ध्यान रहे कि यूएसएआईडी एक स्वायत्त अमेरिकी सरकारी एजेंसी है, जो विदेशी नागरिक सहायता और विकास सहायता के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है। भारत को दिये गये कथित धन को जो बाइडेन ने मंजूरी दी थी। बुधवार (19 फरवरी) को मियामी में एक कार्यक्रम में डोनाल्ड ट्रंप ने सवाल उठाया कि भारत में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर क्यों खर्च किये गये? उन्होंने साथ में यह भी सुझाव दिया कि इस पैसे का इस्तेमाल चुनाव में किसी दूसरे उम्मीदवार का समर्थन करने और मौजूदा उम्मीदवार को हटाने के लिए किया गया हो सकता है। ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत सरकार को इस बारे में सूचित किया जाना चाहिए, उन्होंने इसे "बड़ा खुलासा" बताया।

भाजपा नेताओं ने भारत के आंतरिक मामलों में अमेरिका समर्थित संगठनों की संलिप्तता की गहन जांच का आग्रह किया है। उनका दावा है कि यूएसएआईडी, जॉर्ज सोरोस के 'ओपन सोसाइटी फाउंडेशन' (ओएसएफ) और 'नेशनल एंडोमेंट फॉर डेमोक्रेसी' (एनईडी) जैसे समूह भारत की व्यवस्था में गहरायी से समाये हुए हैं। माना जाता है कि ये संगठन अक्सर गुप्त अभियानों से जुड़े होते हैं और राजनीति, मीडिया और नागरिक समाज सहित विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। भाजपा नेताओं का तर्क है कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने और भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए उनकी गतिविधियों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए।

भाजपा के एक नेता ने यूएसएआईडी से जुड़े व्यक्तियों और संगठनों की जांच का आग्रह किया है, उनका दावा है कि भारत में इसकी गतिविधियों के वास्तविक उद्देश्य को उजागर करना आवश्यक है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रभावशाली समूह, जिन्हें अक्सर 'डीप स्टेट एसेट्स' कहा जाता है, राजनेताओं, सामाजिक नेताओं, शिक्षाविदों, थिंक टैंक, मीडिया और नागरिक समाज को प्रभावित करके जनता की राय को आकार देने के लिए पर्दे के पीछे काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि ये समूह विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाकर सरकार विरोधी बयानबाजी को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं। उन्होंने बाहरी ताकतों को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया।

2014 से सरकार के आलोचकों ने अक्सर दावा किया है कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अल्पसंख्यकों और निचली जाति के समुदायों के लिए खतरा हैं। यह दृष्टिकोण यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (यूएससीआईआरएफ) की रिपोर्टों में भी दोहराया गया है, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे भाजपा नेताओं का भी उल्लेख किया गया है।

गोवा के भाजपा नेता रोड्रिग्स ने रूसी मीडिया आउटलेट स्पुतनिक के साथ एक साक्षात्कार में इस दृष्टिकोण को साझा किया। भाजपा नेता का दावा है कि यूएसएआईडी और जॉर्ज सोरोस से जुड़े समूहों ने जब भी संभव हो, भारत में राजनीतिक और धार्मिक विभाजन का लाभ उठाने की कोशिश की है। कोविड महामारी के दौरान, कुछ प्रमुख मीडिया आउटलेट्स ने संकट के प्रबंधन में मोदी सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया।

भाजपा नेता ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध के दौरान, कुछ संगठनों और अमेरिकी प्रभावशाली लोगों ने सरकार विरोधी बयानबाजी का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यूएसएआईडी वर्ल्ड विजन का एक प्रमुख समर्थक था, जो एक ईसाई मानवीय संगठन है, जिस पर भारत में अवैध धर्मांतरण में शामिल होने का आरोप लगाया गया है।

जॉर्ज सोरोस, एक अरबपति निवेशक और परोपकारी व्यक्ति, अपने ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन (ओएसएफ) के माध्यम से भारत में संगठनों को फंड देते हैं। उनकी पहल मानवाधिकार, लोकतंत्र और मीडिया की स्वतंत्रता पर केंद्रित है। आलोचकों का तर्क है कि उनका प्रभाव राजनीतिक बयानबाजी को आकार देता है, जबकि समर्थक उनके काम को पारदर्शिता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के रूप में देखते हैं।

डिसइन्फो लैब द्वारा की गयी जांच, जो एक शोध समूह है जो मीडिया और राजनीति में गलत सूचना, विदेशी प्रभाव और छिपे हुए एजेंडों की जांच करता है और फंडिंग स्रोतों, प्रचार नेटवर्क और जनमत को हेरफेर करने के प्रयासों का विश्लेषण करता है, का दावा है कि यूएसएआईडी के फंड कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन में शामिल समूहों- यूएससीआईआरएफ, इस्लामवादी संगठनों और हिंदुत्व विरोधी समूहों को दिये गये हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सोरोस समर्थित ओएसएफ ने पीएम मोदी का विरोध करने वाले अन्य संगठनों को यूएसएआईडी का पैसा वितरित करने में मदद की है।

