सीपीएम के अंदर भी इस मसले पर एक राय नहीं है। जहां सीपीएम के ज्यादातर नेता इसे मोर्चे के लिए फायदेमंद मानते हैं वहीं मुख्यमंत्री अच्युतानंनद इससे सहमत नहीं दिखाई देते। वे एनसीपी के वाम लोकतांत्रिक मोर्चा में शामिल होने के फायदे के प्रति सशंकित ही नहीं हैं, बल्ेिक खुले तौर पर इसके बारे में अपनी अलग राय जाहिर कर रहे हैं।

कांग्रेस(एस) और आरएसपी का कहना है कि केरल में एनसीपी का कोई खाय वजूद है ही नहीं। उसकी उपस्थिति बहुत ही सीमित है। उनका कहना है कि एनसीपी केन्द्र की यूपीए सरकार में शामिल है, इसलिए हम केन्द्र की सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए यदि एनसीपी को अपने साथ रखते हैं तो हमारे विरोध की विश्वसनीयता कम हो जाती है। उनका कहना है कि केन्द्र में ही नहीं, बल्ेिक गोवा और महाराष्ट्र में भी एनसीपी कांग्रेस के साथ सरकार में है।

उनका कहना है कि एनसीपी का कांग्रेस के साथ संबंध तो है ही, नगालैंड में तो वह भारतीय जनता पार्टी के साथ भी दोस्ताना संबंध बनाए हुए है।

गौरतलब है कि वाममोर्चा ने महंगाई के मसले पर केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाल रखा है। महंगाई किसी भी चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ एक प्रमुख मुद्दें के रूप में पेश किया जाएगा। लेकिन सचाई यह भी है कि एनसीपी के नेता शरद पवार के पास खाद्य और उपभोक्ता मामले का मंत्रालय है और महंगाई के लिए वामपंथी दल शरद पवार को निजी तौर पर भी जिम्मेदार बता रहे हैं। इसलिए कांग्रेस (एस) और आरएसपी का कहना है कि इस माहौल में एनसीपी को अपने साथ लेना वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।

एनसीपी के साथ गठबंधन के समर्थकों का कहना है कि एनसीपी की केरल इकाई को अलग करके देखा जाना चाहिए। उसने कहा है कि वह महंगाई के मसले पर भी केरल के वामलोकतांत्रिक मोर्चा के अन्य दलो के साथ मिलकर संधर्ष करेगी और केन्द्र की सरकार की आलोचना करने में भी किसी प्रकार की रियायत नहीं करेगी। इस तर्क से सीपीएम और सीपीआई एनसीपी के साथ मोर्चेबंदी का समर्थन कर रही हैं। (संवाद)