भारतीय पुराणों में महासागर, समुद्र और नदियों से जुड़ी हुई ऐसी कई घटनाएँ मिलती हैं जिससे इस बात का पता चलता है कि मानव को समुद्र और महासागर से जलीय संपदा के रूप में काफ़ी आर्थिक सहायता प्राप्त हुई है। भारतीय साहित्य, कला, मूर्तिकला, चित्रकला और पुरातत्व-विज्ञान से प्राप्त कई साक्ष्यों से भारत की समुद्री परंपराओं के अस्तित्व का ज्ञान प्राप्त होता है। प्राचीन काल से लेकर कई शताब्दियों तक हिंद महासागर पर भारतीय उपमहाद्वीप का वर्चस्व कायम रहा था। इसके बाद व्यापार के लिए भारतीय समुद्री रास्तों का प्रयोग प्रारंभ हो गया था।
16 वीं शताब्दी तक का काल देशों के मध्य समुद्र के रास्ते होने वाले व्यापार, संस्कृति और परंपरागत लेन-देन का गवाह रहा है।मौर्य काल में बड़े पैमाने पर समुद्री व्यापार गतिविधियाँ हुईं जिनसे अनेक राष्ट्रों से भारत की निकटता बढ़ी। मौर्य साम्राज्य के दौरान, भारतीयों ने पहले ही दक्षिण पूर्व एशिया में थाईलैंड और मलेशिया प्रायद्वीप से कंबोडिया और दक्षिणी वियतनाम तक व्यापारिक संबंध बना लिए थे। मौर्य वंश की समुद्री गतिविधियों के चलते भारत से इंडोनेशिया और आस-पास के द्वीपों पर जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
वर्तमान में भारत विश्व का 16वाँ सबसे बड़ा समुद्री देश है और भारत में समुद्री परिवहन मात्रा के हिसाब से 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 68 प्रतिशत व्यापार संभालता है। भारत विश्व के शीर्ष 5 जहाज़ रीसाइक्लिंग देशों में से एक है और वैश्विक जहाज़ रीसाइक्लिंग बाज़ार में 30 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है व भारत जहाज़ तोड़ने वाले उद्योग में 30 फीसदी से अधिक वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी का मालिक है और अलंग, गुजरात में विश्व की सबसे बड़ी जहाज़ तोड़ने वाली सुविधा का स्थान है। दिसंबर 2021 तक, भारत के पास 13,011 हजार के सकल टन भार के बेड़े की ताकत थी। हालाँकि, क्षमता के मामले में भारतीय बेड़ा विश्व के बेड़े का सिर्फ 1.2 प्रतिशत है । वर्ष 2017 में, सरकार ने बंदरगाह-आधारित विकास और रसद-गहन उद्योगों के विकास की दृष्टि से महत्त्वाकांक्षी सागर माला कार्यक्रम शुरू किया। भारत में वर्तमान में 12 प्रमुख और 200 गैर-प्रमुख या कहें मध्यवर्ती बंदरगाह (राज्य सरकार प्रशासन के तहत) हैं।जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट भारत का सबसे बड़ा प्रमुख बंदरगाह है, जबकि मुंद्रा सबसे बड़ा निजी बंदरगाह है।
समुद्री परिवहन से तात्पर्य जलमार्गों के माध्यम से जहाजों और अन्य जलयानों द्वारा माल और लोगों की आवाजाही से है। यह वैश्विक व्यापार का एक प्रमुख घटक है, जो तेल, अनाज और विनिर्मित वस्तुओं जैसी वस्तुओं के थोक परिवहन को सक्षम बनाता है। समुद्री परिवहन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
किसी देश की आर्थिक सफलता निर्धारित करते समय समुद्री व्यापार और गहरे जल क्षेत्र तक पहुँच महत्वपूर्ण होती है। आज, समुद्री माल ढुलाई की ईंधन दक्षता और परिवहन के साधन के रूप में जल पर विश्वव्यापी निर्भरता के कारण, लगभग 75 फीसदी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार जलमार्ग से होता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में समुद्री व्यापार एक आवश्यक तत्व है। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में समुद्री व्यापार विकसित हुआ है। वर्तमान में, दुनिया भर में 4500 से अधिक गहरे पानी के बंदरगाह हैं।
