दीवार, नमक हलाल और अमर अकबर ऐंथनी जैसी बड़ी फिल्मों में उन्होंने काम किया था। जीवन के आखिरी दिन ऐसी गुमनामी में कटे कि उनकी आत्महत्या के कई दिनों बाद लोगों को पता चला कि उन्होंने अपनी ज़िदगी खत्म कर ली है। नफीसा जोसफ 1997 में मिस इंडिया यूनीवर्स रह चुकी थीं। एम टी वी पर वीडियो जॉकी थीं। अपनी ‘ाादी से कुछ समय पहले ही उन्होंने मौत को गले लगा लिया। कुलजीत रंधावा एक मॉडल और टेलीविज़न अभिनेत्री थीं। हिप हिप हुर्रे और स्टार वन के स्पेशल स्क्वाड जैसे प्रसिद्ध कार्यक्रम में उन्होंने काम किया था। एक दिन पता चला कि वह पंखे पर झूल गईं। हिंदी फिल्मों में असफल होने के बाद दक्षिण की फिल्मों में पहचान बनाने वाली आरती अग्रवाल ने भी कुछ ऐसी ही कोशिश की थी लेकिन उनकी जीवन रेखा लम्बी थी। वह बच गईं। ऐसा नहीं कि फैशन और अभिनय जगत की महिलाएं ही केवल भावावेश में आकर ऐसा कदम उठाती हों। गुरूदत्त हिंदी सिनेमा में एक जाना-माना नाम है। डायरेक्टर और अभिनेता दोनों के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई। ज़िदगी से ना जाने कैसी नाराजगी थी उनकी। तीन बार उन्होंने मौत को गले लगाने की कोशिश की। आखिर में उन्हें मौत ने अपना ही लिया। ज्यादा पुरानी बात न करें तो फिल्म दिल ही दिल में सोनाली बेंद्रे के साथ काम करने वाले अभिनेता कुणाल सिंह ने भी जिंदगी को जान-बूझ कर अलविदा कह दिया।

सिर्फ भारत में ही नहीं विदेशों में भी इस क्षेत्र से जुड़े कई लोग अपनी ज़िंदगी से खफा हो चुके हैं। कई अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड्स के लिए मॉडलिंग करने वाले टॉम निकॉन ने कुछ दिन पहले ही मिलान फैशन वीक के दौरान खिड़की से कूदकर जान दे दी। उनके इस कदम से मिलान फैशन वीक में आए सभी लोग अचंभित रह गए। कज़ाखिस्तान की टॉप मॉडल रूसलाना कोर्षूनोवा ने भी अपने करियर से असंतुष्ट होकर खिड़की से कूदकर जान दे दी थी। यही नहीं महज 20 साल की कोरिया की सुपर मॉडल डाउल किम ने भी आत्महत्या कर अपनी बेबसी से छुटकारा पा लिया, लेकिन अपने लाखों प्रशंसकों को निराश कर दिया।

फैशन जगत के जाने कितने दिग्गजों को ये कहानियां अपनी जैसी लगती होंगी। हमें सुनने में बहुत रोमानी लगती हैं। लोगों को चकल्लस के लिए मसाला मिल जाता है। लेकिन जो इस पीड़ा और दर्द से गुजरते हैं। जो अपने जीवन से इतने परेशान हो जाते हैं कि आत्महत्या के सिवा उन्हें कोई रास्ता नज़र नहीं आता, उनके बारे में, उनकी जगह खड़े होकर कोई नहीं सोचता। क्या हल है इनकी परेशानियों का? कैसे फैशन और अभिनय जगत का काम करने का माहौल ऐसा बनाया जाए कि कोई फिर ऐसा कदम ना उठाए, इस बारे में पहल करना बहुत जरूरी है। यह पहल जगमगाते और चुंबक की तरह अपनी ओर खींचते फैशन और अभिनय जगत के भीतर से ही होनी चाहिए। क्योंकि वहां काम कर रहे लोग दुकान पर कपड़े सजाने के लिए रखे गए पुतले या सिर्फ मॉडल्स नहीं हैं। यहां काम कर रहे लोग मॉडल्स के साथ इंसान भी हैं। वह सिर्फ काल्पनिक कथाओं के चरित्र ही नहीं निभाते। वह खुद भी जीती जागती जिंदगी हैं। उनकी अपनी भी एक पहचान है। (फर्स्ट न्यूज)