उन्होंने आगे कहा, ध्यान वह कुंजी है जो इस छिपे हुए खजाने को खोलती है, हमें हमारे सच्चे स्वरूप की उच्चतम अभिव्यक्ति की ओर मार्गदर्शन करती है।

इस सत्संग में स्वामी चिदानन्द गिरि ने बताया कि कैसे ध्यान का एकनिष्ठ और नियमित अभ्यास हमारे भीतर दिव्य क्षमता को जागृत कर सकता है। शरीर, मन और आत्मा में सामंजस्य बिठाकर, ध्यान आंतरिक परिवर्तन और आध्यात्मिक विकास के मार्ग के रूप में कार्य करता है, जो हमें एक उद्देश्यपूर्ण, शांति और आनंद से भरा जीवन जीने के लिए सक्षम बनाता है।

स्वामीजी ने कहा कि जिस संसार में हम रहते हैं वहां अनके विपरित परिस्थितियां व निगेटिव स्पंदन होते हैं लेकिन हम ध्यान में रहते हुए ईश्वर से संपर्क बनाए रखते हुए परिवार में, कार्यस्थल में, पेशेवर जीवन में और समाज में सुरक्षित रह सकते हैं। हमें इस दुनिया में परमात्मा के साथ सचेत संबंध बनाए रखते हुए जीना सीखना चाहिए तथा परोपकार करते रहना चाहिए।

स्वामी चिदानंद ने पौधों द्वारा किए जाने वाले फोटो सिंथेसिस प्रक्रिया का उदाहरण देते हुए अपने सत्संग में कहा कि साधक को भी इसी प्रकार स्वंय को ईश्वर से लिंक बनाए हुए आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ना चाहिए ।उन्होंने कहा कि गुरु परमहंस योगानंद ने हमें ध्यान के कई तकनीक दिए हैं जिसका अभ्यास कर हम उन्नत हो सकते हैं। फूलों की तरह हम सुगंध बिखेर सकते हैं। समाज में पेड़ों की तरह फल दे सकते हैं अथार्त परोपकारी कार्य कर सकते है। लोगों को आनंदित कर सकते हैं।

सत्संग के पूर्व अमेरिका से आए स्वामी सरलानंद ने उपस्थित साधकों को ध्यान कराया। स्वामी ईश्वरानंद के संचालन में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत में स्वामी स्मरणानंद ने अध्यक्ष स्वामी चिदानंद को फूलों का माला पहना कर स्वागत किया।

इस सत्संग में वाईएसएस भक्तों और आध्यात्मिक जिज्ञासुओं सहित लगभग 1,700 लोगों ने भाग लिया, और कई हज़ारों लोगों ने इसे वाईएसएस वेबसाइट और यूट्यूब चौनल पर लाइव-स्ट्रीम के माध्यम से ऑनलाइन देखा।