यूएसएआईडी और भारत के बीच साझेदारी 1950 के दशक से चली आ रही है जब अमेरिका ने भारत के खाद्य कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए खाद्य सहायता प्रदान करना शुरू किया था। यह सहायता कई वर्षों तक जारी रही और आखिरकार 2012 में समाप्त हो गयी। 2021 तक यूएसएआईडी ने भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) को वित्तपोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, जिससे उसे भारतीय परिवारों के बारे में महत्वपूर्ण डेटा तक पहुँच मिली। 2011 में, भारत के चुनाव आयोग ने चुनावों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और अपनाने के लिए यूएसएआईडी-समर्थित इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के साथ भागीदारी की।

2014 से यूएसएआईडी ने भारत के साथ कई पहलों में भागीदारी की है, जिसमें कैशलेस भुगतान को बढ़ावा देना और भारतीय रेलवे को शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की दिशा में काम करने में मदद करना शामिल है। 2023 में यूएसएआईडी ने भारत को लगभग 175.71 मिलियन डॉलर का वित्तपोषण प्रदान किया। इसमें लोकतंत्र, मानवाधिकार और शासन से संबंधित कार्यक्रमों के लिए 7.43 मिलियन डॉलर शामिल थे, जैसा कि यूएसएस्पेन्डिंग द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है।

भारत में यूएसएआईडी की भूमिका - सरकार और नागरिक समाज दोनों में - पीएम मोदी को हटाने की कोशिश करने के दावों के अलावा, राजनीतिक विवाद का कारण बनी है। सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे पर विदेशी प्रभावों के साथ काम करने का आरोप लगाया है। दोनों दलों ने यूएसएआईडी की गतिविधियों की जांच की मांग की है। ट्रम्प के बयान के एक दिन बाद गुरुवार (20 फरवरी) को कांग्रेस ने इस मुद्दे पर एक 'श्वेत पत्र' की भी मांग की।

थिंक टैंक यूसेनस फाउंडेशन के सीईओ ने स्पुतनिक को बताया कि 15 भारतीय सरकारी एजंसियों, नागरिक समाज समूहों और थिंक टैंकों के साथ यूएसएआईडी के संबंधों ने भारत की खुली और लोकतांत्रिक प्रणाली पर विदेशी प्रभाव के संभावित जोखिम को उजागर किया है। सीईओ ने बताया कि विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत पंजीकृत भारतीय संगठन विदेशी समूहों के साथ काम कर सकते हैं। हालांकि, 'हस्तक्षेप' किसे माना जाये, यह एक जटिल और व्यापक रूप से बहस का विषय है। सीईओ ने कहा, "हमें यह पता लगाने की जरूरत है कि मतदाताओं के मतदान को प्रभावित करने के लिए उन्होंने किन राजनेताओं, सामुदायिक नेताओं या मीडिया आउटलेट से संपर्क किया होगा। यह संभव है कि यूएसएआईडी का समर्थन प्राप्त करने वाले लोग सोशल मीडिया और आमने-सामने की बैठकों के माध्यम से भारतीय मतदाताओं तक अपना एजंडा फैला सकते हैं।" उन्होंने भारत की नौकरशाही में छिपे विदेशी प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की और बताया कि अमेरिका में परिवार वाले अधिकारियों पर दबाव या ब्लैकमेल का खतरा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी प्रशिक्षण प्राप्त करने से वे इस तरह के प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं। सीईओ ने सुझाव दिया कि इस बात की थोड़ी संभावना है कि डीप स्टेट और यूएसएआईडी 2014 के चुनाव से पहले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का समर्थन करके पिछली कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को गिराने में शामिल थे। थिंक टैंक प्रमुख ने सुझाव दिया कि डीप स्टेट को मोदी सरकार से वह समर्थन नहीं मिला जिसकी उसे उम्मीद थी। परिणामस्वरूप, इसने अपना दृष्टिकोण बदल दिया होगा और 2019 तथा 2024 के चुनावों में भाजपा को हटाने की दिशा में काम किया होगा।

हालांकि, यह दावा करने वाली रिपोर्टें कि भारत को चुनावों में मतदाता मतदान को प्रभावित करने के लिए यूएसएआईडी से 21 मिलियन डॉलर मिले, झूठी साबित हुई है। इंडियन एक्सप्रेस ने इस दावे की जांच की और पाया कि भारत को ऐसा कोई फंड नहीं दिया गया था। इसके बजाय, यूएसएआईडी की ‘चुनाव’ श्रेणी के तहत बांग्लादेश को कुल 23.6 मिलियन डॉलर आवंटित किये गये थे।

इस तथ्य की पुष्टि इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट ने की, जिसने स्वतंत्र रूप से विवरणों की पुष्टि की। उनके निष्कर्षों के अनुसार, बांग्लादेश को दी गयी कुल राशि में से, 18.1 मिलियन डॉलर कंसोर्टियम फॉर इलेक्शन्स एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग (साईपीपीएस) को प्रदान किये गये, जो एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का समर्थन करता है। शेष धनराशि चुनावी सहायता कार्यक्रमों में शामिल अन्य एजंसियों के बीच वितरित की गयी।

सरल शब्दों में, यह दावा कि भारत को अपने चुनावों के लिए यूएसएआईडी से धन मिला, गलत है। वास्तविक निधि बांग्लादेश में चुनाव संबंधी पहलों के लिए निर्देशित की गयी थी, न कि भारत के लिए। (संवाद)