उस घोषणा को प्रधानमंत्री के पास भेज दिया गया है। उसके साथ एक पिट्ठी भी भेजी गई है, जिसमें प्रघानमंत्री को कहा गया है कि नक्सल समस्या के हल के लिए बुलाए गए मुख्यतंत्रियों मे सम्मेलन में उन्होंने ताकत के द्वारा नक्सलियों का दमन करने को तो कहा है, लेकिन जिन कारणो से नक्सल समस्या पैदा हुई है, उन कारणों को समाप्त करने के लिए कुछ नहीं कहा। पत्र में प्रधानमंत्री को कोसते हुए कहा गया है कि शायद उन्हें नक्सलवादी समस्या के मूल का पता नहीं है।

इस सम्मेलन का आयोजन भारत प्रतिष्ठान ने किया था। प्रतिष्ठान ने नक्सल समस्या पर बातचीत के लिए प्रधानमंत्री से मिलने का समय भी मांगा है। भोपाल घोषणा का 15 सूत्री चार्टर देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना में बदलाव के लिए अनेक कदम उठाने की जरूरत को रेखांकित करता है।

उठाए जाने वाले प्रस्तावित कदमों में भूमि सुधार, किसानों पर बढ़ रहे कर्ज के बोझ को कम करना, आदिवासी इलाकों में खनन कार्यो पर पूरी तरह रोक लगाना, ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देना, ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में विशेष आर्थिक जोन को समाप्त करना और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में बदलाव करना शामिल है।

भोपाल घोषणा मं कहा गया है कि जिन कारणों से नक्सलवाद की समस्या पैदा होती है और पनपती है, उन्हें दूर किया जाना चाहिए। उसके बाद ही इस समस्या से निजात मिल पाएगी। कहा गया है कि कुछ ऐसे उपाय करने होंगे, जिनसे नक्सलवादी समाज की मुख्यधारा में फिर से शामिल हों। उसके लिए खाद्य सुरक्षा सभी लोगों के लिए सुनिश्चित की जानी चाहिए। घोषणा में कहा गया है कि छुआछूत को पूरी तरह समाप्त किया जाना चाहिए और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के पुख्ता प्रबंध किउ जाने चाहिए।

जिन लोगों ने सम्मेलन में भाग लिया, उनमें स्वामी अग्निवेश भी शामिल थे। गौरतलब है कि स्वामी अग्निवेश को सरकार और नक्सलियों के बीच बातचीत करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि माओवादी नेता आजाद की पुलिस द्वारा की गई हत्या के बाद बातचीत का मामला खटाई में पड़ गया है।

उन्होंने बताया कि माओवादी सरकार के 72 घंटों के संघर्ष विराम के प्रस्ताव पर राजी हो गए थे और वे बातचीत के लिए भी तैयार थे। बातचीत के तौरतरीकों पर भी उनके बीच में सहमति बन गई थी। बातचीत के लिए समय तय किया जाना बाकी था। लेकिन इसी बीच माओवादी नेता आजाद की हत्या कर दी गई। स्वामी ने आरोप लगाया कि आजाद की हत्या जानबूझ कर एक साजिश के तहत की गई, ताकि माओवादियों में साथ सरकार की बात हो ही नहीं सके।

उन्होंने कहा कि आजाद किसी मुठभेड़ में नहीं मारे गए, बल्कि पहले उन्हें गिरफ्तार किया गया और बाद में मार दिया गया। उनके साथ हेमचंद्र पांडेय नाम के एक पत्रकार को भी मार दिया गया, क्योंकि पत्रकार पांडेय आजाद की हत्या के चश्मदीद गवाह थे। स्वामी ने मांग की कि आजाद की मौत की जांच की जानी चाहिए और दोषी लोगों को सजा दी जानी चाहिए। (संवाद)