15 अंधे लोगों पर किये गए एक अध्ययन के तहत् उनमें कृत्रिम रेटिना के प्रत्यारोपण के तीन महीने बाद उनकी आंखों की जांच करने पर पाया गया कि उनमें से 10 लोग गतिशील वस्तुओं के दिशा की पहचान करने में समर्थ हो गए।

इस शोध के प्रमुख सेकंड साइट मेडिकल प्रोडक्ट्स इंक के जेसी डार्न के अनुसार इस शोध से रेटिना को नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियों से पीड़ित लोगों में उम्मीद पैदा होगी।

अमरीका में 20 लाख से अधिक लोग रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा और उम्र से संबंधित मैकुलर डिजेनेरेशन जैसी आंखों की बीमारियांे से पीड़ित हैं जिनमें धीरे-धीरे दृष्टि कम होती जाती है क्योंकि उनमें या तो उम्र या बीमारी के कारण प्रकाश की पहचान करने वाली नर्व कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसका अभी तक कोई इलाज नहीं है।

न्यूरोसाइंस में प्रकाशित इस शोध के अनुसार इस अध्ययन के तहत् अनुसंधानकर्ताओं ने क्षतिग्रस्त कोशिकाओं पर काम किया। इस अध्ययन में शामिल हर प्रतियोगी को एक छोटा वीडियो कैमरा आच्छादित एक जोड़ा ग्लास दिया गया और एक छोटे से कम्प्यूटर से जुड़ा एक बेल्ट दिया गया। कम्प्यूटर ने कैमरे से वीडियो इमेज को संसाधित कर आंकड़ों को रेटिना पर प्रत्यारोपित इलेक्ट्रोड्स को प्रसारित किया। जब इस्तेमालकर्ताओं ने काले स्क्रीन के द्वारा गुजरती हुई एक सफेद रेखा सहित मॉनिटर को देखा तो गतिशील रेखा के अनुरूप इलेक्ट्रोड आंख में कोशिकाओं को उत्तेजित करने लगी और दृष्टि के क्षेत्रों में प्रकाश के स्पॉट का सृजन करने लगी।

डार्न कहते हैं, ‘‘हमने पाया कि इस अध्ययन में शामिल अधिकतर लोगों ने जब वीडियो सहायता के साथ या इसके बगैर कृत्रिम तंत्र का इस्तेमाल किया तो वे रेखा की दिशा का निर्धारण करने में अच्छी तरह से समर्थ थे। अगर हम दूसरे शब्दों में कहें तो यह नया तंत्र अधिकतर अंधे लोगों को किसी भी वस्तु की गति की दिशा की पहचान करने में समर्थ बनायेगा जैसा वे अब तक नहीं कर सकते थे। अब तक 32 अंधे लोगों में इस कृत्रिम रेटिना को प्रत्यारोपित किया जा चुका है। इस कृत्रिम तंत्र की जांच अब अंतर्राष्ट्रीय क्लिनिकल परीक्षण के तहत् की जा रही है। (फर्स्ट न्यूज)