इसने अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान में तत्काल घबराहट पैदा कर दी और राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने उप राष्ट्रपति जे डी वांस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो को दोनों पक्षों के खिलाफ़ “गाजर और डंडे” की नीति के तहत 24 घंटे के भीतर युद्ध विराम कराने का निर्देश दिया। 10 मई की सुबह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ़ का उत्साह चरम पर था क्योंकि इस्लामाबाद और नई दिल्ली दोनों जगह प्रयास तेज़ गति से चल रहे थे। उनके अधिकारियों ने अमेरिकी शीर्ष अधिकारियों के निर्देशानुसार काम किया और भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ की दोपहर 3.35 बजे की बैठक से कुछ घंटे पहले ही अमेरिका ने अनिच्छुक भारत से सहमति प्राप्त कर ली क्योंकि प्रधानमंत्री जो मुख्य निर्णयकर्ता हैं, अपने प्रिय मित्र डोनाल्ड से आये कड़े संदेश की अवहेलना करने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।
इतना तो ठीक है कि युद्ध विराम हो गया जो दोनों देशों के आम लोगों के लिए बड़ी राहत की बात है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ़ ने युद्ध जारी रहने की स्थिति में अपने बुरे राजनीतिक भाग्य से खुद को बचा लिया है। पाकिस्तान के राजनीतिक दल भी इस बात से खुश हैं कि भारत पाकिस्तान के ठिकानों को नष्ट करने के लिए कुछ खास नहीं कर सका। उन्हें डर था कि यह युद्ध कहीं कुछ और भी विनाशकारी न हो जाये। मार्क रुबियो ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर से बात की, वे सुरक्षित महसूस कर रहे थे क्योंकि रुबियो को दी गयी उनकी सहमति से उन्हें अपनी स्थिति को सुरक्षित रखने में कुछ राजनीतिक लाभ मिला। मुनीर देश में अपने कुछ पिछले कार्यों के लिए अमेरिकी प्रतिष्ठान में जांच के घेरे में हैं।
पाकिस्तान के सभी नेताओं ने 10 मई को ट्रंप के बयान का स्वागत किया है। वे सभी कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता के लिए उनकी अगली कार्रवाई का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, जो ट्रंप के अनुसार समय-समय पर दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष के लिए जिम्मेदार प्रमुख मुद्दा है। भारत ने लगातार अमेरिका सहित किसी भी देश द्वारा किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की अनुमति देने से इनकार किया है। अब नवीनतम युद्धविराम की पृष्ठभूमि में, भारत की स्थिति क्या होगी?
यहां नरेंद्र मोदी सरकार की दुविधा है। पाकिस्तान के आसमान में वर्चस्व स्थापित करने और प्रतिद्वंद्वी की वायु रक्षा प्रणाली को काफी नुकसान पहुंचाने के बाद, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के मंत्री, विशेष रूप से प्रधान मंत्री बहुत उत्साहित नहीं हैं। तत्काल युद्ध विराम पर सहमत होने के लिए अमेरिकी दबाव बहुत भारी था और वाशिंगटन में मौजूदा माहौल से संकेत मिलता है कि व्हाइट हाउस भारत-पाकिस्तान वार्ता पर नज़र रखेगा। इसके अलावा राष्ट्रपति ट्रंप कश्मीर मुद्दे पर शांतिदूत के रूप में उभरना चाहेंगे।
भारतीय अधिकारियों ने अमेरिकी मध्यस्थता के दावे पर सहमति नहीं जतायी है। उनका कहना है कि पाकिस्तान के अनुरोध पर प्रतिक्रिया देना भारत का अपना फैसला था। लेकिन 10 मई की सुबह तक पता था कि हमले जारी रहेंगे, फिर दोपहर में अचानक युद्ध विराम का फैसला क्यों? कांग्रेस सांसद शशि थरूर, जो 22 अप्रैल को पहलगाम नरसंहार के बाद हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बैंड मास्टर बन गये हैं, ने कहा कि यह कोई मध्यस्थता नहीं थी, यह रचनात्मक भूमिका निभाने के अमेरिकी प्रयासों का ही हिस्सा था। इसके अलावा उन्होंने कहा कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में ट्रंप के दावे जैसा कुछ नहीं देखा है।