इन सब बातों के मध्येनजर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीे ने भावनगर में समुद्र से समृद्धि की ओर देश को ले जाने की भविष्य की योजना के बारे में चर्चा की थी । पोर्ट-लेड डेवलपमेंट को गति देने के लिए, हज़ारों करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास और उद्घाटन उनके द्वारा किया गया। देश में क्रूज टूरिज्म को प्रमोट करने के लिए मुंबई में इंटरनेशनल क्रूज टर्मिनल का भी लोकार्पण किया गया। प्रधानमंत्री के अनुसार भारत में जहाज़ निर्माण पर जोर देने के बजाय, विदेशी जहाज़ों को किराया-भाड़ा दे कर काम चलाया जा रहा था। इससे भारत में शिप-बिल्डिंग इकोसिस्टम ठप हो गया, विदेशी जहाज़ों पर निर्भरता हमारी मजबूरी बन गयी। परिणाम ये हुआ कि 50 साल पहले जहां चालीस परसेंट व्यापार, भारतीय जहाज़ों पर होता था, वो हिस्सा घटकर सिर्फ पांच परसेंट रह गया। यानी ट्रेड के लिए हम विदेशी जहाज़ों पर निर्भर हो गए। विदेशी जहाजों पर इस निर्भरता का हमें बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा।
आज भारत हर साल, करीब 75 बिलियन डॉलर यानी लगभग छह लाख करोड़ रुपए विदेशी शिपिंग कंपनियों को शिपिंग सर्विसेस के लिए देता है, किराया देता है। ये आज भारत का जितना डिफेंस बजट है, करीब-करीब उतना पैसा किराये में दिया जा रहा है। इसीलिए उन्होंने कहा कि हमें शिप भारत में ही बनाने होंगे। भारत सदियों से बड़े-बड़े जहाज बनाने में एक्सपर्ट रहा है। हमारे पास कौशल की कोई कमी नहीं है। बड़े शिप बनाने के लिए सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।देश के मैरीटाइम सेक्टर को मजबूती देने के लिए एक बहुत ऐतिहासिक निर्णय हुआ है।
अब सरकार ने बड़े जहाजों को इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में मान्यता दी है। अब बड़े शिप बनाने वाली कंपनियों को बैंकों से लोन मिलने में आसानी होगी, उन्हें ब्याज दर में भी छूट मिलेगी। भारत को दुनिया की एक बड़ी समुद्री शक्ति बनाने के लिए, तीन और बड़ी स्कीम्स पर भारत सरकार काम कर रही है। इन तीन योजनाओं से शिप बिल्डिंग सेक्टर को आर्थिक मदद मिलने में आसानी होगी। इन पर आने वाले वर्षों में सत्तर हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जाएंगे।
हम देश में नए और बड़े पोर्ट्स का निर्माण भी कर रहे हैं। हाल में ही केरल में, देश का पहला डीप वॉटर कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट पोर्ट शुरु किया है। 75 हजार करोड़ से ज्यादा की लागत से महाराष्ट्र में वाढवण पोर्ट बन रहा है। ये दुनिया के टॉप टेन पोर्ट्स में से एक होगा।
आज भारत दुनिया के टॉप-3 देशों में आ गया है, जो सबसे ज़्यादा सी-फेरर्स दुनिया को उपलब्ध कराता है, और इससे भारत के नौजवानों को रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। यानी भारत की बढ़ती शिप इंडस्ट्री, दुनिया की ताकत भी बढ़ा रही है। और इस तरह फिर एक दिन भारत के समुद्र-तट भारत की समृद्धि के प्रवेश द्वार बनेंगे।
भारत ने बनायी समुद्री परिवहन, बंदरगाह, और जलपोत निर्माण की बड़ी योजना
एस एन वर्मा - 2025-09-23 17:46
भारत का समुद्री इतिहास, पश्चिमी सभ्यता के जन्म से पहले का है। माना जाता है कि विश्व का पहला ज्वारीय बंदरगाह लोथल में हड़प्पा सभ्यता के दौरान 2300 ई० पू० के आसपास बनाया गया था, जो वर्तमान में गुजरात तट पर मांगरोल बंदरगाह के पास है।