उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में 11 से 13 सितंबर तक ‘पांडुलिपि विरासत के माध्यम से भारत की ज्ञान विरासत को पुनः प्राप्त करने’ पर पहला ‘ज्ञान भारतम’ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। भारत और विदेश के विद्वानों, विशेषज्ञों, संस्थानों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं सहित 1,100 से अधिक प्रतिभागियों ने इस सम्मेलन में भारत की पांडुलिपि संपदा के संरक्षण, डिजिटलीकरण और इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए चर्चा, विचार-विमर्श किया। तीन दिनों तक चले इस सम्मेलन में 12 सितंबर को प्रधानमंत्री ने भी भाग लिया। असल में , इस राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में हुई थी, उस समय कुछ सूचीकरण और पहचान का काम ज़रूर हुआ था, लेकिन बाद के वर्षों में यह प्रयास ठप्प पड़ गया। जैसा कि बताया जा रहा है कि यह पहल भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा में नई जान डालने का एक प्रयास है। ‘श्रुति’ और ‘स्मृति’ के बाद लिखित रूप में संरक्षित ज्ञान को अब भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा ‘ज्ञान भारतम मिशन’ के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा रहा है।
लेकिन पांडुलिपियों का संरक्षण, प्रकाशन और उपयोग तभी सार्थक होगा जब वे आम लोगों से जुड़ेंगे। इसे एक जन आंदोलन बनाने के लिए विद्वानों और विशेषज्ञों के प्रयासों को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की भी आवश्यकता है। आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया के माध्यम से पांडुलिपियों को संरक्षित करना, प्रकाशित करना और सुलभ बनाना है ताकि प्रत्येक भारतीय अपने पूर्वजों की इस बौद्धिक संपदा पर गर्व कर सके। जब तक यह ज्ञान आम लोगों की व्यावहारिक उपयोगिता से नहीं जुड़ेगा, तब तक यह अभियान अधूरा ही माना जाएगा। भारत की पांडुलिपियों में मानवता की संपूर्ण विकास यात्रा के पदचिह्न समाहित हैं। वे केवल राजवंशों के अभिलेख नहीं हैं, बल्कि उन विचारों, आदर्शों और मूल्यों के भंडार हैं जिन्होंने सभ्यता को आकार दिया है।
देश के इस पहला ज्ञान भारतम् अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में औपचारिक दिल्ली घोषणा पत्र (ज्ञान भारतम संकल्प पत्र) पढ़ा गया। घोषणापत्र में भारत को विश्व की सबसे समृद्ध पांडुलिपि परंपराओं की भूमि बताया गया तथा विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण में इस विशाल खजाने को संरक्षित करने, डिजिटल बनाने और प्रसारित करने का संकल्प लिया गया।
लेकिन जब लोग अपनी सभ्यतागत संपदा को जानेंगे, पहचानेंगे और उससे जुड़ेंगे तभी उनमें सच्चा गौरव उत्पन्न होगा। और यह तभी संभव है जब ज्ञान भारत मिशन डिजिटलीकरण, अनुवाद और तकनीकी नवाचार के माध्यम से पांडुलिपियों को पुनर्जीवित करके इसे आम लोगो के लिए उपलब्ध करा दे। हज़ारों वर्ष पहले, हमारे ऋषियों और मनीषियों ने अपने विचार-विमर्श, अनुभवों और अनुभूतियों के माध्यम से ऐसे ग्रंथों की रचना की जो आज भी विश्व के लिए उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि वे रचना के समय थे। मानव जीवन से संबंधित मूल विषयों के गहन अध्ययन पर आधारित ये ग्रंथ, सहस्राब्दियों बाद भी, मानवता, पर्यावरण और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए, अपना महत्व बनाए हुए हैं।
भारत, दस मिलियन से अधिक पांडुलिपियों के साथ, शायद शास्त्रीय और स्थानीय परंपराओं का सबसे समृद्ध भंडार रखता है। ये ग्रंथ साहित्य, विज्ञान, गणित, दर्शन और कला को गहन अंतःविषय तरीकों से समाहित करते हैं। इस परंपरा का एक विचारशील पुनरुत्थान राष्ट्रीय गौरव को प्रेरित कर सकता है, शिक्षा को मजबूत कर सकता है, सांस्कृतिक कूटनीति को बढ़ा सकता है, समुदायों को सशक्त बना सकता है, सतत विकास को बढ़ावा दे सकता है और नए शोध को उत्प्रेरित कर सकता है।
लेकिन पहला काम यह पता लगाना है कि ये पांडुलिपियाँ वास्तव में कहाँ हैं। आज भी, हमारे पास भारत में मौजूद कथित दस करोड़ पांडुलिपियों का सटीक रिकॉर्ड नहीं है, न ही उन लगभग दस लाख पांडुलिपियों का जो फ्रांस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, डेनमार्क, स्वीडन, नीदरलैंड जैसे देशों में और यहाँ तक कि हर्मिटेज संग्रहालय में भी मौजूद हैं। डिजिटल प्रतियों की पहचान, सूचीकरण और सुरक्षा तत्काल होनी चाहिए, ताकि उनमें निहित ज्ञान के विशाल भंडार का अध्ययन, संरक्षण और अंततः भारत वापसी की जा सके। जैसा कि बताया जा रहा है यह मिशन देशव्यापी सर्वेक्षण और पांडुलिपियों की सूची तैयार करेगा, एक डिजिटल संग्रह तैयार करेगा, और उनमें संरक्षित विशाल ज्ञान को निकालने और प्रसारित करने के लिए प्रणाली विकसित करेगा, जिसमें विज्ञान और चिकित्सा से लेकर साहित्य, धर्म और अध्यात्म तक के विषय शामिल होंगे। ज्ञान भारतम’ को पुस्तकालयों, धार्मिक संस्थानों और निजी संरक्षकों सहित हितधारकों के एक व्यापक गठबंधन के माध्यम से लागू किया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पांडुलिपियों का संरक्षण हो और आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्हें सुलभ बनाया जा सके।
ज्ञान भारतम मिशन: एक ऐतिहासिक राष्ट्रीय पहल
एस एन वर्मा - 2025-09-16 19:06
संस्कृति मंत्रालय ने ‘ज्ञान भारतम’ नामक एक ऐतिहासिक राष्ट्रीय पहल शुरू की है, जो भारत की पांडुलिपि धरोहर के संरक्षण, डिजिटलीकरण और प्रसार के लिए समर्पित है। अब प्रश्न उठता है कि ज्ञान भारतम मिशन के मायने क्या है। आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी।