किसी व्यक्ति को कौन सी चीज खुशी प्रदान करेगी, यह उस व्यक्ति की इच्छा और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। लेकिन यह बात बिल्कुल सच है कि हर व्यक्ति खुश रहना चाहता है। आखिर यह खुशी है क्या, इसका राज क्या है और इसका स्रोत क्या है? हमारे आध्यात्म गुरू और दार्शनिक बंधु हमेशा ही ऐसे सवाल उठाते रहे हैं और इनका जवाब देने की कोशिश भी करते रहे हैं। जीवन को सुखी बनाने और आत्मविश्वास बढ़ाकर व्यक्त्त्वि में सुधार करने वाले भी इसी बात को लेकर सैंकड़ों पुस्तकें लिखते रहे हैं और अब वैज्ञानिक भी इसकी खोज में जुट गए हैं।

आशावाद, सकारात्मक सोच और संतुष्टि जैसे शब्द बड़े पैमाने पर शोध पत्रिकाओं में पढ़ने को मिलने लगे हैं और कुछ लोग मनोविज्ञान शोधों का एक नया युग शुरू होता देख रहे हैं। लोगों को कौन सी चीज खुशी देती है, यह विषय मनोवैज्ञानिक शोधों को केन्द्र होता जा रहा है। नब्बे के दशक के मध्य में वैज्ञानिक जर्नलों में खुशी पर किए गए अध्ययनों के लगभग सौ रिपार्ट प्रकाशित किए गए और अब भी इस पर आए दिन रिपोर्ट प्रकाशित होते रहते हैं।

स्वयं को सुखी और खुश मानने वाले लोगों पर किए गए वैज्ञानिक अध्ययनों में ऐसे आंकड़ों और बातों का पता लगाया गया है जो इन लोगों में एक समान थी। इन अध्ययनों के निष्कर्ष चैंकाने वाले थे। निष्कर्षों में पाया गया कि स्वास्थ्य, धन, सौंदर्य और हैसियत जैसी चीजों का खुशी या संतुष्टी पर बहुत न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। इन अध्ययनों के अनुसार अधिकतर लोगों के जीवन में असली संतुष्टि या खुशी पैसों या रुतबे से नहीं आती, बल्कि वह बच्चों को बड़ा करने, आपसी प्यार, कार्य और आपसी संबंधों की चुनौतियों और संघर्षों का सामना करने और उनसे उबरने पर आती है।

हालांकि यह एक सच्चाई है कि भयंकर गरीबी में रहने वाले लोग मूलभूत जरूरतें आसानी से पूरी होने वाले लोगों की तुलना में कम सुखी हैं। लेकिन एक बार उस रेखा को पार कर लेने पर आने वाली बड़ी दौलत और सम्पत्ति भी खुशी पैदा नहीं करती। चीन की तुलना में जापान के लोगों की आय लगभग नौ गुणा अधिक है, फिर भी सर्वेक्षणों में जापान की जीवन संतुष्टि का स्तर नीचा पाया गया। अच्छा स्वास्थ्य भी खुशी का केंद्र बिन्दु केवल उन्हीं लोगों के लिए है जो वास्तव में गंभीर रूप से रोगग्रस्त हैं। वस्तुनिष्ठ रूप से स्वास्थ्य जीवन संतुष्टि से संबंधित नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिनिष्ट भावनाओं से अवश्य जुड़ा है। सैंकड़ों स्वस्थ व्यक्ति जिनके भविष्य में भी स्वस्थ रहने की पूरी संभावनाएं हैं, वे भी इस बात को लेकर बहुत अधिक खुश नहीं रहते। जबकि कई रोगी व्यक्ति खुश रहते हुए अपना रोग झेलते हैं और कई व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य के बावजूद रोगभ्रामकता से ग्रस्त रहते हैं।

चुनौतियों का सामना करते हुए खुद को संतुष्ट रखने में एक अलग ही मजा है। कोलम्बिया के एक दम्पति गर्ग और टर्नी इसकी मिसाल हैं। टर्नी को गर्भावस्था के दौरान पता चला कि उनके गर्भ में पल रही बच्ची गंभीर मानसिक रोग के साथ-साथ हृदय रोग से भी ग्रस्त है जिसे ठीक करने के लिए शल्य क्रिया की जरूरत पड़ेगी। मानसिक और शारीरिक रूप से विक्षिप्त बच्चे को जन्म देने की बात निश्चय ही निराशाजनक थी। दोस्तों और परिवार के सदस्यों ने इस दम्पति को गर्भपात की सलाह दी। दोनों ने चिकित्सकीय, व्यावहारिक और भावनात्मक आयामों से विचार करने के बाद फैसला किया कि वे अपनी बेटी को जन्म देंगे। टर्नी कहती हैं, ‘हमने सोचा कि हमारी बेटी हमारे लिए एक मुश्किल चुनौती होगी, लेकिन हम वाकई उसे जन्म देना चाहते थे। केवल इसलिए कि वह सामान्य नहीं है, हम इस चुनौती से भाग खड़े होने वालों में से नहीं थे। मेरी बेटी अब चार साल की हो चुकी है उसने देर से चलना सीखा और वह दूसरे बच्चों से अलग है, लेकिन तो क्या हुआ? वह हमारे लिए अपार खुशियां लेकर आयी है क्योंकि वह एक हंसमुख और जिंदादिल बच्ची है।’

अपने कामों में व्यस्त रहने वाले लोग भी जीवन में संतुष्टि का अनुभव करते हैं। क्लेरमौंट ग्रैजुएट यूनीवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक मिहाली चीक्सेंटमीही कहते हैं कि जिंदगी को एक धारा की तरह जीने वाले लोग कम चिंता करते हैं। संगीत, मस्तिष्क की शल्य क्रिया करना या बच्चों के साथ बैठकर कोई मुश्किल पहेली हल करना जैसी चीजें समान प्रभाव उत्पन्न करती हैं। कई गतिविधियों में शामिल रहने वाले लोगों को भी संतुष्टि मिलती है। इसके लिए व्यक्ति का चर्चित होना जरूरी नहीं है। चीक्सेंटमीही एक 64 वर्षीय व्यक्ति का उदाहरण पेश करते हैं। उनके अनुसार वह अब तक जितने लोगों से मिले हैं उनमें वह सबसे सुखी व्यक्ति है। शिकागो में रहने वाला यह व्यक्ति वेल्डर है और उसने मात्र प्राथमिक शिक्षा हासिल की है। उसे अपने काम पर बहुत गर्व है और उसने पदोन्नति से फोरमैन बनाए जाने की पेशकश को भी ठुकरा दिया क्योंकि फोरमैन बनने पर उसे वेल्डिंग का काम नहीं करना पड़ता, जो कि उसे बहुत प्यारा है। वह अपनी शाम खुद के बनाए रॉक गार्डन में बिताता है, जहां उसने इंद्रधनुष का आभास देने वाली तेज प्रकाश की व्यवस्था की है। वह अपने जीवन से संतुष्ट है और खुद को काफी सुखी बताता है।

मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययनों में कृतज्ञता जैसी भावनाओं का संबंध भी जीवन की संतुष्टि से पाया। नए शोधों से पता चलता है कि किसी चीज के प्रति कृतज्ञ या अहसानमंद होने पर उसके बारे में बात करना या लिखना भी खुशी प्रदान करता है। इसके अलावा माफ करने के गुण का भी खुशी से गहरा संबंध पाया गया। मिशिगन विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक क्रिस्टोफर पीटरसन का मानना है कि माफ करने का गुण सभी गुणों से श्रेष्ठ है और इस गुण को पाना सबसे मुश्किल है।

सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि आम तौर पर लोगों को भी पता नहीं चल पाता कि उन्हें कौन सी चीज सुखी कर देगी। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डेनियल गिल्वर्ट कहते हैं, ‘लोग किसी भी अच्छी या बुरी घटना का खुद पर काफी लंबा और गहरा प्रभाव पड़ने की कल्पना करते हैं जबकि हो सकता है कि वह घटना वास्तव में उतना प्रभाव नहीं डाले। लोग बुरी घटनाओं से जल्दी उबरने की कोशिश करते हैं और जीवन की नई सच्चाइयों को मान लेते हैं। वे भविष्य की योजनाओं के बारे में भी सोचते हैं। लेकिन वास्तविक जीवन कई अनुभवों से भरा होता है और ये अनुभव आप पर किसी भी चीज के प्रभाव को कम कर देती है। कोई लॉटरी जीत जाने पर जिंदगी सितारों से नहीं भर जाती लेकिन प्यार में धोखा खाए लोग सदमे से जल्दी उबर जाते हैं। गिल्वर्ट कहते हैं, ‘अगर आपको बिल्कुल ठीक-ठीक पता लग जाए कि भविष्य में क्या होने वाला है तब भी आप यह नहीं बता सकते कि जब आप उन परिस्थितियों से वास्तव में गुजरेंगे तो कैसा महसूस करेंगे।’ उनका कहना है कि खुशी की चाहत करते समय हमें अपनी सोचशीलता पर ज्यादा और अपनी भावनाओं के बारे में की गई अपनी भविष्यवाणियों पर कम भरोसा करना चाहिए। हमें ज्यादा विनम्र और बहादुर होना चाहिए।

तो क्या हमारी संतुष्टि का राज हमारी जीवन की परिस्थितियों में नहीं, बल्कि हमारे जीन में है? अगर ऐसा है तो कई दवा कंपनियों के प्रयोगशालाओं में स्नायुतंत्र वैज्ञानिक ऐसी दवा बनाने की होड़ में लगे हैं जो मनुष्य में नकारात्मक भावनाओं को दूर कर सकारात्मक भावनाएं उत्पन्न करेगी।

मनुष्य की खुशी की तलाश शायद अंतहीन है। यह युगों से चलती आई है और युगों तक चलती रहेगी। लेकिन इसी बीच हमें सच्चे सुख और संतोष का रास्ता दिखाने वाले भी अपना संदेश देते रहे हैं। लेकिन हम गौतम बुद्ध के वचनों को भुला देते हैं कि इच्छाएं अनन्त हैं लेकिन उनसे मिलने वाला सुख अनन्त नहीं है। सम्पन्नता के ज्यादा से ज्यादा साधन जुटाने से हम स्वयं को सुखी करने के अवसरों और मार्ग को वास्तव में संकीर्ण करते जाते हैं जबकि स्वयं पर नियंत्रण हमें ज्यादा सुखी और संतुष्ट बना सकता है। (फर्स्ट न्यूज)