भारत-रूस के आर्थिक रिश्ते इंटर-इंडस्ट्री व्यापार पर ज़ोर देते हैं, जहां भारत फार्मास्यूटिकल्स, केमिकल्स, आयरन और स्टील, सब्जी और समुद्री उत्पाद जैसे श्रम पर अत्यधिक आधारित उत्पादनों का निर्यात करता है, जबकि रूस के पूंजी और संसाधन आधारित सामान जैसे क्रूड ऑयल, फर्टिलाइजर्स, कोयला और रक्षा उत्पादनों का आयात करता है। इस व्यापार की प्रकृति इन्ट्रा-इंडस्ट्री व्यापार से अलग है, जिसमें देश एक ही उद्योग के अंदर ऑटोमोबाइल या इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे एक जैसे उत्पादन को एक साथ निर्यात और आयात करते हैं। रूस-चीन व्यापार ज़्यादातर इंट्रा-इंडस्ट्री है, जिसमें रूस चीन में बनी ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक आइटम और माइक्रोचिप्स पर ज़्यादा निर्भर है। इंट्रा-इंडस्ट्री व्यापार पर उपलब्ध लिखित सामग्री बताते हैं कि देशों के बीच व्यापार के बढ़ने और बने रहने की संभावना तब ज़्यादा होती है जब यह इंटर-इंडस्ट्री के बजाय इंट्रा-इंडस्ट्री हो।

भारत-रूस के रिश्ते ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं, ऐसे में मुख्य सवाल यह है कि व्यापार की गत्यामकता उन्हें कितने समय तक बनाए रख सकते हैं। चीन पर रूस की बढ़ती आर्थिक निर्भरता संभावित भारत-चीन तनाव के बीच भारत का खुलकर समर्थन पोर्ट करने की उसकी क्षमता को कम कर सकती है, जो शांतिपूर्ण समाधान की वकालत करके रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के पक्षपातहीन रुख को दिखाता है। भारत रूस पर ज़्यादा निर्भर है, और दूसरी ओर चीन, रूस का बराबर का व्यापार साझेदार है।

रूस और भारत के बीच आपसी व्यापार वित्तीय वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड 68.7 अरब डालर तक पहुंच गया, जो पांच सालों में सात गुना बढ़ोतरी है। इसकी मुख्य वजह भारत का सस्ता रूसी कच्चे तेल, कोयला, फर्टिलाइज़र और रक्षा उपकरणों का बढ़ता आयात है। 2024 में भारत को रूस का निर्यात लगभग 65 अरब डालर था, जबकि फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग सामान, इलेक्ट्रॉनिक्स और केमिकल्स सहित भारत का निर्यात कुल मिलाकर लगभग 4.9 अरब डालर था। दोनों देशों का मकसद मेटलर्जी, आईटी और कृषि जैसे क्षेत्रों में विविधिकरण, औद्योगिक सहयोग और अन्तर्राष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर जैसी अवसंरचना के ज़रिए व्यापार को बनाए रखना है।

2024 में, भारत ने दुनिया भर में 434.44 अरब डालर का निर्यात किया, जिसके मुख्य गन्तव्य थे: संयुक्त राज्य अमेरिका (18.29%), यूरोपियन यूनियन (17.80%), और संयुक्त अरब अमीरात (8.54%)। कुल 4.84 अरब मूल्य वाले, रशियन फेडरेशन को निर्यात का हिस्सा 1.11% था। दूसरी ओर, रूस से आयात के आंकड़ों पर गौर करने पर एक अलग तस्वीर सामने आती है।

2024 में, भारत ने दुनिया से 656.84 अरब डालर का आयात किया, जिसके प्रमुख स्रोत थे: चीन (18.52%), रशियन फेडरेशन (10.22%), और संयुक्त अरब अमीरात (8.49%)।

2025 में रूस और भारत के बीच रूस के पक्ष में व्यापार अधिशेष बहुत ज़्यादा 60 अरब डालर था, जबकि रूस और चीन के बीच यह बहुत मामूली 12 अरब डालर था। बढ़ते घाटे का ज़्यादातर कारण रूस से तेल आयात में बढ़ोतरी है। 2021 से भारत का रूस से तेल आयात बहुत तेज़ी से बढ़ा है, जिससे दोनों देशों के ऊर्जा रिश्तों में बदलाव आया है। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले, भारत ने बहुत कम रूसी कच्चा खनिज तेल खरीदा था, जो उसके तेल आयात का 2% से भी कम था। हालांकि, रूसी तेल पर पश्चिमी देशों की भारी छूट ने एक रणनीतिगत बदलाव को बढ़ावा दिया। 2023 तक, रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया, जिसका आयात रोज़ाना 16 लाख बैरल से ज़्यादा था, जो भारत की कुल कच्चा खनिज तेल की खरीद का लगभग 40% था।

