महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस तरह से बच्चों के दिमाग को अनुशासित करना कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित इस अवधारणा पर आधारित है कि बच्चों पर सहज प्रेम बरसाने के बजाय उन्हें नियंत्रित, अलग-थलग और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इस कम उम्र में उन्हें सैन्य प्रशिक्षण में धकेलना अनुशासन के नाम पर उनके दिमाग में बैरक जैसे विचार भरना है।

नैदानिक मनोवैज्ञानिक डॉ. परम सैनी के अनुसार 'ये विचार 18वीं और 19वीं सदी के सामाजिक मानदंडों से प्रभावित थे जिन्हें अब काफी पुराना माना जायेगा। आधुनिक पालन-पोषण स्नेह, गर्मजोशी, पोषण, सहानुभूति, सकारात्मक सुदृढ़ीकरण, सुरक्षित लगाव आदि को महत्व देता है और इन्हें अब स्वस्थ भावनात्मक और सामाजिक कौशल विकसित करने के लिए आवश्यक माना जाता है।' माता-पिता और परिवार द्वारा इन्हें प्रदान किया जाना चाहिए और स्कूलों में शिक्षकों द्वारा सुदृढ़ किया जाना चाहिए। बच्चों को एक-दूसरे के साथ घुलने-मिलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथियों के साथ खेलना, चर्चा करना, बहस करना हमेशा विकास का एक स्वस्थ संकेत है। यही कारण है कि हम कई बार देखते हैं कि बच्चे एक-दूसरे से झगड़ते हैं लेकिन जल्द ही दोस्त बन जाते हैं।

शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसे व्यक्ति का विकास करना है जो तर्कसंगत रूप से सोच सके और घटनाओं का विश्लेषण कर सके। उसे समाज, परिवार और राज्य द्वारा बतायी गयी बातों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। बच्चे का दिमाग खाली होता है और उसे सकारात्मक मूल्यों से भरना होता है। इस छोटी उम्र में सैन्य जैसा अनुशासन लागू करने का विचार ही बच्चों में रचनात्मक विचारों, तर्कसंगत सोच और जिज्ञासा को नष्ट कर देगा। सैन्य कर्मियों द्वारा छोटी उम्र में बच्चों को अनुशासित करने से उनकी रचनात्मकता अवरुद्ध हो जायेगी और वे आज्ञाकारी अधीनस्थ की तरह सोचने लगेंगे।

इस उम्र में कोमल मन कई प्रश्नों से भरा होता है जिनका उत्तर उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए दिया जाना चाहिए। बच्चे द्वारा उठाये गये किसी भी प्रश्न को अनदेखा करने से विकासशील मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। चूंकि बच्चे के लिए आस-पास की बहुत सी चीजें या घटनाएं बहुत नयी होती हैं, इसलिए उसे सवाल पूछने और संदेहों को स्पष्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। बच्चे को प्रकृति के प्रति प्रेम विकसित करना, उसका संरक्षण और संवर्धन करना, प्रकृति के उत्पादों के साथ खेलना सिखाना चाहिए। जिज्ञासा को शांत करना और तर्कसंगत विश्लेषणात्मक सोच विकसित करना माता-पिता और शिक्षकों का कर्तव्य है। स्कूली छात्रों के प्रारंभिक वर्षों के लिए दुनिया भर में कई शिक्षा कार्यक्रम पहले से ही तैयार किये गये हैं।

मनोचिकित्सक डॉ. एस के प्रभाकर ने कहा कि अनुशासन को लागू नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि आर्थिक स्थिति, जाति, पंथ, लिंग और शैक्षिक स्थिति के बावजूद दूसरों के प्रति प्रेम और सम्मान के विचारों के माध्यम से उन्हें विकसित किया जाना चाहिए। सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों द्वारा प्रशिक्षण प्रदान करना जो बहादुर सैनिक हैं, लेकिन बच्चों को शिक्षित करने के तरीके के बारे में बहुत कम जानते हैं, बच्चे के व्यवहार के लिए जोखिम भरा होगा। बच्चे कल्पनाओं और एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं। धीरे-धीरे वे वास्तविक दुनिया के मामलों के बारे में सीखते हैं। सैन्य प्रशिक्षण के तहत वे काल्पनिक दुश्मन के विचारों के साथ रहते हैं और कैसे उन्हें पराजित करें या मारें इसकी योजना बनाते हैं। ऐसे बच्चे अपने साथियों के प्रति भी हिंसक चरित्र विकसित कर सकते हैं।

कुछ दशक पहले बच्चे जानवरों, पेड़ों, पहाड़ों आदि जैसे प्रकृति पर आधारित खिलौनों से खेलते थे। पुराने खेल बच्चों को बंदूक संस्कृति से दूर रखती थीं। परन्तु आजकल के खिलौने, यहां तक कि होली खेलने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रंग भी बंदूक की तरह काम करते हैं। वीडियो गेम जिसमें बच्चे गोली चलाना और मारना सीखते हैं, खतरनाक भूमिका निभा रहे हैं। इससे समाज में हिंसा में वृद्धि हुई है। अमेरिका में जहां बंदूकें खुलेआम उपलब्ध हैं, वहां स्कूली बच्चों द्वारा गोली चलाने के कई मामले देखने को मिलते हैं।

शिक्षा का उद्देश्य बच्चे को मौलिक विचार, तर्क, विवेक और अवलोकन विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना है। इस तरह बच्चा अपना व्यक्तित्व विकसित करता है। कम उम्र में सैन्य प्रशिक्षण इन सबमें बाधा डालेगा। हालांकि यह शासक वर्ग के उद्देश्य को पूरा कर सकता है ताकि बच्चे में घृणा, हिंसा और बदले की भावना से भरा एक विशिष्ट मन विकसित हो सके। हमारे वर्तमान समाज में जहां पहले से ही सांप्रदायिक घृणा, जाति और लिंग पूर्वाग्रह को हाल के वर्षों में बढ़ावा दिया गया है, बच्चे की ऐसी मानसिकता सामाजिक सद्भाव को और खराब करेगी। दुनिया भर में चल रहे युद्धों के संदर्भ में बच्चों में प्रेम, देखभाल, सहानुभूति और सामूहिकता के विचारों को विकसित करना और भी महत्वपूर्ण है। (संवाद)