उनकी इस मांग से कांग्रेस ही नहीं, बल्कि उनकी अपनी पार्टी एनसीपी के लोग भी हैरान हैं। जो लोग शरद पवार को जानते हैं उन्हें यह पता है कि उनके बारे में दावे के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता। उनकी यह मांग उस समय आई है, जब वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संघ के अघ्यक्ष के पद पर आसीन हो गए हैं। उन्होंने यह मांग उस दिन की जिस दिन पूरा विपक्ष भारत बंद का आयोजन कर रहा था।
आखिर इसके पीछे क्या राज है? सबसे पहले तो क्रिकेट संघ का अघ्यक्ष पद संभालने के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा ने उनकी आलोचना की। उनका कहना था कि भारत की केन्द्र सरकार में अनेक मंत्रालयों का नेतृत्व कर रहा व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संघ का पद कैसे संभाल सकता है? दूसरा कारण यह है कि कांग्रेस कह रही है कि देश में कीमतों की वृद्धि के लिए शरद पवार ही जिम्मेदार हैं। हालांकि शरद पवार ने अपने ऊपर लगाए जा रहे इस आरोप पर पलटवार करते हुए कहा है कि कीमतों से संबंधित निर्णय वह नहीं लेते, बल्कि मंत्रिमंडल लेता है, इसलिए सिर्फ उन्हें जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता। तीसरे, पिछले एक साल से शरद पवार को एक के बाद एक झटके मिल रहे हैं। आइपीएल में उनकी अच्छी खासी बदनामी हो चुकी है। उनकी बेटी सुप्रीया सुले पर भी इस घोटाले में उंगली उठ चुकी है।
इसके अलावा उन्हें अपने लोगों को साथ भी रखना है। कांग्रेस चाहती है कि अब एनसीपी का उसमंे विलय हो जाना चाहिए। उनकी अपनी पार्टी के अंदर से भी कांग्रेस में विलय के लिए आवाज उठने लगी है। शरद पवार राजनैतिक रूप से लगातार कमजोर भी होते जा रहे हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के नजीजों में उनकी कमजोरी साफ देखी जा सकती है।
शरद पवार के ताजा कदम से साफ पता चलता है कि वे एक साथ ही दो खेल खेलने की कोशिश कर रहे हैं। वे युपीए के साथ हैं। उन्हें पता है कि 2014 तक यूपीए सरकार की स्थिरता को काई खतरा नहीं है। इसलिए उस समय तक वे यूपीए के साथ बना रहना चाहते हैं। इसके साथ साथ वे सभी गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई दलों के साथ अच्छे रिश्ते भी बनाए रखना चाहतें हैं, ताकि भविष्य में यदि कभी इन दलो की सरकार बनती है, तो वे उसमें केन्द्रीय भूमिका अदा कर सकें। उनका लग रहा है कि तीसरे मोर्चे के लिए अभी भी संभावना बची हुई है। इसलिए वे अभी से उसमें अपना स्थान सुरक्षित रखना चाहते हैं।
उनकी पार्टी के लोगांे का कहना है कि श्री पवार अनेक छोटी पार्टियों के साथ अपना संबंध बनाए हुए हैं। तमिलनाडु की जयललिता और उड़ीसा के बीजू पटनायक के साथ उनका संबंध अच्छा है। वे वाम मोर्चे और तृणमूल कांग्रेस में से किसी भी एक के साथ समय आने पर तालमेल बैठा सकते हैं। पूर्वात्तर राज्यों में पी ए संगमा के नेतृत्व में उनकी अपनी पार्टी की पकड़ ठीकठाक है। आंध्र प्रदेश के टीआरएस के साथ उनके रिश्ते खराब नहीं हैं। यदि जगनमोहन रेड्डी ने कांग्रेस का साथ छोड़ा तो शरद पवार उन्हें अपने साथ ले सकते हैं। केरल में उनकी पार्टी फिर वामदलों के साथ दिखाई पड़ रही है।
2009 के लोकसभा चुनाव के पहले भी शरद पवार ने गैर कांग्रेस गैर भाजपा पार्टियों से अपना तालमेल बढ़ाना प्रारंभ कर दिया था। उसके कारण कांग्रेस के साथ उनके रिश्ते खराब भी हो रहे थे। शरद पवार को कोई लाभ नहीं मिला, इसका कारण यह था कि 2009 में कांग्रेस की स्थिति बेहतर हो गई और उसे अपनी सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं आई।
यदि शरद पवार दूसरी पार्टियों की ओर देख रहे हैं, तों कांग्रेस भी अगले लोकसभा चुनाव के बाद अपने बूते ही सरकार बनाने की सोच रही है। राहुल गांधी इसे जाहिर भी कर चुके है। महाराष्ट्र, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सफलता भी मिली है और उसे आने वाले कुछ विधानसभा चुनावों में भी सफलता पाने की उम्मीद है।
इस बीच शरद पवार क्रिकेट में अपना पंख फैला रहे हैं। उनका मिशन है चीन, रूस और अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संघ के दायरे में लाना। (संवाद)
आखिर चाहते क्या हैं पवार?
अपने सारे विकल्प खुला रखना चाहते हैं एनसीपी नेता
कल्याणी शंकर - 2010-07-16 10:56
शरद पवार द्वारा एकाएक प्रधानमंत्री से मिलकर अपना भार कम करने की मांग अचरज में डालने वाली है। अब सवसल यह पूछा जा रहा है कि आक्षिर वे चाहते क्या हैं? लगता है कि वे अपने सारे विकल्प खूला रखना चाहते हैं।