लेकिन अब यह बदलने वाला है। अमेरिका के कड़े प्रतिबंध और पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ बिगड़ते व्यापार रिश्तों के खतरे के साथ, भारत को अक्तूबर 2025 में पिछले साल के मुकाबले रूस से अपने तेल आयात में मूल्य के हिसाब से 38% और माप के हिसाब से 31% की कटौती करनी पड़ी। इसका मतलब है कि भारत और रूस जिस व्यापार मूल्य को लक्षित कर रहे हैं, आने वाले सालों में उसमें भारी गिरावट आने की संभावना है, जब तक कि भारत, अपने चीनी साथियों की तरह, कुछ मैन्युफैक्चरिंग व्यापार योग्य उत्पाद जैसी कोई ठोस चीज़ न दे।

रूस और चीन के बीच व्यापार के आंकड़ों की तुलना करने पर यह ज़्यादा स्वाभाविक लगता है और इसके बने रहने की संभावना है। रूस-चीन का व्यापार, जो कहीं ज़्यादा बड़े पैमाने पर है, 2025 की पहली छमाही में 106.48 अरब डालर था, जिसमें रूस का निर्यात (ज़्यादातर तेल, गैस और मिनरल) 59.32 अरब डालर और चीन का (मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और दोहरे उपयोग के सामान का) निर्यात 47.16 बिलियन डालर था। रूस के कुल व्यापार में चीन का हिस्सा लगभग 30-48% है, जो इसे मॉस्को का सबसे बड़ा भागीदार बनाता है, हालांकि 2025 की शुरुआत में हाइड्रोकार्बन की गिरती कीमतों और खास श्रेणी में गिरावट के कारण इसमें गिरावट देखी गई। भुगतान ज़्यादातर राष्ट्रीय मुद्रा में होते हैं, जो डी-डॉलराइज़ेशन की कोशिशों को दिखाता है।

2024 में, चीन ने दुनिया भर में 3576.54 अरब डालर का निर्यात किया, जिसके मुख्य गन्तव्य थे: संयुक्त राज्य अमेरिका 14.70 प्रतिशता, यूरोपीय यूनियन को 14.42 प्रति शत, तथा हांगकांग और चीन को 8.13 प्रतिशत। कुल 115.28 अरब डालर का रशियन फेडरेशन को निर्यात् सुल निर्यात का मात्र 3.22% था।

2024 में, रशियन फेडरेशन का आयात चीन के कुल आयात का 5.02% था। चीन ने दुनिया भर से कुल 2585.13 अरब डालर मूल्य के सामान का आयात किया, जिसके मुख्य स्रोत थे: यूरोपियन यूनियन (10.42%), अन्य एशिया, (8.42%), और रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया (7.02%)।

आर्थिक दृष्टिकोण से भारत रूस के साथ अपने व्यापार में गति को बनाए रख सकता है, लेकिन इसके लिए उसे खुद को एक बराबर का व्यापार साझेदार बनाना होगा, जैसा चीन ने किया है। भारत को रूस के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने की ज़रूरत है। मेडिकल और पैरामेडिक्स के क्षेत्रों में श्रमबल की आवाजाही, और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी जैसी दूसरी स्किल्ड सर्विसेज़, और स्पेस कोऑपरेशन, जहां भारत को लागत का लाभ है, घाटे को कम करने में मदद कर सकता है। साथ ही, रुपया-रूबल व्यापार से डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये पर कुछ दबाव कम करने में मदद मिलेगी।

जैसे-जैसे रूस अमिरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत और चीन जैसे गैर-पश्चिमी भागीदारों की तरफ बढ़ रहा है, उससे यह रूझान जारी रहने की संभावना है। यह देखना बाकी है कि आर्थिक निर्भरता की इस बदलती कहानी में भारत कब और कैसे चीन की बराबरी करेगा। (संवाद)