थरूर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक और यूपीए सरकार में विदेश राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि ट्रंप के दौर में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में काफी बदलाव आया है और कभी-कभी कुछ अतिरंजित दावों का सहारा लेना इस सनकी राष्ट्रपति के लिए कोई नयी बात नहीं थी। लेकिन मूल रूप से, यह अमेरिका ही था जिसने आखिरकार भारत को पाकिस्तान की इच्छा के अनुसार युद्ध विराम के लिए राजी किया। थरूर इसे जिस तरह से चाहें कह सकते हैं, लेकिन यह अमेरिका और केवल अमेरिका ही था जिसने 9 मई की रात और 10 मई की सुबह युद्ध विराम लाने के लिए दबदबे के साथ कार्रवाई की।
फिर आगे क्या? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक ट्रंप के इस दावे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है कि अमेरिका "पूर्ण और तत्काल युद्ध विराम" का आयोजन कर रहा है। लेकिन उन्होंने मार्को रुबियो के ट्वीट पर ध्यान दिया होगा जिसमें उन्होंने अन्य मुद्दों पर बातचीत में अमेरिका की रुचि दिखायी है जो अभी चल रही है। भले ही ट्रंप कश्मीर पर अमेरिकी मध्यस्थता के तहत बातचीत को आगे न बढ़ायें, लेकिन पाकिस्तान के साथ आने वाली बातचीत में भारत की स्थिति हमेशा व्हाइट हाउस की जांच के दायरे में रहेगी। आधिकारिक तौर पर, भारत-पाकिस्तान के बीच नवीनतम संघर्ष का अंतर्राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ है, लेकिन वास्तव में, भारत के विरोध के बावजूद ट्रंप शासन ने खुद को अंतर्राष्ट्रीयकरण में धकेल दिया है और भारत-पाक मंच पर कूद पड़े हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय प्रतिशोध को पाकिस्तानी सेना के खिलाफ नहीं बल्कि आतंकवादी शिविरों के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा बताकर अपने पत्ते समझदारी से खेले हैं। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके अधिकारी द्विपक्षीय वार्ता में पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ स्वतंत्र रूप से व्यवहार करें। इसके अलावा, अमेरिकी प्रतिष्ठान को स्पष्ट भाषा में यह बताना होगा कि भारत ट्रंप की किसी भी मध्यस्थता की अनुमति नहीं देगा। यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस स्थिति को अपना सकते हैं और पाकिस्तान में आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने के अपने उद्देश्य को पूरी तरह से प्राप्त करके वर्तमान स्थिति से बाहर आ सकते हैं, तो वे अपने मित्र द्वारा बिछाये गये जाल से विजयी होकर वापस आ जायेंगे।
प्रधानमंत्री को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी सरकार के कार्यों के पीछे अल्पसंख्यक समुदाय की अभूतपूर्व एकता बनी रहे और संघ परिवार के कट्टरपंथी तत्वों के दबाव में यह लाभ न गंवाया जाये। यह समय मोदी सरकार द्वारा पिछले ग्यारह वर्षों में अपनायी गयी विदेश नीति पर बारीकी से विचार करने और यदि आवश्यक हो तो सुधारात्मक उपाय करने का है। दो पड़ोसियों के बीच इस चार दिवसीय छोटे संघर्ष से भारत के लिए कई सबक हैं। आशा है कि एनडीए सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी दोनों ही इन सबकों को उचित परिप्रेक्ष्य में लेंगे। (संवाद)
ट्रम्प के जाल में फंस गये नरेंद्र मोदी, उन्हें सिर ऊंचा करके बाहर निकलना होगा
युद्ध विराम में अमेरिकी भूमिका का स्वागत, पर कश्मीर मामले में अनुमति न दें
नित्य चक्रवर्ती - 2025-05-13 10:48
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 मई की सुबह से शुरू हुए चार दिनों तक चलने वाले सीमित युद्ध में पाकिस्तान के मुकाबले भारत को बहुत ही लाभप्रद स्थिति में रखा है। 10 मई की शाम 5 बजे से लागू हुआ युद्ध विराम हताश पाकिस्तान द्वारा ही किया गया था, जिसने 8 और 9 मई को राजनयिक हलकों में यह भ्रामक सूचना प्रसारित करके अमेरिका को धोखा दिया कि परमाणु हथियारों पर उसके राष्ट्रीय सुरक्षा समूह की आपातकालीन बैठक की जायेगी जो भारत द्वारा कुछ सैन्य ठिकानों पर किये गये हमलों के बाद जवाबी कार्रवाई पर निर्णय लेगा।